Friday, November 22

छोटे कपड़े पहनकर किया जाने वाला डांस और बालिगों के साथ रहने से अगर कोई शिकायत है तो शांतिपूर्ण तरीके से मुखर होना होगा

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समाज में नित नए हो रहे बदलाव और रहन सहन के हिसाब से अब हमें या तो अपने आपको आधुनिक समाज की सोच के साथ चलने लायक बनाना होगा अथवा अपनी सोच से सरकार और माननीय न्यायालय के न्यायाधीशों को भी अवगत कराना होगा। वरना पश्चिमी सभ्यता और अब ओटीटी प्लेटफार्म पर दिखाई जाने वाली वेब सीरीज और फिल्मों में जो वस्त्र पहने जा रहे हैं और नृत्य आदि के साथ जो दिखाया जा रहा है उससे उत्पन्न परिस्थितियों को लेकर आए दिन मन मुटाव और वैमनस्य की भावना जिसे बढ़ने से रोकना समाज हित में जरूरी है वो नहीं रूक पाएगी। क्योंकि हमारी निगाह में छोटे कपड़े पहनकर महिलाओं के नृत्य करने की बात को सही नहीं माना जाता। लेकिन मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने एक पार्टी में छोटे कपड़े पहनकर महिलाओं के नृत्य को देखने पर पांच पुरूषों पर लगे आरोपों के एक मामले को खारिज करते हुए कहा कि इसको लेकर प्रगतिशील दृष्टिकोण अपनाना होगा। तथा यह भी तय हो कि अश्लीलता के दायरे में क्या आता है। न्यायमूर्ति विनय जोशी एवं न्यायमूर्ति वाल्मिकी एसए मेनेजेस की खंडपीठ ने यह निर्णय दिया बताते हैं। इस संदर्भ में प्राप्त प्राथमिकी के अनुसार 31 मई 2023 को पुलिस के छापे में अश्लील नृत्य करते हुए देख रहे पुरूषों के खिलाफ कार्रवाई की गई थी जो नृत्यांगनाओं पर जाली नोट बरसा रहे थे।
दूसरी ओर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा कि बालिग जोड़ों को अपनी मर्जी से एक साथ रहने का अधिकार है। उनके शांतिपूर्ण जीवन में कोई दखलअंदाजी नहीं कर सकता। इस संदर्भ में न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार द्वारा सपना चौहान व सुधाकर चौहान की याचिका को निस्तारित करते हुए यह फैसला दिया। अब अगर ध्यान से देखें तो भले ही हम कितनी सामाजिक प्रगति कर रहे हो या सोच की क्रांति आ रही हो और हम आधुनिक सभ्यता की बात करते हों मगर जीवन में इसे सही नहीं मानते। जबकि अदालत के निर्णय अनुसार यह गलत नहीं है। अब या तो हम समाज हित में इस बात को स्वीकार करें या फिर निर्णय लेने में सक्षम व्यक्तियों तक अपनी विचारधारा पहुुंचाये जिससे वो उस पर भी विचार कर सके। या फिर आंख मींचकर यह सोचकर बैठ जाएं कि जैसा चल रहा है चलने दो। मगर जो भी हो इन मुददों को लेकर अब हमें यह समझ लेना चाहिए कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलकर तो अपनी बात कही जा सकती है वरना अगर ऐसे प्रकरणों के विरोध में कहीं भी हिंसा की बू आएगी तो फिर आम आदमी को जो सुधार की बात करता है उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा और उसे व उसके परिवार के हित में नहीं कहा जा सकता। तो अब यह तय कर लो कि हमें क्या करना है। लेकिन जो भी हो सामाजिक शांति और भाईचारा किसी भी रूप में प्रभावित नहीं होना चाहिए।

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