दोस्तों इस समय चारों तरफ ठंड कोहरे को लेकर ही चर्चाऐं सुनाई दे रही है। कई लोग इससे बचाव के चक्कर में अपने प्राण गंवा चुके है तो कई को ये कोहरा व ठंड खुद मौत की गोद में सुला चुकी है अब क्योंकि जो होना है उसे सहना भी पड़ेगा। बड़े बुजुर्गों से सुनने को मिलता है कि अगर कोई चीज ज्यादा परेशान करे तो उसके बारे में सोचना ही छोड़ दो तो काफी राहत मिलने लगती है। अब हमें भी लगता है कि हड्डियों को कंप देने और ठिठरा देने वाली ठंड से बचने के लिए हमें भी जितना संभव हो सकता है इंतजाम करने के साथ साथ ही इस ओर से ध्यान हटाना पड़ेगा तभी हम और खासकर परिवार के जो बीमार और कमजोर दिल लोग होते है उनका आशीर्वाद हम अपने साथ बनाये रख सकते है।
दोस्तों इस संदर्भ में आप गूगल पर जाकर स्वीडन के एक छोटे से गांव एबिस्को के बारे में जान सकते है। उत्तरी स्वीडन में बसा ये गांव आर्कटिक सर्किल से लगभग 200 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। यहां लोग माइनस डिग्री में लंबे अर्से तक अंधेरे में रहते है क्योंकि यहां अक्टूबर माह से सूरज की रोशनी दिखना बंद हो जाती है यहां के लोगों को बिना धूप के 4 महीने रहना पड़ता है। दूसरी तरफ साईबेरियाई रेगिस्तान रूस के गांव याकुटिया जो बेहद सुन्दर है लेकिन यहां का तापमान 68 सेल्सियस डिग्री तक होता है ये दुनिया का सबसे ठंडा गांव बताया जाता है और यहां के लोग हमेशा ठंड से बचने के लिए मोटे कपड़े पहनते है। और पानी व जूस भी गरम कर तरल पदार्थ बनाकर ही पीते है। इससे आप अंदाज लगा सकते है कि यहां कितनी ठंड होगी। और यहां के लोगों का जीवन किस प्रकार से बीतता होगा। हमारे यहां कहा जाता है कि ऊपर के बजाए नीचे के व्यक्तियों को देखकर चलोगे तो जीवन तनाव मुक्त होगा। मैं इस मामले में कहा सकता हूं कि अगर स्वीडन के गांव एबिस्को और रूस के गांव याकुटिया की परिस्थितयों को देखे और सोचे तो ठंड और कोहरे में भी हमारा जीवन कठिनाईयों से मुक्त हो सकता है। इन दोनों गांवों के बारे में आप विस्तार से गूगल पर जाकर जानकारियों प्राप्त कर जहां अपना ज्ञान बढ़ सकते है और वहीं ठंड से भी राहत पा सकते है। और ठंड के अंधेरे और बिना सूरज के कैसे जीया जाता है।
बिना धूप के चार महीने
ठंड की कल्पना करने से ही शरीर में सिहरन पैदा होने लगती है। हमारे देश में कई जगहें ऐसी हैं, जहां कड़ाके की ठंड पड़ती है। लेकिन दुनिया में एक ऐसी जगह है, जहां तापमान शून्य से भी नीचे रहता है और महीनों तक सूर्य की रोशनी दिखाई नहीं देती है। ऐसी जगह पर लोग कई तरह की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।
स्वीडन का एक छोटा-सा गांव एबिस्को कुछ इसी तरह का है। उत्तरी स्वीडन में बसा यह गांव आर्कटिक सर्किल से लगभग दो सौ किलोमीटर उत्तर में स्थित है। यहां लोग माइनस डिग्री में लंबे अरसे तक अंधेरे में रहते हैं। अक्तूबर माह से सूर्य की रोशनी दिखना बंद हो जाती है। और अगले चार महीने तक यही हाल रहता है। फरवरी में सूर्य की किरणें दोबारा दिखती हैं। इतने लंबे समय तक अंधेरे में रहने के कारण यहां के लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है। उनके श्मूड और एनर्जी लेवल पर भी इसका असर देखने को मिलता है। ठंड के कारण घर निकलने का मन नहीं करता है। स्टॉकहोम यूनिवर्सिटी में स्लीप रिसर्चर अन लॉडेन का मानना है कि मनुष्य के शरीर में मेलाटोनिन नामक एक ऐसा हार्माेन पाया जाता है, जो दिन के समय अधिक सक्रिय रहने और रात में नींद लेने में मदद करता है मेलाटोनिन को अंधेरे का हार्माेन कहा जाता है। इसकी वजह से इंसानों को नींद आती है मेलाटोनिन रात करीब आठ बजे से सक्रिय हो जाता है और सुबह सूर्य की रोशनी से इस हार्माेन का शरीर में बनना बंद हो जाता है। इसी तरह हर इंसान का बॉडी क्लॉक एडजस्ट रहता है। चूंकि सर्दी में कोहरे की वजह से सूर्य की रोशनी शरीर को नहीं मिल पाती है, लिहाजा पूरा बॉडी क्लॉक डिस्टर्ब हो जाता है और बाहरी दुनिया से शरीर का तालमेल बिगड़ जाता है।
इस वजह से कई लोग अवसाद का शिकार हो जाते हैं। कुछ लोगों को भूख बहुत लगती है, जिससे उनका वजन बढ़ जाता है। इसे सीजनल इफेक्टिव डिसऑर्डर या विंटर ब्लूज कहा जाता है। चिकित्सकों का मानना है कि इस तरह के ज्यादातर मामले उत्तरी यूरोप और उत्तरी अमेरिका में ही देखने को मिलते हैं, क्योंकि वहां सर्दी के मौसम में कई महीनों तक सूर्य के दर्शन नहीं हो पाते हैं। भारत में इस तरह की स्थिति लगभग नहीं होती है कि महीनों धूप न निकले, इसलिए यहां विंटर ब्लूज के केस कम ही देखने को मिलते हैं। हां, बरसात के मौसम के दौरान भारत में इसके कुछ मामले देखे गए हैं।
ऐसे में इंसान के लिए सूर्य की रोशनी बेहद जरूरी है। जानकार कहते हैं कि विंटर ब्लूज से बचने के लिए हमें रोजाना सुबह कम से कम 20 मिनट सूर्य की तेज रोशनी में जरूर बैठना चाहिए।
दुनिया का सबसे ठंडा गांव, जहां 68 सेल्सियस डिग्री तक होता है तापमान
दुनिया का एक बड़ा हिस्सा हमेशा ठंडा रहता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया का सबसे ठंडा गांव कौन सा है? जहां रहना लोगों के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। आज हम आपको साइबेरियाई रेगिस्तान के एक गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे दुनिया का सबसे ठंडा गांव माना जाता है। यहां ‘गर्म’ दोपहर में भी तापमान माइनस 40 सेल्सियस डिग्री होता है और माइनस 68 सेल्सियस डिग्री तापमान को सहनीय माना जाता है। यहां रहना लोगों के लिए डीप फ्रीजर में रहने जैसा है। इस गांव को ‘याकुटिया’ नाम से जाना जाता है, जो पृथ्वी पर सबसे ठंडी जगहों में से एक है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, रूस का ये याकुटिया गांव बेहद सुंदर है, लेकिन यहां की लाइफस्टाइल बेहद चौलेंजिंग है जिसके बारे में जानकर आपको हैरानी होगी। यहां के लोग सुबह उठ कर सबसे पहले लकड़ियों को इकट्ठा करने का काम करते हैं। इसके बाद उनको चूल्हे में जला कर घर के अंदर रहने लायक तापमान बनाते हैं।
यहां ज्यादातर घर कंक्रीट के ढेर पर बनाए जाते हैं। ठंड से बचने के लिए यहां लोग रोएंदार और गर्म फर से बने कपड़े पहनते हैं। यहां हर वक्त लोगों को मोटे-मोटे जूते पहन कर रहना पड़ता है। अगर रेडियेटर या हीटर मौजूद नहीं होता तो 9 बर्फीले महीनों में भारी मात्रा में लकड़ी का उपयोग करके घर को गर्म रखा जाता है। शून्य से काफी नीचे तापमान होने पर घरों को गर्म करने के अलावा पीने का पानी ढूंढना यहां सबसे कठिन काम होता है।
गांव में पानी के लिए किसी भी तरह की कोई पाइपलाइन नहीं है। यहां बर्फ के टुकड़ों को पिघला कर पानी बनाया जाता है। पीने के पानी की ही तरह यहां खाने-पीने की चीजों को लेकर भी दिक्कत रहती है, क्योंकि ऐसे तापमान में फसलों को उगाना संभव नहीं होता और हर चीज ठंड की वजह से जम जाती है।
यहां लोग गर्म दिनों में स्ट्रॉबेरी या दूध से बनें पौष्टिक खाने को कड़ाके की सदियों के लिए बचाकर रख देते हैं। ज्यादातर मछलियां, स्ट्रॉबेरी और क्रीम को लोग नियमित रूप से खाते है। यहां रहने वाले लोगों के लिए मछलियां ही मीट का एक मुख्य स्रोत है।
इस स्थान पर आइसक्रीम लोगों की पसंदीदा है। दिन में अधिक ठंड होने पर लोग अक्सर सूप लेते हैं। जब तापमान -55 सेल्सियस डिग्री से नीचे रहता है, तो बच्चों के लिए स्कूल जाना खतरनाक माना जाता है।
(प्रस्तुतिः अंकित बिश्नोई सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए के राष्ट्रीय महामंत्री मजीठिया बोर्ड यूपी के पूर्व सदस्य)