गोरखपुर,11 अगस्त। आने वाले वक्त में इंसानों की एंटीबॉडी रेबीज से लड़ने का एक कारगर हथियार साबित हो सकती है। वैज्ञानिकों से इस दिशा में काबिलेगौर सफलता हासिल कर ली है। इस फॉर्मूले से तैयार इंजेक्शन का परीक्षण भी सफल रहा।
मानव रेबीज मोनोक्लोनल एंटीबॉडी बेहद सुरक्षित और असरदार हैं। यह रेबीज के मरीजों पर उतनी ही असरदार है, जितना पारंपरिक इक्वाइन रेबीज इम्युनोग्लोबुलिन इंजेक्शन है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा विकसित इस वैक्सीन का गोरखपुर एम्स ने देश के अलग-अलग 15 सेंटरों पर करीब तीन हजार मरीजों पर एक साल तक परीक्षण किया, जो सफल रहा। यह अपेक्षाकृत सस्ती भी है। एम्स का यह अध्ययन द लैंसेट अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। शोध में शामिल एम्स के प्रो. हीरा लाल भल्ला ने बताया कि अब तक कुत्ते के काटने पर मनुष्यों को ईआरआईजी एवं आरआईजी वैक्सीन ही लगाई जाती है। ये दोनों घोड़े के सीरम सहित जानवरों के रेबीज से बनाई जाती हैं। उसमें मरीजों पर रिएक्शन होने की संभावना रहती है। अगर समय से एंटी रेबीज वैक्सीन नहीं लगती है तो ऐसी स्थिति में मरीज की जान जा सकती है। इसे ध्यान में रखते हुए सीरम इंस्टीट्यूट ने मानव रेबीज मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (आरएमएबी) बनाई है।
आरएमबी असरकारक के साथ बेहद सुरक्षित
डॉ. हीरा भल्ला ने बताया कि एक साल तक गंभीर मरीजों पर इसका ट्रायल किया गया। इस दौरान देखा गया, आरएमएबी पारंपरिक इक्वाइन रेबीज इम्युनोग्लोबुलिन जितनी ही सुरक्षित और प्रभावी है। •अध्ययन में दवा से संबंधित कोई गंभीर प्रतिकूल घटना नहीं हुई और दोनों समूहों में एक साल तक एंटीबॉडी प्रतिक्रिया दर समान और अच्छी रही है। आरएमएबी एंटीजन साइट को लक्षित कर वायरस के फैलाव को रोकने में असरदार साबित हुई है। इसे डब्ल्यूएचओ ने भी स्वीकार किया है।
बच्चे अधिक शिकार
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार, रेबीज के कारण हर साल दुनिया भर में लगभग 59,000 लोगों की मौत हो जाती है, जिनमें से 95% से अधिक मौतें एशिया और अफ्रीका में होती हैं। यह दुखद है कि इन मौतों में से लगभग 40% मौतें 15 साल से कम उम्र के बच्चों की होती हैं।