अनेकों कठिनाईयों के बावजूद भारतीय युवाओं में आशा और विश्वास की कोई कमी नजर नहीं आती है। शायद इसीलिए अपने देश में अगर पीएम और पूर्व पीएम पर फिल्में बनती हैं तो भिंड मुरैना के चंबल के छोटे से सुविधा और नई प्रगृति की दौड़ से दूर गांवों में भी जुगाड़ पर ड्राइविंग करने वाला युवा मनोज कुमार शर्मा जो 14 घंटे आटा चक्की पर नौकरी करने और शहर में एक दुकान पर मजदूरी करने तथा बाथरूम के पोेट साफ करने की नौकरी करते करते सड़क पर लगे लैंप की रोशनी में पढ़ाई कर आईपीएस बनने वालें पर भी फिल्म बनती है। यह हमारे हौंसलों का परिणाम है कि भले ही नौजवानाओं को कितनी भी ना सुविधा मिलती हो लेकिन आज भी प्रगृतिशील देशों में मेहनत के बल पर नौजवानों की सफलता का डंका बजता है और यह बात दिखाई भी दे रही है और सब जानते भी है। शायद इसीलिए हमारे प्रधानमंत्री हमेशा यह कहते और युवाओं की प्रशंसा करते नहीं थकते कि भारतीय युवा बना रहे हैं नई दुनिया। वहीं कांग्रेस युवाओं को अपने साथ जोड़ने और उनकी राय से आगे बढ़ने के लिए उन्हें अपने साथ लाने हेतु भरपूर प्रयास कर रही है। यह आज की ही बात नहीं है। कई दशक पहले भी यह बात सुनने को मिलती थी कि अब तो सब कुछ युवाओं के ही कंधों पर है। समाज से कुरीतियां दूर कर बदलाव नहीं लाना है। नए समाज और भारत का नवनिर्माण इन्हीं को करना है। मामला बुजुर्गो की सेवा का हो या दहेज की कुप्रथा को दूर करने का सब जगह युवाओं का ही डंका बजता चला जा रहा है।
वो बात और है कि नौजवानों का गुणगान करने वाले उन्हें कुछ देने और आगे बढ़ाने की बात आती है तो अनुभव के आधार पर बुजुर्ग आगे आकर बैठ जाते हैं।
मगर अब देश में हर क्षेत्र में आ रहे बदलाव और नौजवानों की सोच हो रही मुखर के चलते हमारे परिवार के मुखियाओं को भी यह अहसास होने लगा है कि बच्चों के लिए सिर्फ नारे लगाकर या प्रशंसा कर खुद मलाई नहीं खाई जा सकती। क्योंकि अब सम्मान देने की सोच प्रगृति करने की ओर अग्रसर हो रही है। देश दुनिया में क्षेत्र कोई भी हो हमारे युवा पूरे हौंसले और उमंग के साथ आगे बढ़ रहे हैं। वर्तमान समय में नई टैक्नोलॉजी का उपयोग कर जहां अब हम ड्रोन उड़ा रहे हैं वही ऐप संस्कृति को अपनाकर उसके निर्माण में अपनी उर्जा और ध्यान लगाकर लाखों से करोड़ों कमा रहे हैं देश के विकास और तरक्की के साथ ही उमंगों की उड़ान उड़ रहे हैं।
अभी पिछले दिनों मध्य प्रदेश के इंदौर की सरकारी सहायता प्राप्त स्वायत संस्था एसजीएसआईटीएस के प्रोफेसर सतीश कुमार जैन के अनुसार सात साल के अनुसंधान के बाद उन्होंने घोड़े की नाल से प्रेरणा लेकर नैनो उपग्रह पर लगने वाले अलग अलग तरह के एंटीनों का आकार 17 से 33 प्रतिशत तक घटा दिया है।
जेएनएन इंटरनेट मीडिया पर आजकल हो रहे एक से एक बढ़कर रचनात्मकता के नमूने देखने को मिल रहे हैं। एक मिनट और 45 सेंकेड के एक वीडियो में दिखाई दे रहे दो युवाओं के द्वारा एक रिकलाइन सोफे को परिवहन प्रणाली में बदला हुआ दिखाया जा रहा है। बच्चों के द्वारा एक चलने वाला सोफा कार में बदलने की पूरी प्रक्रिया को वीडियो में दर्शाया हुआ है। महेंद्रा एंड महेंद्रा के एक शेयर वीडियो में व्यवसायी ने लिखा है कि देश को आटोमोबाइल में बड़ी ताकत बनाना है तो ऐसे आविष्कार की बड़ी आवश्यकता है। अगर आंनद महिंद्रा यह कह रहे हैं तो समझा जा सकता है कि युवाओं ने परिवहन व्यवस्था को प्रदूषण मुक्त और सस्ता बनाने में सफलता प्राप्त की है।
दोस्तों मैं कोई प्रेरणा योग्य व्यक्ति तो नहीं हूं और ना ही मुझे देश समाज का बड़ा ज्ञान है लेकिन सड़क बनाने के लिए पत्थर तोड़ने और चाय की दुकान पर झूठे प्याले धोने तथा कई कई दिन फांके उतारने के बाद आज मैं जिस स्थिति में रह रहा हूं उससे एक ज्ञान जरूर हो गया है कि चाहे बुुजुर्ग हो या युवा अथवा बच्चों उसमें आगे बढ़ने सोचने और उसे अंजाम देने का हौंसला है तो दुनिया में कोई भी काम किसी के लिए भी कठिन नहीं है। बाधाएं आती हैं चली जाती है। मगर उत्साही व्यक्तित्व के सामने कोई भी टिक नहीं पाती और ना ही उसके उत्थान को रोक पाती है। सबसे बड़ी बात जो लोग यह सोचते हैं कि पैसा नहीं है साधन कहां से लाए आगे कैंसे बढ़े खाने को रोटी नहीं है तो नई सोच कैसे विकसित करे वो यह समझ लें कि भगवान में बड़ी शक्ति हैं जिसने हमें जीवन दिया है वो ही देर सवेर हमारी परेशानियां भी दूर करेगा बस आप एक बार अपना इरादा मजबूत कर नववर्ष 2024 का स्वागत करते हुए यह ठान ले कि 31 दिसंबर 2024 को इस साल की विदाई और एक जनवरी 2025 को अपनी सोच के साकार होने के माहौल में मनाएंगे तो कोई भी बाधा आपके रास्ते की रूकावट नहीं बन सकती। हां यह जरूर है कि रोज एक सपना देखिये दूसरे दिन उसमें क्या प्रगृति हुई इस पर विचार कीजिए और एक निर्णय ऐसा जरूर लीजिए जिसे सबकुछ भूलकर पूरा करने के लिए हर प्रकार की ताकत को एकत्रित कर उसमें लगाएं और अपनी इच्छापूर्ति हेतु काम करना शुरू करें। सफलता मिलेगी या नहीं कौन क्या कहेगा क्या सोचेगा इसकी चिंता बिना आओ देश की तरक्की परिवार की खुशहाली हेतु कुछ ऐसा नया कर गुजरने का संकल्प लें जिसके बारे में साधन संपन्न लोग आसानी से सोचते भी नहीं है।
अपना ही देश हैं जहां पीएम और साधनविहीन युवाओं पर भी बनती हैं फिल्में ? विश्वास से आगे बढ़िए, साधन विहीन युवा भी ला सकते हैं देश में एक अलग सोच और प्रगृति की क्रांति
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