Sunday, December 22

हाईकोर्ट के जजों के लिए सालाना संपत्ति की घोषणा अनिवार्य की जाएः सुशील मोदी

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नई दिल्ली 12 दिसंबर। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने सोमवार को कहा कि उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए सालाना संपत्ति की घोषणा करना अनिवार्य किया जाना चाहिए, जैसा कि मंत्रियों और नौकरशाहों द्वारा किया जाता है। उन्होंने इसे लागू करने के लिए मौजूदा कानून में संशोधन करने या एक नया कानून बनाने का सुझाव दिया।

सदन में शून्यकाल के दौरान यह मुद्दा उठाते हुए भाजपा के वरिष्ठ सदस्य ने कहा कि प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों और आईएएस तथा आईपीएस अधिकारियों जैसे नौकरशाहों को सालाना अपनी संपत्ति की घोषणा करनी होती है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया है कि जनता को विधानसभाओं और संसद के लिए चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की संपत्ति के बारे में जानने का अधिकार है इसलिए उम्मीदवार इसकी घोषणा करते हुए एक हलफनामा भी दायर करते हैं। निर्वाचित होने के बाद जनप्रतिनिधियों को अपनी संपत्ति का ब्योरा देना होता है। उन्होंने कहा, ‘‘सार्वजनिक पद पर आसीन और सरकारी खजाने से वेतन ले रहे किसी भी व्यक्ति को अनिवार्य रूप से अपनी संपत्तियों का वार्षिक ब्योरा घोषित करना चाहिए, भले ही वह किसी भी पद पर हो।’’

भाजपा सदस्य ने सुझाव दिया कि सरकार को या तो मौजूदा कानून में संशोधन करना चाहिए या उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के लिए अपनी संपत्ति की घोषणा करना अनिवार्य बनाने के लिए एक नया कानून बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक मतदाता के रूप में जिस प्रकार किसी विधायक या सांसद की संपत्ति का विवरण जानने का अधिकार है, वादी को भी उसी प्रकार न्यायाधीशों की संपत्ति जानने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि इससे न्यायिक प्रणाली में वादी का विश्वास फिर से पैदा होगा।

उन्होंने कहा कि मई 1997 में उच्चतम न्यायालय की पूर्ण पीठ ने फैसला किया था कि सभी न्यायाधीश अनिवार्य रूप से अपनी संपत्तियों की घोषणा करेंगे। लेकिन बाद में एक पूर्ण पीठ ने इसे स्वैच्छिक बना दिया।

सुशील मोदी ने कहा कि उन्होंने सुबह उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट देखी और पाया कि संपत्ति घोषणा अनुभाग को 2018 से अपडेट नहीं किया गया है क्योंकि संपत्ति की घोषणा स्वैच्छिक कर दी गई है। भाजपा सदस्य ने कहा कि केवल पांच उच्च न्यायालयों ने ऐसी जानकारी प्रदान की है, और वह भी केवल कुछ न्यायाधीशों के बारे में।

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