Wednesday, November 12

फर्जी खबर मीडिया के किसी भी क्षेत्र से संबंध हो उस पर कार्रवाई होनी ही चाहिए लेकिन सरकार जनप्रतिनिधि व अधिकारी यह भी सुनिश्चित करे कि झूठे मामलों में किसी को ना फंसाया जाए

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संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की केंद्रीय स्तर की स्थायी समिति ने अपनी मसौदा रिपोर्ट में एआई का इस्तेमाल कर फर्जी खबरों को फैलाने वाले लोगों व संस्थानों की पहचान कर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने को कहा है। लोकसभा के सदस्यों की इस समिति का कहना है कि प्रौद्योगिकी उपयोग सूचना का पता लगाने के लिए किया जा रहा है लेकिन यह गलत सूचना का स्त्रोत भी हो सकती है। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की अध्यक्षता वाली समिति की यह रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला जी को बीते दिनों सौंपी गई। इस रिपोर्ट में बहुत से सुझाव देेते हुए फर्जी खबरे फैलाने वालों पर कार्रवाई के उपाय भी सुझाए गए हैं। जिसमें एआई सामग्री निर्माताओं के लिए लाइंसेंसिंग आवश्यकताओं का पता लगाने और एआई की वीडियो व सामग्री का पता लगाने व अंतर मंत्रालीय समन्वय की सिफारिश भी की है।
सोशल मीडिया एसो. के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में मेरा भी मानना है कि फर्जी खबरों पर रोक लगनी चाहिए क्योंकि ऐसा ना होने से जो लोग ठोस तथ्यों के आधार पर विश्वसनीय खबरें छापने की कोशिश करते हैं उनकी छवि बिना वजह खराब हो रही है। सांसदों की समिति ने रिपोर्ट दी है वो विभिन्न क्षेत्रों से जीतकर आते हैं उनका ज्ञान बेहिसाब होता है। उनकी किसी बात पर सवाल उठाना सही नहीं है। मगर फर्जी खबर फैलाने के नाम पर जो कार्रवाई हो रही है कुछ समय बाद उनका खुलासा होता है तो पता चलता है कि वो आरोप कुछ लोगों द्वारा रचे गए थे जिसके कारण उनको नुकसान उठाना पड़ रहा था। इसलिए किसी बड़े उद्योगपति, राजनेता या अन्य के कहने या शिकायत करने पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। पहले उसकी सत्यता परखी जाए और फर्जी खबर को लेकर उत्पीड़न किए जाने वाले संस्थान से भी मामले के बारे में पूछा जाए। हर क्षेत्र के कुछ लोग अपने पैसे या दबंगई के नाम पर मीडिया के लोगों को परेशान कर या लालच में लेकर काम कराने की कोशिश करते हैं और ना करने पर इनके द्वारा पैसे या प्रभाव के दम पर ब्लैकमेलर बताकर उत्पीड़न कराया जाता है। मेरा मानना हेै कि चार पांच दशक में जितने भी फर्जी खबरों के मामले सामने आए और उन्हें लेकर मीडियाकर्मियों का उत्पीड़न किया गया लेकिन बाद में पता चला कि वो प्रायोजित थे। एक समिति बनाकर उनका पता लगाया जाए और तय किया जाए कि फर्जी खबर की क्या श्रेणी है। आरोप लगाने या छापने वाले किसी मीडियाकर्मी को झूठे मामलों में फंसाना आसान है क्योंकि ना तो उसे इतना वेतन मिलता है कि वो धनवालों से उलझे। इसलिए सरकार की यह जिम्मेदारी है कि किसी को गलत तरीके से ना फंसाया जाए और उसे रोकने की जिम्मेदारी जनप्रतिनिधियेां की है जो उन्हें निभानी ही चाहिए।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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