कर्नाटक के कैबिनेट मंत्री प्रियांक खरगे द्वारा १३ अक्टूबर को लिखे गए पत्र में नियमों की पंक्तियां कोट की थी कि सरकारी कर्मियों को संघ की गतिविधियों में हिस्सा लेने से रोका जाए। उक्त पत्र के हवाले से कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया सरकार ने भाजपा के किसी भी हमले का जवाब देने के लिए तत्काल भाजपा सरकार का २०१३ का एक सर्कुलर जारी किया है जिसमें सरकारी स्कूलों के परिसर और खेल मैदान का उपयोग सिर्फ शैक्षिक कार्यो के लिए घोषित किया था। कैबिनेट बैठक के बाद उन्होंने कहा कि आपको जो करना है सरकार से अनुमति लेने के बाद ही करना होगा। वह उस पर ही निर्भर करेगा कि वह अनुमति प्रदान करे या नहीं। प्रियांक खरगे का कहना है कि आप सड़क पर लाठी लहराते हुए नहीं चल सकते। हम जो नियम लाना चाहते हैं वह सार्वजनिक स्थानों स्कूल कॉलेजों व अन्य स्थानों के बारे में है। हम गृह विभाग विधि विभाग और शिक्षा विभाग के पिछले आदेशों को मिलाकर एक नया नियम बनाएंगे। हर सरकार की अपनी व्यवस्था होती है। जब वो जनहित में मानव समूह की भावनाओं का ध्यान रख निर्णय लेती है तो उसकी तारीफ होती है और जब कोई निरंकुश फैसला लिया जाता है तो आलोचना भी होती है।
मैं किसी भी तरह की सांपद्रायिक या नियम विरूद्ध होने वाले कार्यक्रमों का ना समर्थक हूं और ना उसे अनुमति यह चाहता हूं लेकिन कर्नाटक सरकार को आरएसएस की गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए नियम बनाने के साथ यह भी सोचना होगा कि आरएसएस कोई ऐसी व्यवस्था नहीं है जिसे कोई आसानी से हिला सके। यह बरगद के पेड़ की तरह मजबूत है। यह देश की एकता अखंडता और देशभक्ति के साथ भाईचारे का संदेश दे रहा है। इसलिए इसे दबाना अथवा रोक टोक लगाना आसानी से संभव नहीं है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री और वहां की सरकार यह समझ ले कि आजादी के बाद से ही आरएसएस के पीछे पड़े रहने के बावजूद कांग्रेस ने समय समय पर इस पर अंकुश लगाने की कई कोशिश की। इमरजेंसी में इसके नेताओं को जेल भेजा मगर संघ की विचारधारा और कार्यकर्तओं का जोश मजबूत ही होता रहा। १९७५ में प्रधानमंत्री इंदिरागांधी द्वारा आरएसएस के पथ संचलन से घबराकर कार्रवाई की गई थी। क्योंकि हर देशप्रेमी आरएसएस की नीतियों और उसके कार्यक्रमों में अपना विश्वास रखता है। वर्तमान में केंद्र और ज्यादातर प्रदेशों में संघ को मान्यता देने वाली सरकारें है। ऐसे में जब कोई इनका समर्थक नहीं था तभी इनकी गतिविधियों को कोई समाप्त नहीं कर पाया तो वर्तमान में तो यह संभव नहीं लगता है।
प्रिय पाठक इसे पढ़कर सोचेंगे कि मैं आरएसएस का कार्यकर्ता या इसका समर्थक हूं तो यह सभी समझ लें कि मैं जो यह कह रहा हूं वो आम आदमी की आवाज कह सकते हैं क्योंकि देश की १५० करोड़ की आबादी में से १०० करोड़ संघ परिवार की नीतियों और उसके पथ संचलन का समर्थन करती है क्योंकि इससे कुछ विध्वंसकारी और गलत काम करने वाली की सोच पर अंकुश लगता है और उन्हें समझ आता है कि भाईचारे को नुकसान पहुंचाने की कोशिश हुई तो यह जो लाठियां पथ संचलन में काम आ रही है वो विध्वंशकारी सोच पर रोक लगाने का काम करेंगी।
कर्नाटक सरकार और मुख्यमंत्री जी अगर यह बिना वजह का विवाद आरएसएस की गतिविधियों पर रोक लगाने की करने की बजाय जनहित में सोचे और उनकी समस्याओं के समाधान के लिए काम करे तो मेरे ख्याल में सीएम एक सफल राजनेता के रूप में उभरकर सामने आएंगे। इसलिए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के पुत्र के सुझाव मानकर ऐसे विवाद में ना पड़े तो अच्छा है जिसे लेकर समस्या खड़ी होती हो। सिद्धारमैया की आप सुलझे विचारों के नेता है लेकिन सरकार की ताकत के जोर पर आरएसएस की गतिविधियों को रोकने के लिए नियम बनाए गए तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अहिंसा मार्ग पर चलकर जो आंदोलनों का दौर आएगा वो सरकार के लिए कष्टदायक हो सकता है क्योंकि महात्मा गांधी ने इसी दम पर अंग्रेजों से देश को आजादी दिलाई थी। कुल मिलाकर कह सकता हूं कि अगर कर्नाटक की कांग्रेस सरकार चुनावी घोषाणाओं और नीतियों को पालन कराने पर ध्यान दे तो ज्यादा अच्छा है। आरएसएस को लेकर जनमानस की भावना से टकराव किसी भी रूप में उचित नहीं कहा जा सकता। लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने का अधिकार है तो फिर आरएसएस की गतिविधियों पर रोक की व्यवस्था क्यों।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
मुख्यमंत्री सिद्धरमैया जी आरएसएस की राष्ट्रभक्ति से परिपूर्ण गतिविधियों पर रोक के बारे में सोचना ही गलत है, संघ परिवार से जुड़ा जनसमूह शायद बर्दाश्त नहीं कर पाएगा, संघ परिवार की गतिविधियों पर रोक क्यों
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