प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा स्वच्छता कायम करने और प्रदूषण दूर करने के लिए जितने प्रयास बढ़ाए जा रहे हैं उतना ही इस कार्य को संपन्न कराने से संबंध नगर निगम और स्थानीय निकाय के अधिकारी पूरी तौर पर असफल सिद्ध होते नजर आ रहे हैं। बीते दिवस मेरठ के प्रभारी मंत्री द्वारा नगरायुक्त सहित नगर निगम के अधिकारियों की जमकर क्लास ली गई और कहा कि आपने शहर को नरक बना दिया है। शर्म आनी चाहिए। दूसरी ओर स्वच्छता रैंकिंग में भी करोड़ो रूपये सफाई पर खर्च करने के बाद भी निगम की रैंक निचले स्तर पर रही है। निगम के अधिकारियों का कहना है कि नाले पाट दिए गए है। कुछ लोगों ने पुल बनाकर अपना व्यवसाय शुरू कर दिया है। अगर ऐसा है तो सवाल उठता है कि इसे रोकने के लिए जिम्मेदार अफसर क्या कर रहे थे और निगम अधिकारी कहां सोए थे। आश्चर्य इस बात का है कि खुलेआम कुछ व्यापारियों ने बिना अनुमति नाले पाटने के साथ उन पर पुल बना दिए हैं और अपनी लाखों की जमीन की कीमत करोड़ों में पहुंचा दी है। मौखिक सूत्रों का कहना है कि व्यापारी तो कमा ही रहे है। अधिकारियों की भी इसमें मिलीभगत है। बिना उनकी मर्जी के नाले नहीं पाटे जा सकते और ना पुल बनाए जा सकते है। सरकार को मिलने वाले राजस्व से उसकी झोली खाली ही है। कुछ लोगों का यह कथन बिल्कुल ठीक प्रतीत होता है कि नगर निगम के अधिकारी एक दूसरे पर काम टालकर शहर को सफाई से वंचित रख रहे हैं। पिछले एक वर्ष में नगर निगम अधिकारियों और नगरायुक्त की आलोचना हुई जिसके बाद भी उन्हें हटाया नहीं गया और जो पैसा खर्च होने के बाद भी नागरिकों को स्वच्छ वातावरण क्यों नहीं मिल रहा है और इसके लिए जिम्मेदार अभी तक बचे हुए क्यों है। बीते दिनों मंत्री की भावनाओं को समाचार पत्रों में पढ़कर कई लोगों का कहना था कि मंत्री जी नगरायुक्त और उनके सहयोगियों के विरूद्ध कार्रवाई क्यों नहीं हो रही जबकि महापौर हरिकांत अहलूवालिया खुलेआम कह रहे हैं कि अधिकारी सुनते नहीं है। जनहित के आदेशों को टाल जाते है। इन परिस्थितियों में क्या शहर का स्मार्ट सिटी बन पाना संभव है। यह सोचकर सरकार को दोषी अफसरों पर कार्रवाई करनी चाहिए।
सफाई ना होने से नरक बन गया है शहर अफसरों की लापरवाही से पट गए नाले और बन गए अवैध पुल
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