Wednesday, October 15

अदालतों में भ्रष्टाचार के सात लाख से अधिक मामले लंबित होना है सोच का विषय, भ्रष्टाचार रोकने के लिए लेने वाले के साथ देने वाले की मंशा की भी हो जांच

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार व इस पार्टी का जिन प्रदेशों में शासन है वहां भ्रष्टाचार लापरवाही मुक्त व्यवस्था का दावा किया जाता रहा है। 2029 में लोकसभा के होने वाले चुनाव में अभी समय है लेकिन सीबीआई की जांच से संबंधित भ्रष्टाचार के 7 लाख मामले प्रकाश में आने की खबर पढ़कर बहुत आश्चर्य हो रहा है क्योंकि इतनी बड़ी संख्या में ऐसे मामलों के खिलाफ चल रहे अभियान और पीएम द्वारा इसे लेकर दिए गए बयानों के बावजूद अदालतों में इतने मामलों का लंबित होना एक सोचनीय विषय है। क्योंकि आम आदमी आए दिन समाचार पत्रों में छोटे से लेकर बड़े तक सरकारी कर्मचारियों द्वारा रिश्वत लिए जाने की खबर पढ़कर यह सोचता है कि ऐसा करने वालों तक पीएम का संदेश नहीं पहुंचा है या वो उसे नजरअंदाज करने में लगे हैं। इसलिए ऐसी घटनाएं हो रही है। मगर यह खबर अपने आप में महत्वपूर्ण है क्योंकि इतने मामले अदालतों में लंबित है इसलिए इसे हवा हवाई या विपक्ष द्वारा उड़ाई गई खबर भी नहीं कह सकते। आज एक खबर पढ़ी कि मथुरा की फ्लोर मिल की केश क्रेडिट के लिए बैंक मैनेजर द्वारा दो लाख रूपये लिए गए जिसे सीबीआई ने रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया। इस मामले में मैनेजर का दलाल और वो दोनों ही गिरफ्तार हो गए। राधा रानी फ्लोर मिल के मालिक द्वारा यूको बैंक से फर्म की सीसी लिमिट एक करोड़ कराई थी। मैंनेजर ने 90 लाख जारी कर दिए और 10 लाख रोक लिए। वहीं मेरठ के एसीएम फोर्थ के कार्यालय में बाबू पांच हजार की रिश्वत लेते हुए एंटी करप्शन टीम द्वारा पकड़ा गया। उसके द्वारा सतपाल नामक व्यक्ति का वाद निपटाने के लिए यह रकम मांगी गई थी। ऐसा होना नई बात नहीं है लेकिन इतनी बड़ी तादात में भ्रष्टाचार के मामले लंबित होना सोचनीय विषय है। हो सकता है इनमें किसी को जानबूझकर फंसाने के लिए किया गया हो मगर ज्यादा संख्या में ऐसा नहीं हो सकता। मेरा मानना है कि आए दिन रिश्वत लेने के मामले सामने आ रहे हैं उन्हें रोकने और अदालतों में वादों की संख्या कम करने के लिए सरकार वृहद स्तर पर हाईकोर्ट से आग्रह कर इनका निस्तारण कराने का प्रयास करे। और कई बार यह देखा गया है कि कुछ लोग विभिन्न कारणों से लोगेां को फंसाते रहे हैं। ऐसा कई मामलों में खबरों में देखा गया। इसे ध्यान रखते हुए कार्रवाई हो। वैसे भी कहा जाता है कि भले ही दस दोषी बच जाएं लेकिन कोई निर्दाेष सजा ना पाए। इसलिए इन प्रकरणों की जांच में यह भी ध्यान रखा जाए कि किसी को फंसाया तो नहीं जा रहा। क्योंकि कई बार यह बात सुनने को मिली कि रिश्वत लेने और देने वाला दोनों ही दोषी होते हैं। अगर आप अपना काम जल्दी निपटाने के लिए रिश्वत देने की कोशिश करते हैं तो दोषी आप भी हो भले ही आप लेने वाले को पकड़वा दे मगर इसके लिए उकसाने से इनकार नहीं किया जा सकता।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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