मेरठ 20 जनवरी (विशेष संवाददाता)। कुत्ते बंदर और अन्य खूखांर जानवरों के हमले से नागरिकों को बचाने के लिए जिम्मेदार विभागों के अफसरों की कुंभकर्णी नींद आखिर कब टूटेगी। इसको लेकर आज कई जगह विशेष रूप से चर्चा मौखिक रूप से सुनने को मिली। क्योंकि सरकार इन्हें पकड़ने वाले विभागों को बजट भी देती है और सुविधाऐं भी है। फिर आखिर 50-60 लोग कुत्ता काटे के जिला अस्पताल में क्यों पहुंच रहे है रोज और कोई न कोई खबर सोशल मीडिया और अखबारों में पढ़ने और चैनलों पर आये दिन देखने को कुत्ते और बंदरों के हमलों से घायल व मरने की खबरे पढ़ने को क्यों मिल रही है। इस संदर्भ में जनप्रतिनिधि खामोश क्यों है ये बड़ा विषय सोचने का है।
रूड़की रोड स्थित शहर की प्रमुख कालोनी शीलकुंज में गत दिवस बागपत के जिला पंचायत सदस्य सुभाष गुर्जर जो इस कालोनी में रहते है कि पत्नी ज्योत्सना गुर्जर बीते दिवस किसी कार्य से घर से बाहर आई तो कुत्ते ने उन पर हमला कर दिया। तथा पैर में दो जगह काटा तो वो बचकर भागी और आपा धापी में सड़क पर गिर गई तथा उनका हाथ टूट गया। आसपास के लोगों व परिवार के सदस्यों सहित बताते है कि समाजसेवी श्याम यादव आदि ने उनकी मदद की। और उन्हे इलाज उपलब्ध कराया गया। स्मरण रहे कि इस समय इस प्रतिष्ठित कालोनी में ही लगभग 200 के आसपास आवारा कुत्ते मौजूद है। जो आये दिन यहां के निवासियों और आने जाने वालों पर झपट्टा मारने और कई को काट भी चुके है। इससे पूर्व संयुक्त व्यापार संघ के उपाध्यक्ष भाजपा और व्यापारिक नेता सुधीर रस्तोगी भी बताते है कि कुत्तों के हमले की चपेट में आ गये थे। क्योंकि आवारा कुत्तों के साथ साथ इस कालोनी में काफी बड़ी तादाद में कुछ लोगों ने प्रतिबंधित नस्ल के कुत्ते पाल रखे है क्योंकि प्रतिबंधित है तो उनका लाईसेंस तो नहीं बन सकता फिर भी उसको रोकने के लिए जिम्मेदार हुकुमरानों की लापरवाही के चलते यह खुले आम पाले जा रहे है और इनके मालिक सुबह को कालोनी के सुन्दर पार्कों को गंदा कराने में बिल्कुल नहीं सरमाते। कुछ लोगों का तो ये भी कहना है कि कई बार ये विदेशी नस्ल के कुत्ते अपने मालिकों से छुटकर राहगीरों पर हमला करने का प्रयास करते है। यहां के कुछ निवासियों का कहना है कि कई लोग को अपने कुत्तों की जंजीर बच्चों के हाथ में पकड़ा देते है या उन्हें गंदगी करने के लिए खुला छोड़ देते है।
नगर निगम के स्वास्थ पशु चिकित्सा एवं कल्याण अधिकारी डा0 हरपाल सिंह के पास एक रटारटाया उत्तर है कि कुत्तों का बधियाकरण और एंटीरेबिज वैक्सीन लगाने की प्रक्रिया जारी है। शिकायत मिलने पर निगम की टीम वहां जाएगी और कुत्तों को वैक्सीन लगायेगी। सांसद और विधायक जी दे ध्यान नगर निगम के अधिकारियों के ऐसे बयान ही आये दिन पढ़ने को मिलते है। लेकिन पिछले कई सालों से आखिर वो अपना अभियान पूरा क्यों नहीं कर पा रहे। तथा अब तक दो साल में कुत्तों को कितना एंटीरेबिज वैक्सीन लगाने और कितनों का बधियाकरण करने इनका काम किया इसका जबाव जनप्रतिनिधियों को इनसे प्राप्त कर यह पूछना चाहिए कि प्रतिबंधित नस्ल के कुत्ते कालोनियों में कैसे पल रहे है। क्योकि अब ये चर्चा भी सुनाई देने लगी है कि अगर इस ओर ध्यान नहीं दिया तो 2024 के लोकसभा चुनाव में पूर्व में जैसे टमाटर प्याज और आलू की महंगाई मुद्दा बनती रही है हिंसक बंदर और कुत्तों के बढ़ते हमले चुनावी मुद्दा न बन जाए। क्योकि अगर इस संवेदनशील विषय पर ध्यान नहीं दिया गया तो जिसके घर के पीड़ित हो रहे है उनके इस मुद्दे पर मुखर होने से भी इनकार नहीं किया जा सकता।