Friday, November 22

मोदी के नेतृत्व में 2024 के चुनाव की तस्वीर हुई साफ, पांच राज्यों के चुनाव परिणामों ने पीएम को मुकद्दर का सिकंदर बना दिया, विपक्ष को राहुल गांधी के नेतृत्व में अहम छोड़कर एकजुट होना होगा

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मध्य प्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा को मिली भारी सफलता 2024 मंे होने वाले लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी की तीसरी बार केंद्र सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में ताजपोशी का रास्ता साफ हो गया सा लगता है। क्योंकि विपक्ष की सारी जुगाड़बंदी और जुगलबंदी के बावजूद जिस प्रकार से इन राज्यों में भाजपा उम्मीदवारों को मोदी के नाम पर वोट मिले और पीएम का जादू सिर चढ़कर बोला उससे यह साफ है कि अगर विपक्ष का हाल यही रहा तो कितने ही गठबंधन बना लें केंद्र की सत्ता में आने का बहुमत आसानी से आने वाला नहीं है। एक जमाना था जब देश के ज्यादातर प्रदेशों में कांग्रेस या उसकी समर्थित सरकारें हुआ करती थी लेकिन वर्तमान में अब 12 राज्यों में भाजपा सरकार है तो तीन राज्यों में सिमटकर रह गई कांग्रेस।
राजनीति में कौन कब अर्श और फर्श पर पहुंच जाए यह कोई नहीं कह सकता लेकिन जब जो जीता वो ही सिकंदर कहलाता है। इस समय का तो सबसे बड़ा सिकंदर नरेंद्र मोदी ही आम आदमी को नजर आ रहे हैं। जानकारों का कहना है कि मोदी के नाम पर ही चुनावों में वोट मिल रहे हैं और आगे भी विपक्ष की स्थिति यही रही तो मिलते रहेंगे।
ग्रामीण कहावत गंगाजी को आना था भगीरथ को यश मिलना था। उसी प्रकार जीत को लेकर चर्चा है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की दुर्गावती योजना मध्यप्रदेश में बहनों ने मामा को बनाया चहेता। राजस्थान में महिला सुरक्षा के वादे ने भाजपा के लिए चुनावी समीकरण बदले तो तेलंगाना में कांग्रेस की लक्ष्मी योजना ने उसे संजीवनी दी। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा इस हार पर निराशा जताई गई है वहीं पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने जनादेश को स्वीकार करते हुए इसे विचारधारा की लड़ाई जारी रखने की बात कही है। शीघ्र ही विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया की मीटिंग बुलाकर समीक्षा की बात कही जा रही है। उन्होंने चुनाव परिणामों को तीनों प्रदेशों के स्वीकार कर जनता की भावनाओं का आदर किया है। लेकिन एक बात जो उभरकर सामने आई है वो यह है कि कारण तो बहुत से हो सकते हैं मगर छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल का अति आत्मविश्वास उन्हें जनता से दूर ले गया तो राजस्थान में गहलोत का किसी भी प्रकार के बदलाव से मुंह मोड़ना हार का कारण बना। यह भी कह सकते हैं कि विपक्ष की आपसी कलह इन चुनावों में बयानबाजी और अन्य लाभ की घोषणाएं काम नहीं आई।
यह जरूर कह सकते हैं कि मोदी के नाम पर इन चुनावों में मिले वोट को इकटठा कर वोटिंग मशीन तक पहुंचाने में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी जीतने में बड़ा योगदान रहा। क्योंकि चुनावों के दौरान बैठकों और उसमें जुटी भीड़ जानकारों के अनुसार निर्वाचन में विजय का कारण बनी क्योंकि मोदी और योगी द्वारा चलाई जा रही योजनाओं की विस्तार से जानकारियां हर व्यक्ति को दी गई। तो पलट गया चुनाव परिणाम। विपक्ष के नेता और पूर्व सांसद केसी त्यागी कह रहे हैं कि कांग्रेस सब जगह भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकती। इसको सिंड्रोम से बाहर आना होगा। केसी त्यागी भी बड़े लीडर हैं। जो कह रहे हैं हो सकता है उनकी निगाह में सही हो।
मध्य प्रदेश में सपा के कारण हारी कांग्रेस
मध्य प्रदेश में कांग्रेस नेता कमलनाथ ने सपा के बारे में चुनाव से पूर्व जो कहा था वो गलत था। यह भी सही है कि कई सीटों पर यहां थोड़े थोड़े वोटें से कांग्रेस उम्मीदवार हारे जबकि इन्ही विधानसभा क्षेत्रों में सपा प्रत्याशी काफी वोट ले गए अगर मिलकर लड़ते तो राजनगर, चांदला, गुन्नौर, आदि पर इनके उम्मीदवार जीत सकते थे। खैर जो हुआ सो हुआ। राजनीतिक समीक्षक कह रहे हैं कि सपा कांग्रेस में खटास बढ़ेगी जिससे गठबंधन पर असर पड़ेगा। सपा को भी सीएम शिवराज के प्रति उतारे गए अपने प्रत्याशी महामंडेलश्वर मिर्ची बाबा को विधुनी में मिली बुरी तरह पराजय इस बात का परिणाम है कि यूपी को छोड़कर अभी अन्य प्रदेशों में उनका अकेले कोई बहुत बड़ा वजूद नहीं है वरना उनके सशक्त उम्मीदवार मिर्ची बाबा को खबर के अनुसार मात्र 136 वोट पर ही संतोष नहीं करना पड़ता।
कहने का मतलब इतना है कि या तो विपक्षी दल केंद्र की सत्ता में आने का सपना छोड़ दें या अपना अहम। क्योंकि प्रदेशों में भी अगर स्थिति में रहना है तो सबको यह समझना होगा कि कांग्रेस के बिना कुछ प्रदेशों को छोड़ दिया जाए तो मजबूत होने के बावजूद भी अकेले दम पर विपक्ष का बड़ा वजूद नहीं है। अगर विपक्ष ने एकत्रित होकर हर प्रदेश में इस बात को नहीं स्वीकारा तो कांग्रेस तो फिर भी इस समय तेलंगाना कर्नाटक हिमाचल में सरकार चला रही है और अन्य प्रदेशों में भी उसकी स्थिति सम्मानजनक है। लेकिन बाकी को अगर देखें तो आप, और ममता बनर्जी अथवा दक्षिण भारतीय प्रदेशों को र्छोड़ दे तो हिंदी बेल्ट में भाजपा को छोड़कर विपक्ष का इस समय कोई बड़ा वजूद सामने नहीं आ रहा है। फिलहाल तो मोदी की गारंटी पर जनता की विश्वास की जो मुहर लगी है उसने यह सिद्ध कर दिया है कि देश में सिर्फ पीएम मोदी की गारंटी ही चलती है। इंडिया की होने वाली बैठक में इस पराजय से कुछ अच्छी सोच उभरकर आती है या नहीं यह तो बैठक के बाद ही स्पष्ट होगा।
लेकिन विपक्ष की निरंतर हो रही किरकिरी के इस काल में भी रालोद के नेता जयंत चौधरी अपना सम्मान बचाने में कामयाब रहे। क्योंकि उन्होंने राजस्थान में कांग्रेस से गठबंधन के तहत हारी हुई समझी जाने वाली पांच सात सीटें मांगी थी लेकिन कांग्रेस ने उन्हें भरतपुर की एक सीट ही दी जहां से उसके पूर्व विधायक डॉ. सुभाष गर्ग चुनाव जीत गए। जिन अन्य सीटों की मांग रालोद ने की थी उन पर कांग्र्रेस हार गई।
मुझे राजनीति का बहुत बड़ा ज्ञान नहीं है लेकिन छह दशक में थोड़ी समझ आने के बाद देखा कि राजनीति में हार जीत का महत्व नहीं होता। अगर सही मायनों में नेता जनसेवा करना चाहते हैं तो वह सत्ता और बाहर रहकर भी कर सकते है। शर्त यही है कि यह सब खेल भावना और सेवा से दृष्टिकोण से किया जाए तो कई मामलों में देखने को मिला कि सत्ताधारी दल से ज्यादा विपक्ष के लोग काम कराने मे सफल रहते हैं और चुनाव में हमेशा जातियों के नाम पर अथवा मुफत की रेवड़ी बांटने से ही वोट नहीं मिलते। अगर विपक्ष को वोटों को अपनी ओर करना है तो उन्हें पीएम मोदी और राहुल गांधी जैसा जननेता का कद भी प्रस्तुत करना होगा। क्योंकि कर्नाटक हिमाचल और अब तेलंगाना यह सब सोनिया गांधी के नेतृत्व मल्लिकार्जुन प्रियंका गांधी के सहयोग से राहुल गांधी के प्रयासों से ही जीत का सेहरा कांग्रेस के सिर बंध पाया है।

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