वर्तमान समय में एक एक वोट का अर्थ समझाने और उसका उपयोग करने हेतु देशभर में चुनाव आयोग के निर्देश पर समस्त जिलों देहातों में सरकारी विभाग स्कूल कॉलेज सामाजिक संगठन मतदान के लिए जागरूकता अभियान चला रहे हैं। कहीं कोई रंगोली बना रहा है तो कोई नुक्ग्कड़ नाटक कर रहा है तो कोई ढोलक की थाप पर गीत या रैली व गोष्ठी से जागरूकता लाने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में आज भी हजारों विधवा महिलाएं वोट से वंचित हैं तो इसके पीछे कहीं ना कोई लापरवाही अथवा लालफीता शाही की नाकामी ही होगी।
विश्व में धार्मिक जनपद के रूप में पहचान रखने वाले भगवान श्रीकृष्ण जन्मभूमि ब्रज में जहां से फिल्म अभिनेत्री हेमामालिनी जो धार्मिक आयोजनों के लिए प्रमुख हैं शायद तीसरी बार चुनाव लड़ रही हैं उसके बावजूद यहां के आश्रमों या सड़क पर रहकर जीवन यापन करने वाली विधवाएं अपना वोट बनवाने के लिए प्रयास कर हार गई लेकिन मतदान का अधिकार नहीं मिला और अब तो इनका मन परिवार के साथ साथ समाज और मतदान के प्रति उचाट हो गया है। स्मरण रहे कि 17 साल पूर्व पति के निधन के बाद परिवार द्वारा ठुकराई गई वृंदावन आई अनीता दास का कहना है कि उसने बहुत कोशिश की लेकिन उसका मतदाता पहचान पत्र नहीं बन पाया। अब उस ओर ध्यान नहीं है। इससे संबंध इस खबर के अनुसार ‘मेरी उम्र अब 80 साल हो गई है। इतने साल बहुत कोशिश की लेकिन अब इस उम्र में मतदाता के रूप में पहचान पाकर भी क्या करूंगी? दर-दर भटकने से अच्छा है कि आखिरी समय शांति से प्रभु के भजन में बिता दूं।’’ यह कहना है वृंदावन में एक मंदिर में भजन के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रही अनिता दास का। कोलकाता से 17 साल पहले पति के निधन के बाद वृंदावन आई दास की तरह की हजारों विधवायें ऐसी हैं जिन्हें परिवार ने ठुकरा दिया, समाज ने भी जगह नहीं दी और मतदाता पहचान पत्र नहीं होने के कारण अब लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व चुनाव में भी उनकी सहभागिता नहीं है।
10 रुपये के लिए चार घंटे इंतजार करती हैं विधवाएं
जानकारी अनुसार मथुरा लोकसभा क्षेत्र में वृंदावन, राधाकुंड और गोवर्धन की तंग गलियों में कहीं भीख मांगती, कहीं तपती धूप में भंडारे की कतार में खड़ी तो कहीं मात्र 10 रुपये के लिये चार घंटे भजन गाने के लिए अपनी बारी का इंतजार करती सफेद साड़ी में लिपटी ये महिलायें किसी राजनीतिक दल का वोट बैंक नहीं हैं। लिहाजा राजनीतिक उदासीनता ही इनकी नियति है। मथुरा के 18 लाख से अधिक मतदाताओं में इनकी संख्या एक प्रतिशत भी नहीं है। परिवार छोड़ा तो पहचान भी ये वहीं छोड़ आईं। आश्रमों में रहने वाली इन महिलाओं में से नाममात्र के पास मतदाता के रूप में पहचान पत्र है लेकिन उम्र के आखिरी पड़ाव पर खड़ी इन अधिकांश महिलाओं का नाम किसी मतदाता सूची में दर्ज नहीं है। दास का कहना है कि मुझे पता है कि चुनाव हो रहे हैं। बंगाल की हालत भी गंभीर है लेकिन मैं यहां शांति से रहना चाहती हूं। ना तो वोट डालने में रूचि रह गई है और ना ही वोटर आईडी बनवाने में।’’
देश की नागरिक तो हैं लेकिन मतदाता नहीं
वहीं पति के निधन के बाद बहू की कथित प्रताड़ना से तंग आकर 15 साल पहले यहां आई महानंदा अपनी स्मृति पर जोर डालने की कोशिश करते हुए कहती हैं, ‘‘शायद दस साल पहले वोट डाला था। मेरे पास आधार कार्ड है लेकिन वोटर आई डी नहीं है और बनवाने के लिए अब इधर किसको बोलूं?’’ लेकिन 67 साल की गायत्री मुखर्जी को इसका मलाल है कि वह देश की नागरिक तो हैं लेकिन मतदाता नहीं। पति के न रहने के बाद इकलौती बेटी को कैंसर से खोने के कारण बेसहारा हुई मुखर्जी इलाज के लिए लिया गया कर्जा चुकाकर वृंदावन आई थीं। उन्होंने कहा, ‘‘पहले मैं किराये से रहती थी लेकिन हमेशा डर रहता था कि पास में थोड़ा बहुत जो भी सामान है, चोरी न हो जाये। इसके अलावा कदम-कदम पर अपमान होता था सो अलग। मेरी किस्मत अच्छी थी कि आश्रम में जगह मिल गई।’’ राजनीतिक रूप से काफी जागरूक मुखर्जी ने कहा, ‘‘कोलकाता में मैंने हर चुनाव में मतदान किया। मैं इस देश की नागरिक हूं और मुझे लगता है कि सरकार बनाने में मेरा भी योगदान होना चाहिए। शायद अब यह संभव नहीं तो दुख मनाने से क्या होगा।’’
वृंदावन में हैं 10-12 हजार विधवाएं
वैसे तो कभी भी इन महिलाओं की आधिकारिक तौर पर गिनती नहीं की गई बताई जाती है लेकिन एक अनुमान के अनुसार करीब 10 हजार से 12 हजार विधवायें वृंदावन में हैं। पिछले चौदह साल से इन महिलाओं के कल्याण के लिए कार्यरत ‘मैत्री’ विधवा आश्रम की सह संस्थापक और कार्यकारी निदेशक विन्नी सिंह ने कहा,‘‘आखिरी बार 2007 में इनकी गणना हुई थी जिसके बाद से कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है लेकिन करीब 10 से 12 हजार विधवायें वृंदावन में हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इनमें अब सिर्फ बंगाल ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ, मध्यप्रदेश से भी महिलाएं आ रही हैं। मुझे रोज 25 से 30 फोन आते हैं। हम 400 महिलाओं की देखभाल कर रहे हैं लेकिन इससे कहीं बड़ा आंकड़ा उनका है जिनके पास छत नहीं है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इनमें से पांच से सात प्रतिशत के पास ही वोटर आईडी होगा। हमने आधार कार्ड बनवाये, बैंक खाते भी कइयों के खुल गए लेकिन वोटर आईडी के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटकर अब थक गए हैं। किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये वोट देती हैं या नहीं।’’
तंग और किराये के गंदे कमरों में रहने को हैं मजबूर
अभिनेता आमिर खान के काफी लोकप्रिय रहे शो ‘सत्यमेव जयते’ में विधवाओं की व्यथा रखने वाली सिंह ने कहा, ‘‘अधिकांश को विधवा पेंशन जैसी सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं मिल पा रहा है। सिर्फ 300 रुपये महीना पेंशन का प्रावधान है लेकिन दुखद है कि वह भी सभी को मयस्सर नहीं है।’’ कुछ को निजी या सरकारी आश्रमों में जगह मिल गई लेकिन अधिकांश तंग और किराये के गंदे कमरों में रहने को मजबूर हैं। मंदिरों के शहर वृंदावन में भजन गाने के लिये इन्हें टोकन मिलता है और चार घंटे भजन गाकर दस रूपये के साथ चाय और एक समय का खाना। अपनी बारी आने के लिये इन्हें लंबा इंतजार भी करना पड़ता है।
सांसद हेमा मालिनी ने क्या कहा?
वृंदावन के बीचों बीच चौतन्य विहार स्थित सरकारी आश्रय सदन को बंद करके इन्हें शहर के बाहरी इलाके में साढेघ् तीन एकड़ में फैले एक हजार बिस्तरों वाले कृष्ण कुटीर में भेजा गया लेकिन वहां मुश्किल से 250 महिलाएं रहती हैं। अधिकांश महिलाएं इसलिए नहीं जाना चाहती कि वे भगवान कृष्ण और वृंदावन से दूर हो जाएंगी। मथुरा से तीसरी बार चुनाव लड़ रही सांसद हेमा मालिनी ने कहा, ‘‘2018 में इनके लिए कृष्ण कुटीर बनाया गया जहां सारी अत्याधुनिक सुविधायें हैं। लेकिन ये वहां जाना ही नहीं चाहतीं। शायद ये जहां रहती हैं, वहीं खुश हैं। हम भी क्या कर सकते हैं।’’देश में एक ही संविधान है जिसमें सबको अधिकार बराबर दिए गए हैं। फिर भी मथुरा लोकसभा क्षेत्र के वृंदावन में रहने वाली इन महिलाओं संग यह दोहरी नीति कौन और क्यों अपना रहा है इसकी जांच भी निर्वाचन आयोग को कराने के साथ साथ टीम भेजकर यह पता लगाना चाहिए कि आखिर दुनिया की आधी आबादी और पूजनीय इन बुजुर्ग महिलाओं जिन्हें परिवार द्वारा ठुकरा दिया गया परिस्थितियों ने इस हाल में पहुंचा दिया से मतदान का अधिकार क्यों छीना जा रहा है। मेरा मानना है कि अभी समय है कि पूरे मथुरा लोकसभा क्षेत्र में अभियान चलाकर इन महिलाओं के आधार कार्ड बैंक खाते प्राथमिकता से खुलवाने के साथ मतदाता पहचान पत्र बनवाने चाहिए और प्रधानमंत्री जो मातृशक्ति को आगे बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं उन्हें भी इस ओर ध्यान देकर अनीता दास जैसी हजारों महिलाओं जो मतदान की इच्छा रखती थी के वोट बनवाकर उसका उपयोग करने के लिए मानसिक रूप से तैयार किया जाए। इस कार्य में सामाजिक संगठनों का सहयोग प्रशासन ले सकता है।
कृष्ण कुटीर में भेजा जाए
चाहे जो हो इन्हें मतदान का अधिकार मिलना जरूरी है का ध्यान रखते हुए तुंरत हो कार्रवाई। तथा प्रयास करने चाहिए कि इनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए कृष्ण कुटीर में भेजा जाए जिससे इनका अंतिम समय भगवान की भक्ति के साथ सुख शांति से बीत सके।