मेरठ 28 अक्टूबर (प्र)। लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे डबल डेकर बस में आग लगने की घटना में भले ही कोई जानी नुकसान न हुआ हो लेकिन आंध्र प्रदेश में बस में लगी आग में 20 लोगों की जान चली गई। लंबे रूट पर चलने वाली बसों में कई बार आग लगने का कारण लापरवाही भी होता है। बसों में आग की इन घटनाओं को रोकने के उपायों पर हमने चर्चा की उत्तर प्रदेश परिवहन निगम में टेक्निकल मैनेजर पद से सेवानिवृत्त राजबीर सिंह से। उन्होंने बताया कि एसी बसों में बार-बार ब्रेक लगने, तेज गति, एसी कंप्रेशर आदि आग लगने के प्रमुख कारण हो सकते हैं। इन सभी से स्पाकिंग होती है, जो आग का कारण बन सकती है।
कंप्रेशर स्टार्ट होते समय स्पार्किंग की ज्यादा आशंका
राजबीर सिंह ने बताते हैं कि बस के स्टार्ट होने के कुछ देर के बाद एसी का कंप्रेशर शुरू होता है तो इंजन पर जोर पड़ता है। यदि इंजन की सर्विस में देरी हुई है तो स्पाकिंग होगी और आग लगने की आशंका बढ़ जाएगी। टायर में हवा कम है और बार-बार ब्रेक लगते हैं तो भी टायर में चिंगारी उठती है और आग लगने का यह भी एक कारण हो सकता है। तेज रफ्तार बस में अचानक ब्रेक लगने पर टायरों में आग लगने की आशंका रहती है। इसलिए बसों के एसी की हर माह सर्विस जरूरी होता है फिटनेस भी जरूरी होता है।
पार्सल तेजी से पकड़ते है आग
मेरठ ट्रांसपोर्टर एसोसिएशन अध्यक्ष गौरव शर्मा का कहना है कि इस तरह की बसों में अवैध रूप से पार्सल नीचे वाली सतह की डिग्गी में भर लिए जाते हैं। इंजन भी नीचे ही होता है। स्पाकिंग के कारण पार्सल आग पकड़ लेते हैं और पूरी बस आग की चपेट में आ जाती है।
बस की आंतरिक साज-सज्जा बदलना बड़ी लापरवाही
राजबीर सिंह कहते हैं कि नई गाड़ी में आंतरिक साज-सज्जा को बदलवा लेते हैं। साइड में आपातकालीन गेट को पीछे ले जाते हैं। सीटों के कवर को बदलवा देते हैं। यह भी नहीं करना चाहिए। इससे बस में जगह कम हो जाती है और हादसे के वक्त भागने के लिए यात्रियों को परेशानी होती है।
मेरठ में यहां से चलती हैं लंबी दूरी की बसें
मोदीपुरम, बेगमपुल, बेगमब्रिज, फुटबाल चौराहा, गढ़ रोड,परतापुर बाइपास आदि स्थानों से आगरा, लखनऊ, दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, देहरादून, मध्यप्रदेश के लिए बसें जाती है। एआरटीओ राजेश कर्दम ने बताया कि उनके यहां तीन तरह के परमिट दिए जाते हैं।
बस में ये सुविधाएं बेहद जरूरी
फायर एक्सटिंग्विशर: बस में एक फायर एक्सटिंग्विशर ड्राइवर के पास और एक बीच में होना चाहिए।
हर छह महीने में इनकी जांच भी होनी चाहिए।
अलार्म सिस्टम : धुआं और आग का अलार्म होना चाहिए, जिससे आपात स्थिति में यात्रियों को सुरक्षित तरीके से बाहर निकल सके।
आपात निकास: बस में कम से कम दो आपातकालीन दरवाजे और खिड़कियां होनी चाहिए. साथ ही दरवाजे और खिड़कियां आसानी से खुलने योग्य हों। शटर या जंजीरों से फंसने वाले रास्ते नहीं होने चाहिए।
प्रशिक्षण: चालक और स्टाफ को फायर सेफ्टी और आपातकालीन निकासी का प्रशिक्षण होना जरूरी है। ताकि यात्रियों को वह सुरक्षित बाहर निकाल सके।
संकेतक : आपातकालीन निकास के पास स्पष्ट संकेत और निर्देश होने चाहिए। यात्रियों को पता होना चाहिए कि निकास कहां है। (नोट: एआरटीओ राजेश कर्दम के अनुसार।)
एआरटीओ राजेश कर्दम का कहना है कि समय-समय पर निजी बसों की चेकिंग करते हैं। जो बस मालिक अपनी बस का फिटनेस नहीं कराते, उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाती है। बसों में आग लगने के कई कारण हो सकते हैं।
