भले ही आप लेने वाले को पकड़वा दे मगर इसके लिए उकसाने से इनकार नहीं किया जा सकता। महंगे इलाज और बढ़ती बीमारियों ने आम आदमी की कमर तोड़कर रख दी है। जो आर्थिक रूप से समर्थ है उनके लिए हेल्थ बीमा योजना और गरीबों के लिए सरकार ने हेल्थ स्कीम जीएसटी से मुक्त की है। कई योजनाओं आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना, जन आरोग्य बीमा पॉलिसी यूनिवर्सल हेल्थ स्कीमों पर जीएसटी की छूट दी है।
दूसरी तरफ बीमा कंपनियों और अस्पतालों के बीच आम आदमी चक्करघिनी बनकर रह गया है। जिन लोगों ने लाखों रूपये की किस्त देकर इलाज की पॉलिसी ली उनके साथ अब धोखा हो रहा है क्योंकि निजी अस्पतालों के संगठन ने कैशलेस इलाज बंद करने की घोषणा की है। इन अस्पतालों के संचालकों ने कहा कि 14 प्रतिशत सालाना दर से इलाज महंगा हो रहा है। तो बीमा कंपनियों का कहना है कि कैशलेस योजना के इलाज अस्पताल बढ़ाकर दे रहे है जिससे वित्तीय दबाव बढ़ रहा है। यह तो सही लगता है कि अस्पताल बीमा कंपनियों के माध्यम से कैशलेस योजना के बिल काफी बढ़ाए जाते हैं। जो झगड़ा इनमें चल रहा है उनमें बीमा कंपनी भी ऐसे आरोप लगा रही है। प्रधानमंत्री से आग्रह है कि स्वास्थ्य, कानून व गृह मंत्रालय के अधिकारियों की कमेटी बनाकर अस्पतालों और बीमा कंपनियों के विवाद में आम आदमी के नुकसान को रोके और बीमा कंपनियों की शर्तों के हिसाब से इलाज की सुविधा उपलब्ध कराए। बीमा कंपनियों के एजेंट भी अस्पतालों से मिले हो सकते हैं क्योंकि वह इनके बिल तुरंत करा देते हैं। अस्पताल समझौते के अनुसार काम नहीं करना चाहते तो दो साल का समय कंपनियों को दे जिससे बीमा कराने वालों का इलाज होता रहे। वरना बीमा कंपनियों से पैसा वापस दिलाया जाए।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
प्रधानमंत्री जी ध्यान दीजिए! बीमा कंपनियों और अस्पतालों की जंग में पिस रहा है आम उपभोक्ता, या इलाज दिलाएं या पैसा वापस
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