Monday, December 23

इन्साफ की आस में चल बसे पिता, 88 साल के बेटे ने तीन दशक तक लड़ा 37 हजार रूपये एरियर का मुकदमा

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बंगलूरू 16 नवंबर। कर्नाटक में 88 साल के बेटे को पिता के 37 हजार रुपयों के एरियर की कानूनी लड़ाई तीन दशक तक लड़नी पड़ी। कर्नाटक हाईकोर्ट ने मामले को असंवेदनशील नौकरशाही और लालफीताशाही का दुर्भाग्यपूर्ण उदाहरण बताते हुए अधिकारियों को 1979 से 1990 तक की ग्राम अधिकारी की बकाया राशि जारी करने का निर्देश दिया है। साथ ही, तब ही से 10 फीसदी ब्याज देने के भी आदेश दिए। कोर्ट ने आदेश में कहा, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ग्राम अधिकारी असंवेदनशील नौकरशाही का शिकार होकर मुआवजा प्राप्त किए बिना दुनिया से चला गया। बेटा अब भी पिता के अधिकार के लिए लड़ रहा है। यह बेहद आश्चर्य की बात है कि राज्य सरकार ने एक अस्थिर कदम उठाया है।

अदालत का कहना है कि एक ग्राम अधिकारी का असंवेदनशील नौकरशाही और लालफीताशाही का शिकार होना और मुआवजा लिए बिना मौत हो जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। 2021 में ली थी हाईकोर्ट की शरण जस्टिस पीएस दिनेश कुमार व जस्टिस टीजी शिवशंकर गौड़ा की पीठ ने फैसले में कहा, यह आश्चर्यजनक है कि सरकार ने अस्पष्ट रुख अपनाया कि याचिकाकर्ता के पिता मुआवजे के हकदार नहीं थे, क्योंकि उन्हें एरियर का मुआवजा मंजूर नहीं किया गया था।

बता दें, बंगलूरू के राजाजिंगर निवासी दिवंगत टीके शेषाद्रि अयंगर के बेटे टीएस राजन ने 2021 में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनके पिता चिक्कमंगलुरू के थंगाली गांव में पटेल के रूप में कार्यरत थे। 1997 में कर्नाटक राज्य पटेल संघ की ओर से दायर याचिका पर हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक, राजन के पिता भी लाभार्थियों में थे। शेषाद्रि को अगस्त 1979 से जून 1990 तक प्रतिमाह 100 रुपये का अनुकंपा भत्ता मिलना था। कई जगह खारिज हुआ था आवेदन राजन के पिता ने भत्ते के लिए कई आवेदन दायर किए, लेकिन यह मंजूर नहीं हुए। पिता की मृत्यु के बाद, राजन ने कदुर के तहसीलदार को भुगतान के लिए अनुरोध करते हुए एक ज्ञापन दिया, पर इसे 2017 में खारिज कर दिया गया था। इसके बाद राजन ने कर्नाटक राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण से संपर्क किया, उसने भी उनके आवेदन को खारिज कर दिया। तब उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

कोर्ट ने आदेश दिया कि राज्य को 1979 और 1990 के बीच बकाया राशि के साथ-साथ ₹100 की दर से तदर्थ भत्ते की गणना और भुगतान करना चाहिए। इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि साल 1990 से 1994 तक का भत्ता और बकाया 500 रुपये प्रति माह की दर से भुगतान किया जाना चाहिए। इसने पात्रता की तारीख से राशि पर 10 प्रतिशत का साधारण ब्याज देने का भी आदेश दिया। अदालत ने आदेश दिया कि भुगतान तीन महीने के भीतर किया जाना है।

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