Thursday, October 17

जिमखाना मैदान में हुआ रामलीला का मंचन, शबरी मिलन देख मंत्रमुग्ध हुए भक्त

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मेरठ 09 अक्टूबर (प्र)। श्री सनातन धर्म रक्षिणी सभा पंजीकृत मेरठ शहर के तत्वधान में श्री रामलीला कमेटी पंजीकृत मेरठ शहर द्वारा बुढ़ाना गेट स्थित जिमखाना मैदान में रामलीला का मंचन किया गया।
आज लीला मंचन के मुख्य उद्घाटनकर्ता रवि सिंघल, मुख्य पूजनकर्ता राजीव गुप्ता , मनोज अग्रवाल रहे व प्रसाद सेवा अनिल अग्रवाल द्वारा की गयी। सभी उपस्थित पदाधिकारी सदस्य द्वारा पूजा अर्चना कर लीला मंचन प्रारंभ किया गया । आज सबरी मिलन, हनुमान श्री राम मिलन, श्री राम सुग्रीव मित्रता, व बाली वध की लीला का मंचन किया गया।

शबरी मिलन देख मंत्रमुग्ध हुए भक्त!
सीता को खोजते हुए श्री राम वन-वन भटक रहे थे, वन में श्री राम और भाई लक्ष्मण की नज़र एक वृद्ध महिला पर पड़ती है , वह देखते हैं कि कुछ वनवासी/शरारती बालक वृद्धा को परेशान कर रहें हैं। श्री राम उस वृद्ध महिला के पास जा कर से मतंग मुनि के आश्रम जाने का मार्ग पूछते हैं। वृद्ध महिला श्री राम को देखते ही राम को पहचान जाती है, पहचानने के बाद भी वृद्धा उनसे उनका परिचय जानती है। पूछे जाने पर श्री राम अपना परिचय और वहां होने की वजह विस्तार से बतलाते हैं। वृद्धा श्री राम की पहचान होने पर अति प्रसन्न होती है और प्रभु के श्री चरणों में गिर पड़ती है। श्री राम उनको उठाते है और अपने पास बिठाते हैं। शबरी श्री राम को अपने जूठे बेर खाने को देती है। राम वह बेर चाव से खाने लगते हैं।
इसके पश्चात श्रीराम ने शबरी से जानकी के विषय में पूछा। शबरी ने तब उन्हें पंपा सरोवर पर जाने को कहा और बोली, ‘‘वहां सुग्रीव से आपकी मित्रता होगी वह सब हल बताएंगे।

श्री राम फिर आगे चले जहाँ ऋष्यमूक पर्वत निकट आ गया। वहाँ (ऋष्यमूक पर्वत पर) मंत्रियों सहित सुग्रीव रहते थे।श्री राम और लक्ष्मण को आते देखकर सुग्रीव अत्यंत भयभीत होते है और हनुमान से ब्रह्मचारी का रूप धारण कर देखने जाने को कहते हैं और यदि वह बालि के भेजे हुए हों तो मैं तुरंत ही इस पर्वत को छोड़कर भाग जाऊँ । हनुमान ब्राह्मण के रूप में वहाँ पहुचे और मस्तक नवाकर पूछा हे वीर! साँवले और गोरे शरीर वाले आप कौन हैं, कठोर भूमि पर कोमल चरणों से चलने वाले आप किस कारण वन घूम रहे हैं ? क्या आप देवताओं में से कोई हैं या संपूर्ण लोकों के स्वामी स्वयं भगवान्‌ हैं। श्री राम बोले हम दशरथजी के पुत्र हैं और पिता का वचन मानकर वन आए हैं। राम-लक्ष्मण नाम हैं, हम दोनों भाई हैं। हमारे साथ सुंदर सुकुमारी स्त्री थी यहाँ (वन में) राक्षस ने जानकी को हर लिया। हे ब्राह्मण! हम उसे ही खोजते हुए आये हैं। प्रभु को पहचानकर हनुमान उनके चरणों मे गिर पड़े। अपने नाथ को पहचान लेने से हृदय में हर्ष हो रहा है। हनुमान बोले हे स्वामी! मैंने जो पूछा वह मेरा पूछना तो न्याय था, (वर्षों के बाद आपको देखा, वह भी तपस्वी के वेष में और मेरी वानरी बुद्धि इससे मैं तो आपको पहचान न सका और अपनी परिस्थिति के अनुसार मैंने आपसे पूछा), परंतु आप मनुष्य की तरह कैसे पूछ रहे हैं? मैं तो आपकी माया के वश भूला फिरता हूँ इसी से मैंने अपने स्वामी (आप) को नहीं पहचाना। एक तो मैं यूं ही मंद हूँ, दूसरे मोह के वश में हूँ, तीसरे हृदय का कुटिल और अज्ञान हूँ, फिर हे दीनबंधु भगवान्‌! प्रभु (आप) ने भी मुझे भुला दिया! हे नाथ! यद्यपि मुझ में बहुत से अवगुण हैं, तथापि सेवक स्वामी की विस्मृति में न पड़े (आप उसे न भूल जाएँ)। सेवक स्वामी के और पुत्र माता के भरोसे निश्चिंत रहता है। प्रभु को सेवक का पालन-पोषण करते ही बनता है। ऐसा कहकर हनुमान्‌जी अकुलाकर प्रभु के चरणों पर गिर पड़े, उन्होंने अपना असली शरीर प्रकट कर दिया। उनके हृदय में प्रेम छा गया। तब श्री रघुनाथजी ने उन्हें उठाकर हृदय से लगा लिया और अपने नेत्रों के जल से सींचकर शीतल किया फिर कहा- हे कपि! सुनो, मन में ग्लानि मत मानना (मन छोटा न करना)। तुम मुझे लक्ष्मण से भी दूने प्रिय हो।
हनुमान बोले हे नाथ! इस पर्वत पर वानरराज सुग्रीव रहते हैं, वह आपका दास है ! उससे मित्रता कीजिए और उसे दीन जानकर निर्भय कर दीजिए। वह सीताजी की खोज करवाएगा और हनुमान्‌जी ने (श्री राम-लक्ष्मण) दोनों जनों को पीठ पर चढ़ा लिया। जब सुग्रीव ने श्री रामचंद्रजी को देखा तो अपने जन्म को अत्यंत धन्य समझा सुग्रीव चरणों में मस्तक नवाकर आदर सहित मिले। श्री राम भी छोटे भाई सहित उनसे गले लगकर मिले।

“रामः सुग्रीवम् मित्रम् कृतवान् वनम् गतः”
अर्थ: राम ने सुग्रीव को मित्र बनाया और वन में गया।

“सुग्रीवः रामम् प्राह वचः प्रीतिम् अनुरूपम्
त्वम् मे मित्रम् सर्वथा भव”
अर्थ: सुग्रीव ने राम से कहा, “तुम मेरे मित्र हो, मैं तुम्हारा मित्र हूँ।”

“रामः सुग्रीवाय वचः प्राह प्रीतिम् अनुरूपम्
वानराणाम् अधिपतिः भव”
अर्थ: राम ने सुग्रीव से कहा, “तुम वानरों के अधिपति बनो।”

“सुग्रीवः रामम् प्राह वचः प्रीतिम् अनुरूपम्
त्वम् मे रक्षा करिष्यसि”
अर्थ: सुग्रीव ने राम से कहा, “तुम मेरी रक्षा करोगे।”

बाली वध रामायण की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। राम ने सुग्रीव की रक्षा के लिए बाली को मारा। बाली और सुग्रीव के बीच युद्ध हुआ, जिसमें राम ने बाली को मारा। इससे सुग्रीव वानरों का राजा बना।

इस कार्यक्रम में संस्था अध्यक्ष मनोज गुप्ता राधा गोविंद मंडप,  महामंत्री मनोज अग्रवाल खद्दर वाले, कोषाध्यक्ष योगेंद्र अग्रवाल बबलू, संचालक राकेश शर्मा, राकेश गर्ग, आलोक गुप्ता (गुप्ता क्लासेज) अंबुज गुप्ता,  रोहताश प्रजापति, राजन सिंघल, आनंद प्रजापति, अनिल गोल्डी दीपक शर्मा, विपुल सिंघल ,संदीप गोयल रेवड़ी, मयंक अग्रवाल, मयूर अग्रवाल, अपार मेहरा, विपिन अग्रवाल ,लोकेश शर्मा ,मनोज दवाई,  डॉ टी सी शर्मा, अनिल  वर्मा, मनोज वर्मा, पंकज गोयल पार्षद सहित हजारों की संख्या में भक्तगण मौजूद रहे।

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