आजादी के बाद से स्वतंत्र देश में हमारे द्वारा हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस गणतंत्र दिवस गांधी जयंती जैसे राष्ट्रीय पर्व धूमधाम से देशभक्ति के माहौल में मनाए जाते हैं और हर साल इस मामले में बढ़ोत्तरी हो रही है। युवा बुजुर्ग बच्चे बढ़ चढ़कर आयोजनों में भाग लेते और स्वतंत्रता सेनानियों और सैनिकों की वीरता को याद करते हुए उत्साह से इन पर्वों को मनाते हैं। लेकिन लगता है कि कुछ लोगों ने देश पर कुर्बान होने वाले शहीदों के बलिदान से मिली आजादी का मतलब मनमानी करना समझ लिया है। जो सही नहीं है। हमें अपने निहित स्वार्थो को तिलांजलि देकर देशभक्तों ने जो आजाद भारत के सपने देखे थे उन्हें साकार करने की आवश्यकता है। स्वतंत्रता के नाम पर कहीं दबंगई तो कहीं नियमों का उल्लंघन तो नियम कानूनों को तोड़ मरोड़कर अपना घर भरने और आम आदमी का उत्पीड़न करने की कार्यप्रणाली कुछ आर्थिक सामाजिक और शिक्षा के क्षेत्र में मनमर्जी चलाने वाले अपराधियों को यह समझ लेना चाहिए कि देर सवेर उनकी कार्यप्रणाली पर अंकुश लगेगा ही और उससे बचने के लिए हर काम संविधान के तहत अभी से करना शुरू कर दें तो ज्यादा अच्छा है। क्योंकि जब नियम कानूनों के तहत कार्रवाई होगी तो बचाने वाला कोई नहीं मिलेगा। चाहे अपना हो या पराया। अब तो एक ही बात सामने आएगी कि जो जैसा करता है वैसा भरता है। मेरा मानना है कि सरकार ने जनपदों में मिलावट खोरी अवैध निर्माण शिक्षा में धांधली, भ्रष्टाचार लापरवाही, आए दिन लगने वाले जाम रोकने के लिए जिन अधिकारियों को जिम्मेदारी दी है वो ध्यान दें और कार्याे का निस्तारण जनहित में करें तो ही भविष्य में इस मामले में जो अभियान चलने वाले हैं उनकी मार से बच सकते हैं।
आज पूरे देश के साथ ही दुनियाभर में रहने वाले भारतीयों ने खबरों के अनुसार देश का 79वां स्वतंत्रता दिवस भाईचारे और एक दूसरे के धर्मों का सम्मान करने की भावना के साथ स्वतंत्रता सेनानियों और वीर जवानों की कुर्बानी को याद कर भारत माता की जय और देशभक्ति के तरानों के बीच झंडारोहण किया गया। जो इस बात का प्रतीक कह सकते हैं कि हम भले ही वैचारिक मतभेद रखते हो लेकिन देश की एकता अखंडता और महापुरूषों के बलिदान का सम्मान करने के मामले में एकजुट हैं। ऐसा जगह जगह हुए ध्वजारोहण और रैलियों को देखकर कहा जा सकता है।
पाठकों आदिकाल में जब देश में अंग्रेजों का राज नही था जब कोई संस्कृति और संविधान ना होने के कारण बुजुर्गों के अनुसार सब अपने हिसाब से चलता था। धीरे धीरे सभ्यता ने पैर पसारे और सर्वप्रथम पत्थर से आग जलाने के स्थान पर माचिस का आविष्कार हुआ और इस दौरान देश में कन्यादान की प्रथा शुरू हुई। जिससे लड़कियों को बेचने या समझौते के आधार पर ले जाने या युद्ध में जीतने की प्रथा कम होने लगी और आजाद देश में कन्यादान के साथ साथ अन्नदान नेत्रदान रक्तदान आदि की शुरूआत हुई और पश्चिमी सभ्यता की वस्तुओं के सेवन से डॉक्टरों के अनुसार जो बीमारियां बढ़ रही है उससे शरीर के अंग खराब होते जा रहे हैं परिणामस्वरूप हमें अपनों को खोना पड़ता है। उससे बचने के लिए समाज में दान की जागरूकता बढ़ी है मेरा मानना है कि हमें देहदान और अंगदान का संकल्प भी इस आजादी के पर्व पर लेना चाहिए और अपने आप और अन्यों को इसके लिए प्रेरित कर ऐसा माहौल बनाया जाए कि जो व्यक्ति हमसंे बिछुड़ रहे हैं उनकी देह दान कर उन लोगों को जीवनदान दिया जाए जो अंगों के खराब होने पर मृत्यु के द्वार तक पहुंचने लगे हैं। हमें महापुरूषों ने जो यह आजादी दिलाई है हम उसको आत्मसात कर नागरिकों की स्वास्थ्य की रक्षा के लिए आगे आएं। हमें स्वतंत्रता तो मिली जिसके तहत हम अपनी बात खुलकर कहने और सांस लेने का हर मौका उपलब्ध है लेकिन हम लापरवाही भ्रष्टाचार जरूरी वस्तुओं की बर्बादी और नशे की जकड़न की दासता में जी रहे हैं। साथियों 78 साल का समय कम नहीं होता। लगभग इतने वर्षो में एक पीढ़ी समाप्त हो जाती है लेकिन यह दुख का विषय है कि हम लालच के कारण इन बातों की दासता में जकड़े हुए हैं। इन्हें छोड़ने का संकल्प कर सही प्रकार से आजादी का अहसास करें और इनके नुकसान से अपने परिवारों को राहत दिलाकर उन्हें खुशी का संदेश दें।
कहने को तो बहुत कुछ है लेकिन हर कोई समझदार है इसलिए देश और जनहित किस बात में है यह सोचना है। मैं अपनी बात करूं तो ना मैं किसी को संदेश देने की हैसियत में हूं लेकिन समाज के प्रबुद्ध नागरिकों से सीखने देखने को जो मिल रहा है उसे देखकर एक बात विश्वास से कह सकता हूं कि अब समय आ गया है चारों तरफ हरियाली और स्वच्छता का माहौल कायम करने के लिए पेड़ों की कटाई पहाड़ों नदियों और जमीन का दोहन रोकने के साथ साथ एकजुट होकर महात्मा गांधी के दिखाए मार्ग पर चलते हुए लगने वाले जाम और अन्न की बर्बादी रोकने का निश्चय करते हुए यह तय करें कि शादी व अन्य समारोहों में ना तो खाने की बर्बादी करेंगे ना करने देंगे। ऐसे अवसरों पर जितना खाए उतना ही परोसें और फिर भी लगता है कि किसी ने खाना ज्यादा ले लिया है तो मंडपों में ऐसी संस्थाओं के फोन नंबर अंकित किए जाएं तो बचा हुआ खाना ले जाएं। मैंने देखा है कि बड़े लोग भी आपदा और परेशानियों से सड़कों पर पड़ा भोजन खाने को मजबूर होते हैं। देश में ऐसा ना हो क्योंकि हमंे जरूरतमंदों की मदद कर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। इस स्वतंत्रता दिवस पर इसी आग्रह के साथ देशवासियों पाठकों को अपनी शुभकामनाएं देते हुए उनके जीवन में खुशहाली और देश के विकास की कामना करता हूं।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
देशभर में स्वतंत्रता दिवस की रही धूम, आओ नशे भ्रष्टाचार और आर्थिक अपराधियों से मुक्ति तथा अन्न, बिजली पानी बचाने के संकल्प के साथ देश का 80वें स्वतंत्रता दिवस की ओर कदम बढ़ाएं
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