केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय द्वारा सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों के लिए निर्धारित नियमों के तहत कोई भी सरकारी अधिकारी व कर्मचारी किसी प्राईवेट निकायों व संस्थाओं द्वारा प्रोत्साहित करने हेतु आयोजित समारोह में सम्मानित नहीं हो सकते उसके बावजूद विभिन्न विभागों के कुछ लोग बिना किसी उपलब्धि के भी विवादित छवि के लोगों की संस्थाओं के द्वारा विभिन्न कारण दिखाकर सम्मानित होते रहे है। पूर्व में इस नियम के लागू होने के बावजूद कुछ सरकारी बाबू चाहे वो किसी भी स्तर के हो सम्मानित होने या पुरस्कार पाने की लालसा को शायद रोक नहीं पाते है। इसके जीते जागते उदाहरण के रूप में बीती चार दिसंबर को मेरठ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष को एक विवादित छवि के व्यक्ति के संगठन द्वारा सम्मानित किया गया। और उन्होंने हंसते हुए इनाम लेना और सम्मानित होना स्वीकार किया। इसमें कितनी सत्यता है यह तो जांच के बाद ही पता चल पाएगा मगर ऐसी चर्चा आम आदमी में मौखिक रूप से सुनने को मिल रही है। इस संदर्भ में स्पष्ट रूप से निर्धारित नियमों को बीते 12 दिसंबर को एक दिशा निर्देश जारी किया गया। खबर के अनुसार केंद्र ने प्राइवेट संगठनों से पुरस्कार प्राप्त करने वाले सरकारी कर्मचारियों पर नए दिशानिर्देश जारी किए हैं। नए निर्देश के अनुसार अब प्राइवेट संगठनों से पुरस्कार प्राप्त करने से पहले उनके लिए सक्षम प्राधिकारी की पूर्व मंजूरी लेना अनिवार्य होगा।
इसके बाद ही वे इनाम को स्वीकार कर सकते हैं। कार्मिक मंत्रालय ने कहा कि इस तरह की कोई भी मंजूरी सिर्फ असाधारण परिस्थितियों में ही दी जा सकती हैं। इतना ही नहीं इस तरह के इनाम में किसी तरह की वित्तीय सहायता नहीं जुड़ी होनी चाहिए।
सरकार की ओर से यह दिशानिर्देश ऐसे समय में जारी हुआ हैं, जब मंत्रालय को इससे जुड़े पुराने नियमों के पालन न होने की शिकायतें मिलीं। आदेश में कहा गया है कि किसी सरकारी कर्मी को ऐसे पुरस्कार लेने के लिए अपने मंत्रालय, विभाग के सचिव स्तर के अधिकारी की मंजूरी लेनी होगी।आदेश के अनुसार मंजूरी केवल असाधारण परिस्थितियों में दी जा सकती है।
आदेश में कहा गया है कि पुरस्कार में नकद अथवा सुविधाओं के रूप में किसी तरह का पैसा नहीं होना चाहिए। आदेश में कहा गया प्राइवेट संस्थाओं या संगठनों की साख बेदाग होनी चाहिए। केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964 के नियम 14 में प्रविधान है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना कोई प्रशंसापत्र स्वीकार नहीं करेगा या सरकारी कर्मचारी के सम्मान में आयोजित किसी बैठक या कार्यक्रम में भाग नहीं लेगा।
इन दिशा निर्देशों से एक बात बिल्कुल स्पष्ट है कि विशेष परिस्थितयों को छोड़कर ना तो किसी नौकरशाह को सम्मानित होने या पुरस्कार प्राप्त करने की अनुमति मिल सकती है और ना ही निजी निकायों व संस्था द्वारा वो सम्मानित हो सकता है। उसके बावजूद इस प्रकार के विवादित छवि के व्यक्तियों के हाथों कुछ अफसर सम्मानित होते रहे है इससे स्पष्ट होता है कि उनके द्वारा सरकार के दिशा निर्देशों का उल्लंघन किया जा रहा है। कई जागरूक नागरिकों का मौखिक रूप से कहना है कि समाचार में छपे फोटो में जो व्यक्ति पुरस्कार दे रहा है उसके द्वारा अब तक किये गये निर्माणों की जांच की जानी चाहिए। अब इसमें कितनी सत्यता है कितनी नहीं यह तो जांच के बाद ही स्पष्ट होगा। मगर कहने वालों का मत है कि इन्होंने अभी तक मानचित्र के विपरित या अवैध रूप से अनेकों निर्माण किये है और अब तक जो निर्माण कार्य है उनमें प्राधिकरण के पास जो भूमि नियमानुसार रहन रखी जाती है वो भी नियम विरूद्ध या तो बेच दी गई अथवा उस पर निर्माण कर मकान और दुकान बेच दिये गये है। अगर निष्पक्ष जांच हुई तो सब कुछ स्पष्ट होकर सामने आ सकता है। हमारा एवं नागरिकों का मानना है कि मेरठ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष श्री अभिषेक पांडे जी एक निहायत ईमानदार छवि के अफसर है उन्हें अवैध निर्माणकर्ताओं और मीठी मीठी बाते करने वाले अघोषित भूमाफियाओं के हाथों से सम्मानित होने से बचना चाहिए। (विशेष प्रतिनिधि)
शहर में चर्चा है! निजी संस्थाओं द्वारा सम्मानित होने से बचने के निर्देश होने के बावजूद उपाध्यक्ष विवादित छवि के व्यक्तियों के हाथों क्यों हुए सम्मानित
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