Wednesday, October 29

फर्जी डिग्री बनाने में मेरठ के दो समेत पांच गिरफ्तार

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सहारनपुर/मेरठ, 29 अक्टूबर (प्र)। कई प्रदेशों की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी की फर्जी डिग्रियां और मार्कशीट तैयार कर बेचने वाले अंतर्राज्यीय गिरोह के दो मास्टर माइंड सहित पांच आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। गिरफ्तार आरोपियों में एक सहायक प्रोफेसर भी शामिल है। गिरोह में शामिल छह आरोपी अभी भी पुलिस की पकड़ से बाहर हैं।

एसपी सिटी व्योम बिंदल ने पत्रकार वार्ता में बताया कि कोतवाली सदर बाजार पुलिस को गोविंदनगर निवासी अश्वनी कुमार ने शिकायत की कि कुछ लोगों ने मार्कशीट दिलाने के बहाने उससे 70 हजार रुपये ले लिए और फर्जी मार्कशीट थमा दी। पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर गिरोह के मास्टरमाइंड मेरठ के दौराला निवासी पर्वत कुमार, कंकरखेड़ा जनपद मेरठ निवासी सिद्धार्थ शंकर, सहारनपुर के रामपुर मनिहारान निवासी जसबीर सिंह, जनता रोड निवासी रिंकू कुमार के अलावा मुजफ्फरनगर के गांव चांदसमद निवासी अक्षय देव को भी गिरफ्तार किया। जसबीर सहायक प्रोफेसर है, जो सहारनपुर की एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी में भी नौकरी कर चुका है। गिरोह का नेटवर्क सहारनपुर सहित गाजियाबाद, लखनऊ बरेली, मेरठ तक फैला है। पुलिस ने 240 फर्जी डिग्री, मार्कशीट, लैपटॉप, दस हजार, नौ फोन और एक कार बरामद की है। गिरोह फर्जी मार्कशीट और डिग्री तैयार कर 30 हजार से चार लाख रुपये तक में बेचते थे।

कई यूनिवर्सिटी के इन कोर्स की डिग्री करते थे तैयार
एसपी सिटी ने बताया कि यह गिरोह देश की नामचीन यूनिवर्सिटी की बीफार्मा, बीटेक, एमसीए, बी-फार्म, डी-फार्मा, एमबीबीएस आदि की फर्जी डिग्रियां तैयार करते थे। आरोपियों ने सहारनपुर की ग्लोकल यूनिवर्सिटी, मेरठ की चौधरी चरण सिंह, सुभारती, शोभित यूनिवर्सिटी के अलावा क्रिश्चियन यूनिवर्सिटी, गढ़वाल की महाराजा अग्रसेन मॉडल गढ़वाल यूनिवर्सिटी, हिमालय यूनिवर्सिटी और नागालैंड की यूनिवर्सिटी की भी फर्जी डिग्रियां और मार्कशीट तैयार की हैं, जिनको पुलिस ने बरामद कर लिया है।

वर्ष 2022 तक मिला रिकॉर्ड
एसपी सिटी ने बताया कि पकड़े गिरोह के पास से वर्ष 2022 से तैयार फर्जी डिग्रियां और मार्कशीट मिली है। मगर गिरोह के फैले नेटवर्क से यही प्रतीत हो रहा है कि यह गिरोह इस समय से भी पहले से ही सक्रिय है। आरोपियों के अन्य साथियों की गिरफ्तारी पर पता लगेगा कि आरोपी कब से फर्जीवाड़ा करने में जुटे थे। आरोपियों को मुख्य आरोपी कमीशन देते थे।

कोचिंग सेंटरों से था संपर्क
गिरोह के सदस्य शहरों में खुले कोचिंग सेंटर से संपर्क साधते थे। वहां पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं से भी संपर्क बनाते थे और जरूरतमंदों को उनकी जरूरत के हिसाब से फर्जी डिग्री और मार्कशीट बनाने का भरोसा दिलाते थे। छोटे कोर्स की डिग्री 30 हजार रुपये तक में तैयार कर देते थे, जबकि एमबीबीएस और बीयूएमएस की डिग्री के तीन से चार लाख रुपये वसूल लेते थे।

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