Friday, November 22

19 नवंबर को होगी छठ पूजा

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मेरठ 16 नवंबर (प्र)। दीपावली गोवर्धन और भाईदूज के बाद अब लोक आस्था व सूर्य उपासना के महापर्व छठ मनाने की तैयारियां देशभर में जोरशोर से चल रही है। इस वर्ष कल 17 नवंबर से 20 नवंबर तक मनाये जाने वाले इस छठ पर्व का अपना बड़ा महत्व है। छठ के लिए बरतनों की खरीदारी लोग धनतेरस में ही कर लेते है। जिसमें पीलत के सूप परात बाल्टी लोटे भगोने गिलास आदि बड़ी मात्रा में खरीदे जाते है। देशभर के जिलों में मौजूद जलाशयों आदि व उनके आसपास की सफाई कराने के साथ धार्मिक स्थलों को सजाया जाता है। घाटों पर सुरक्षा और सहयोग के लिए व्याप्त मात्रा में व्यवस्था की जाती है प्रशासन और पुलिस भी रहता है सक्रिय। बताते है कि भगवान श्रीराम का राज्य अभिषेक पश्चात माता सीता द्वारा पाण्डों के छिने राजपाठ की पुनः वापसी के लिए व्रत आदि किये गये और उसी को दृष्टिगत रख छठ पर्व मनाया जाता है। वैसे तो चारों दिन का बड़ा महत्व है लेकिन 19 नवंबर को विशेष छठ पूजा होती है। इस मौके पर बिहार और आसपास के प्रदेशों के साथ ही पूरे देश में यह पर्व बड़ी श्रद्धा से मनाते है।

एक खबर के अनुसार ऐसे करे छठ पूजन
17 नवम्बर से 20 नवम्बर तक चार दिवसीय संतान कामना व रक्षा के लिए पर्व है। जिसमें सृष्टि की मूल प्रकृति छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण ग्रहराज सूर्य की बहन षष्ठी देवी कहलाती हैं। इसलिए स्त्रियां सूर्य जैसे तेजस्वी पुत्र एवं षष्ठी देवी जैसी आयु, विद्या, बल, तेज तथा मुक्तिप्रदान करने वाली शुभदायी बेटी की कामना पूर्ति के लिए व्रत, तप करती हैं।
भगवान श्री राम का राज्याभिषेक पश्चात माता सीता द्वारा तथा पांडवों के छीने राज-पाट की पुनः प्राप्ति के लिए द्रौपदी द्वारा इस षष्ठी व्रत का प्रारम्भ किया गया। कार्तिक शुक्ल मास की छठी तिथि इतनी पवित्र मानी जाती है कि दिवाली की साफ सफाई के बाद भी इस पर्व में पुनः घर, रसोई आदि को धोकर पवित्र किया जाता है। व्रत में उपयोग की जाने वाले पदार्थों की पवित्रता पर विषेष ध्यान दिया जाता है। जिससे व्रत, उपवास, पूजा, अर्ध्य आदि पवित्रतम हो जाते हैं।

चार दिवसीय संतान कामना और रक्षा के लिए पर्व
17 नवम्बर, शुक्रवार नहाय-खाय
18 नवम्बर, शनिवार खरना (लोहंडा)
19 नवम्बर, रविवार छठ पूजा, अस्ताचल सूर्य अर्घ्य
20 नवम्बर, सोमवार उदित सूर्य अर्घ्य, पारण सूर्याेपासना का पर्व

बताते है कि ऐसे करे छठ पूजन
प्रायः महिलायें छठ से दो दिन पूर्व चतुर्थी, पंचमी के दिन से ही उपवास रखती हैं। नहाए, खाए जिसका मतलब है नदी जाकर नहाइए तब घर आकर शुद्ध खाना पकाइए खाने में भेलिया, कुम्हड़ा, काषीफल के साथ चावल बनाये जाते हैं जिसे कद्दू भात कहते हैं। जो भी स्त्री, पुरुष उपवास रखते हैं वह जमीन पर ही सोते हैं। कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन तो व्रती महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं।
विश्व में एक मात्र यही ऐसा पर्व है जिसमें उदित होते सूर्य के साथ डूबते सूर्य को भी अर्घ्य एवं प्रसाद प्रदान करते हुए सूर्य भगवान को पूजा जाता है। सूर्य डूबते समय बुध ग्रह उदित होते हैं अतः डूबते सूर्य की पूजा ज्योतिषीय दृष्टि से बुधादित्य योग की पूजा है जो कि यशमान, कीर्ति के साथ बुद्धि, विवेक, निर्णय तथा व्यवसाय की स्थिति को सबलता प्रदान करती है। बहन षष्ठी देवी व भाई सूर्य देव को दूध व जल का अर्घ्य प्रदान करते हुए सूपों में मौसमी फलों के साथ गेहूं के आटे से बने ठेकुआ तथा चावल के आटे से बने लडूआ नाभि तक जल में खड़े होकर नवैद्य रूप में भोग लगाया जाता है तथा यह प्रसाद घर के सदस्यों तथा आस पड़ोस में वितरित किया जाता है मान्यता है कि यदि मां अपने गीले आंचल से अपने बच्चों का बदन पौंछती है तो एक वर्ष तक बच्चों को त्वचा सम्बन्धी रोग नहीं होते हैं। व्रती सदस्यों के साथ पूरा परिवार व मित्रगण छठ पूजा में भजन कीर्तन के संग बड़े हर्षाेल्लास के साथ भाग लेते हैं तथा जलाशयों के किनारे दीपों की श्रृंखला सादगी में आध्यात्मिक भव्यता प्रज्ज्वलित करती है। अधिकांश व्रती छठ की सांयकाल की पूजा के उपरान्त प्रसाद प्राप्त कर के व्रत खोलते हैं तथा कुछ अगले दिन प्रातः भगवान सूर्य को अर्ध्य प्रदान करने के पश्चात प्रसाद ग्रहण कर व्रत खोलते हैं। इसी प्रक्रिया को खरना कहा जाता है।

छठ पर्व की महत्ता इससे भी पता चलती है कि इस अवसर पर कई नये लोक गीत आदि रिलीज होते है तथा बिहारी व भोजपुरी भाषा के लोक गीतों की इस पर्व पर रहती है धूम। सारे राजनीतिक दल के प्रतिनिधि समाजसेवी इस मौके पर एक दूसरे को बधाई व शुभकामनाऐं देकर छठ पर्व पूजा धूमधाम से संपन्न होने की कामना करते है। (प्रस्तुतिः अंकित बिश्नोई पूर्व सदस्य मजीठिया बोर्ड यूपी सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए के राष्ट्रीय महामंत्री संपादक)

 

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