वास्तुशास्त्र की चर्चा हमें आए दिन सुनने को मिलता है। कई बार इसके कारण बड़े-बड़े निर्माण चाहे घर हो या दुकान आदि में तोड़फोड़ कर लाखों रूपये का खर्चा किया जाता है। मेरा मानना है कि किसी बात को हम नकार नहीं सकते लेकिन जिन बातों को लेकर हम लोगों को डराते हैं और साधन संपन्न व्यक्तियों के मन में वहम डाला जाता है वो बातें अगर सोचें तो देश की आधी से ज्यादा गरीब आबादी पर भी लागू होती है मगर ना तो उनके घरों में वास्तु का कोई डर होता है और ना ही इससे होने वाले नुकसानों का भय। यह बात सही है कि अपनी रसोई में मां अन्नपूर्णा का वास बना रहे इसके लिए साफ सफाई के साथ ही बेकार सामान वहां से हटाया जाए जिससे ताजी हवा मिलती रहे। और गंदगी भी नजर ना आए। एक बार पढ़ा था कि बासी भोजन ना खाना चाहिए ना फ्रिज में रखना चाहिए क्योंकि इससे नुकसान होता है। अब सवाल उठता है कि ९० प्रतिशत घरों में फ्रिज है। परिवार गरीब हो या अमीर ५० प्रतिशत काम सभी महिला पुरुष करते हैं ऐसे में रात या सुबह को खाना बनाकर रखना और गर्म कर खाना अनिवार्य है। ऐसे परिवारों में जरुरी नहीं कि सब बीमारी वाले लोग हो। जहां तक टूटे बर्तनों में खाना खाने की बात है तो वास्तु ही नहीं उनका उपयोग तो करना ही नहीं चाहिए मगर देश में जो गरीब और बेसहारा लोग जिनके पास सिर छिपाने को छत नहीं है वह टीन या छप्पर डालकर रहते हैं उनके पास नए बर्तन नहीं होते तो वह टूटे बर्तनों में खाना खाते हैं। इन पर तो वास्तु का असर नजर नहीं आता। झाडू घर में उल्टी नहीं रखनी चाहिए। अब वास्तु में कहते हैं कि रसोई में शीशा कभी भी नहीं रखना चाहिए क्योंकि इससे दोष उत्पन्न हो सकता है। अब जीवन में बहुत कुछ हो सकता है और अलमारियों आदि में भी आजकल शीशे लगे रहते हैं। कहने का आश्य सिर्फ इतना है कि जो लोग वास्तु मानते हो उन्हें जरुर मानना चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर इसके विद्वानों को भी राय जरुर देनी चाहिए लेकिन वास्तु को लेकर जागरूकता के नाम पर लेख छपवाकर जो स्थिति उत्पन्न की जाती है सबसे ज्यादा घातक तो वही है क्योंकि जिस भगवान ने हमें यह जीवन दिया उसी ने हमें जैसे रखने की सोची वैसे ही हम रह रहे हैं। यह किसी से छिपा नहीं है कि एक समान तो भगवान ने भी किसी को नहीं बनाया। हर व्यक्ति धनवान हो वो भी नहीं है तो सब गरीब भी नहीं मगर जो फर्क पैदा किया गया है उसे ना तो वास्तुशास्त्र अपनाकर दूर किया जा सकता है ना दान भीख देकर। जरुरतमंदों की मदद करने के लिए बड़े लोग आगे आए यह उनकी भलाई का परिणाम है क्योंकि जब भगवान ने हमें सबकुछ दिया है तो यह सिद्धांत कि मैं भी भरपेट खाउं और पड़ोसी भी भूखा ना सोए अपनाकर उनकी मदद की जा कसती है और केवल अपने लेख छपवाकर लोगों को डराने की बजाय लोगों का ऐेसे भवन उपलब्ध कराएं जाएं जिनमें वास्तु का ध्यान रखा जाए जिससे गरीब आदमी भी संपन्न हो सके। एक कहानी पढ़ रहा था जिसमें एक महिला घर में नौकरी करती है। वो अपना कुछ सामान बेचना चाहता था। महिला ने प्रार्थना कर उसे देने की मांग की। परिवार ने दे दिया। इसके बाद महिला का परिवार उन बर्तनों में खाना खाता था और अपने से नीचे वालों को दिखाता था। कहने का मतलब है कि वास्तु के नाम पर गरीबों में वहम डालना बंद करें। उनसे उपाय करवाएं मगर आम आदमी को इससे दूर रखा जाए तो अच्छा है। वर्तमान में भले ही रिश्तों की गरिमा कुछ कम हुई तो लेकिन मां बाप बच्चों को दुख देेने की नहीं सोचते तो फिर अगर वास्तु का पालन ना किया जाए तो उसे नुकसान कैसे किया जाए। घर में ताजी हवा आने और साफ सफाई का पूर्ण ध्यान रखें। टूटे बर्तन हाथ में ना लगे इसके लिए इंतजाम किए जाएं। सलाहकार खुद भी जान ले कि जिसके पास व्यवस्था है वो ना टूटे बर्तनों में खाता है ना गंदगी में रहता है। भगवान कितने दयालु है इसका अंदाजा वास्तु शास्त्री इससे लगा सकते हैं कि चार दशक पूर्व एक तीन मंजिले मकान की एक कोठरी में मैं रहता था और दशहरा होली दीपावली व अन्य अवसरों पर पैसे कमाने के चक्कर में घर में झाडू भी नहीं लगती थी। भगवान ने मेरे ऊपर मेहरबानी की और आज मैं एक सुखी परिवार के मुखिया के रूप में जीवनयापन कर रहा हूं। माता पिता किसी भी रूप में नुकसान करने की सोचते ही नहीं होंगे जिस प्रकार परिवार का मुखिया सबकी खुशहाली के बारे में सोचता है वैसा ही भगवान सोचता है। इसलिए जिसे जरुरत हो उसे ज्ञान दिया जाए और आम आदमी को इससे दूर रखे। देश में बरगद के पेड़ के नीचे बैठे सज्जन नजर आएंगे और उनके पास दो रोटी का भी जुगाड़ नहीं होता लेकिन वह दूसरों का भविष्य बनाने का दावा करते हैं। अगर वास्तु से खुशहाली आती है तो उनके परिवारों में क्यों नहीं।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
घर की रसोई छोटी हो या बड़ी मां अन्नपूर्णा का वास तो वहां होता ही है, वास्तु के नाम पर मध्यम और गरीब परिवारों मेें वहम डालना बंद हो
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