देश हो या संस्थान सबको अपनी बात कहने का अधिकार प्राप्त होता है। शायद इसीलिए कहा जाता है कि सत्ता विपक्ष में संतुलन बनाने के लिए दोनों का मजबूत होना वक्त की सबसे बड़ी मांग व आम आदमी की कठिनाईयों का समाधान व विकास को गति तभी मिल सकती है। जहां तक नजर आता है सरकार तो अपने आप हिसाब से कार्यकरती ही है। और जो करती है उसे लगता है कि सही है। ऐसे में गलत सही का अहसास कराने की जिम्मेदारी विपक्ष के नेताओं के कंधों पर होती है। हर देश में यह परंपरा निभाई तो जा रही है लेकिन जिस तरह से इसे जनता और सरकार के सामने रखा जाना चाहिए वो शायद नहीं हो पा रहा है क्योंकि विपक्ष आपस में ही एक दूसरे की आलोचना करने और कमियां निकालने का कोई मौका नहीं चूक रहा है। जबकि सब जानते हैं कि पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सपा आदि दलों ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा तो बहुत दिनों बाद लोकसभा में विपक्ष का नेता चुना गया और राहुल गांधी अपनी भूमिका सही प्रकार से निभाने की कोशिश कर रहे हैं मगर नागरिकों व नेताओं की सोच में कुछ ऐसे बदलाव होते हैं जिसके चलते उन्हें भी लगता है कि जो वो कह रहे हैं वो सही है। मगर मेरी निगाह में इसे सही नहीं कह सकते। वर्तमान में जरूरत इस बाद की है कि विपक्ष के नेता एकजुट रहे या अलग हर दल अपने यहां एक समीक्षा सेल बनाकर उसके पदाधिकारियों की यह जिम्मेदारी हो कि सरकार कहां गलत निर्णय ले रही है उन पर विचार कर अगर विपक्ष के नेता संसद और विधानसभाओं में चर्चा करते हुए सरकारी नीतियों और कार्यप्रणाली की निस्पक्ष विरोध करे तो मेरा मानना है कि सरकार को भी जनहित के काम करने हैं और सत्ताधारी दल को चुनाव जीतने हैं इसके चलते हर सुझाव को सरकार भी नजर अंदाज नहीं कर सकती। कानून में सबका हित सुरक्षित किए जाने और गलत कार्यों को रोकने के बिंदु निहित हैं। इसलिए उसके चलते संवैधानिक अधिकारों का उपयोग विपक्ष जनहित के मामलों में कर सकता है। लेकिन देशहित के मुददों पर बिना सोचे आरोप लगाना और बहस में निउत्तर हो जाना ठीक नहीं कह सकते। कहने का आश्य है कि देश को निस्पक्ष विरोधी और सकारात्मक सोचे वाली सरकार की अआवश्यकता है। कुछ बातों को छोड़ दे तो सरकार और विपक्ष अपनी भूमिका निभाने की कोशिश कर रही है। आवश्यकता इस बात है कि हम किसी भावना से ग्रस्त होकर आरोप ना लगाए और ना सरकार योजनाएं बनाए। चुनाव के समय कही गई बातों को निर्वाचन के बाद भी रखें तो काफी अच्छा कार्य सरकार से कराने में विपक्षी नेता सफल हो सकते हैं। सबसे उचित तो यह है कि कुछ व्यक्तिगत व्यवस्था के चलते जो विपक्ष आरोप प्रत्यारोप कर रहा है वो खत्म होनी चाहिए। क्योंकि ग्रामीण कहावत जब तक मुठठी बंद है तब तक सही है वरना अंगुलियों को कोई भी तोड़ सकता है। यही बात विपक्ष पर भी लागू होती है। बंद मुठठी की तरह एक हो जाए तो सरकार जनहित के कार्यों से विमुख नहीं हो सकती।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
विपक्ष अगर जनहित के मुददों की बात करें तो एकजुट होकर सरकार से जनता की समस्याओं का समाधान और हर प्रकार की निरंकुशता रूकवा सकता है
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