प्रदूषण से होने वाले नुकसान और इसकी समाप्ति की चर्चा तो हर स्तर पर सभी कर रहे हैं लेकिन जितना पढ़ने सुनने देखने को मिल रहा है उससे यह लगता है कि इसके लिए जिम्मेदार आंकड़ेबाजी खानापूर्ति और दिखावे का प्रपंच ज्यादा कर रहे हैं ठोस काम करने की बजाय। क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो आए दिन समाचार पत्रों में प्रतिबंध के बावजूद कूड़े के ढेरों में आग लगने और प्लास्टिक व तार जलाने की जो चर्चाएं सुनने को मिल रही है वो नहीं मिलती। कूड़ा उठवाने तथा झाड़ू लगाने की पूर्ण व्यवस्था कराई जा रही होती।
आदरणीय प्रधानमंत्री जी द्वारा स्वच्छता और प्रदूषण मुक्त माहौल की स्थापना के लिए भरपूर प्रयास किए जा रहे हैं जिनका अनुशरण करते हुए यूपी के सीएम निर्देश और आदेश तथा संदेश जिम्मेदारों को दे रहे हैं। लेकिन अभी तक शायद इन पर भय की कोई कार्रवाई नहीं हो रही है इसलिए सब हवा में ही सफाई के मौखिक तीर चला रहे हैं। देहात को छोड़ भी दें तो शहर की प्रमुख कालोनी और उसके आसपास छह छह माह से झाड़ू नहीं लगी और कूड़ा नहीं उठवाया गया। जिससे पूरे दिन मार्गों पर धूल उड़ती और लोगों के दमे के मरीज होने की संभावनाएं बन रही हैं। सरकारी अधिकारी फरमा रहे हैं कि प्रदूषण की स्थिति नहीं सुधरी तो कराई जाएगी कृत्रिम बारिश। तो कुछ जिलों में नगर निगम और निकाय शटर धुलवाने में लगे हैं। सवाल यह उठता है कि जो पानी की बर्बादी हो रही है उससे कहीं प्रदूषण के साथ साथ जल के अभाव से भी आम आदमी को ना जूझना पड़े।
मेरा मानना है कि अगर सरकार शासन प्रशासन निकायों के अफसर नागरिकों को प्रदूषण मुक्त माहौल उपलब्ध कराना चाहते हैं तो नाले नालियों की सफाई और समय से कूड़ा उठवाने की व्यवस्था कराएं। दूसरे शटर धुलवाने या पेड़ों पर छिड़काव पर हो रही पानी की बर्बादी रूकवाई जाए। समय से कूड़ा उठेगा और सफाई होगी तो ना कृत्रिम बारिश करानी पड़ेगी ना पेड़ पौधे धुलवाने पड़ेंगे। तीसरा वाहनों की चैकिंग हो और जो वाहन जहरीला धुुंआ या एसी की गैस से फैलने वाला प्रदूषण बढ़ा रहे हो उनके वाहनों की जब्ती की जाए। चौथे जिन अफसरों को यह जिम्मेदारी दी गई है अगर वह अपना काम करने में असफल हैं तो उनके निलंबन और नौकरी से बर्खास्त करने की प्रक्रिया शुरू की जाए। पांचवा सबसे बड़ी बात वाहनों की बढ़ती संख्या से जो प्रदूषण फैल रहा है उसे रोकने के लिए सबसे पहले सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में की जाए दोगुनी बढ़ोत्तरी और किराया आधा किया जाए। क्योंकि जब सरकारी परिवहन से यात्रा सस्ती और सुविधाजनक होगी तो आम आदमी आर्थिक बचत और जाम की समस्या से बचने के लिए अपने वाहनों का उपयोग करने की बजाय सार्वजनिक परिवहन का उपयोग ज्यादा करेंगे। इससे भी जहां प्रदूषण की समस्या का समाधान होगी वहीं पेटोल डीजल की भी बचत होगी। गाड़ियों में सड़कों के गडढों से जो टूट फूट हो रही है उससे राहत मिलेगी। कुल मिलाकर कहने का आश्य सिर्फ यह है कि हमें जनता के खर्चों में कमी और प्रदूषण की समाप्ति के लिए यह कुछ उपाय करने के साथ साथ संबंधित अफसरों द्वारा जो बजट अनाप शनाप खर्च किया जा रहा है उस पर रोक लगानी होगी। मेरा मानना है कि गंदगी और वायु प्रदूषण से भी छुटकारा मिलेगा। सरकार के बजट में कमी होगी। कहने का मतलब है कि आम के आम और गुठलियों के दाम की व्यवस्था अपनाने से साकार हो सकती हैं इसलिए संबंधित विभाग और मंत्रालय को प्रदूषण से मुक्ति के लिए जल्द कदम उठाने चाहिए।
प्रदूषण पर रोक हेतु सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था हो सस्ती, संबंधित विभागों के अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर लगे अंकुश
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