Sunday, September 8

एसपी ट्रैफिक साहब ध्यान दें! बैरिकेटिंग उखाड़ना उचित नहीं, पिछलगुओं की राय आपसी सहमति नहीं होती, नीति बनाकर पास वितरण हो शुरू, सूचना विभाग की ली जाए मदद

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भले ही आम आदमी को विश्वास में ना लेकर की गई हो अधिकारियों द्वारा कांवड़ संबंधी व्यवस्थाऐं लेकिन परेशानियों के बावजूद बैरिकेटिंग को उखाड़ना और हंगामा करना ठीक नहीं है। नागरिकों को अपनी समस्याऐं सीधे मिलकर अथवा डिजीटल मीडिया के माध्यम से अपने सांसद व विधायकों व राजनीतिक दलों के जिला महानगर अध्यक्षों से करनी चाहिए क्योंकि हंगामा हर प्रकार से खुद शहरवासियों के लिए परेशानी का कारण बनता है। जहां तक कांवड़ नॉडल अधिकारी एसपी ट्रैफिक राघवेन्द्र मिश्रा जी का यह कहना कि सभी सहमति से व्यवस्थाऐं बनाई गई है। वैकल्पिक रास्तों का करे उपयोग इस संदर्भ में कुछ जागरूक नागरिकों का यह कथन बिल्कुल सही प्रतीत होता है जिन सबकी बात व सहमति के बारे में वो बता रहे है उन हमेशा अफसरों के आगे पीछे घूमने वाले चाटुकारों जिनका काम ही सिर्फ हां में हां मिलाना है सही स्थिति सामने रखना नहीं की सहमति से ऐसे मौकों पर व्यवस्थाऐं बनाने की बजाए हर थाना क्षेत्र में वहां के नागरिकों को बुलाकर पहले उनसे उनकी समस्याऐं जानी जाए फिर अगर व्यवस्थाऐं की जाती तो ज्यादा अच्छा था। एसपी ट्रैफिक साहब मेरठ शहर में स्थानीय कांवड़ियों का आगवामन एक दिन पहले शुरू होता है। इसलिए बीती 25 तारीख से लागू की गई व्यवस्था किसी भी रूप में सही नहीं थी। क्योंकि शहर में आने वाले कांवडिये भाईयों के अलावा बाकी भक्तों को चौधरी चरण सिंह मार्ग अथवा परतापुर बाईपास से आगे बढ़ाने की आवश्यकता थी। शहर में तो उन्हें लंबी दूरी नापनी पड़ती है फिर भी शहर में तमाम कांवड़ियों का आवागमन किसी भी रूप में सही नहीं कह सकते। एसपी ट्रैफिक साहब कुछ लोगों का यह भी कहना है कि कांवड़ मार्ग पर बनी कालोनियों गांव व मौहल्लों में रहने वाले नागरिकों आदि के पास जल्द से जल्द जारी किये जाए और एक नीति बनाई जाए कि किसे कितने पास दिये जाने है। क्योकि पिछले वर्ष यह चर्चा मौखिक रूप से खूब सुनने को मिली थी कि कुछ लोगों को बेहिसाब पास दे दिये गये थे कुछ जरूरतमंदों को एक या दो पास देकर टाल दिया गया था और कितनों को तो कांवड़ यात्रा समाप्त होने तक टहलाया गया था। इसके कोई अधिकारिक आंकड़े तो नहीं है जिन लोगों के नाम से पास बनवाये गये थे उन्हें अधिक संख्या में तथा कुछ मीडियाकर्मियों को बहुतायत में पास दिये गये थे। जबकि कुछ को परेशान करने के बाद भी सिर्फ एक या दो पास ही पकड़वाये गये थे। इतना ही नही जिस सोशल मीडिया को आम आदमी से लेकर सीएम तथा पीएम तक अपना रहे है और खुद शायद एसपी ट्रैफिक साहब भी अपना रहे है उसे तो आवेदन के बाद भी पास नहीं दिये गये थे। हां कुछ पिछलगुवों को उपलब्ध किया गया हो तो बात दूसरी है। लेकिन इस बार जो सरकार की नीति के तहत ऑन लाईन समाचार पोर्टल चल रहे है उनसे जुड़े लोगों को एक नीति निर्धारित कर पास जरूर उपलब्ध कराये जाए अगर इसमें ट्रैफिक विभाग को कोई परेशानी हो तो मीडिया कर्मी के पास जारी करने का काम सूचना विभाग को सौंपा जाना चाहिए।

(प्रस्तुतिः अंकित बिश्नोई पूर्व सदस्य मजीठिया बोर्ड यूपी सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए के राष्ट्रीस महासचिव)

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