आज पूरा देश ही नहीं विश्व भर में बसे भारतवंशियों द्वारा बुराईयों पर अच्छाई के प्रतीक दशहरा का त्योहार मनाया जा रहा है। कुछ यज्ञ कर तो कुछ शस्त्र पूजा कर भगवान राम के दिखाये मार्ग पर चलने का संकल्प ले रहे हैं। वैसे भी अगर देखें तो हिंदुस्तान हो या कोई और देश सब जगह नागरिक अपने महापुरूषों के दिखाये मार्ग पर चलकर समाज में शांति सदभाव और धार्मिक प्रवृति को बढ़ावा मिले व परसेवा के माध्यम से दुनिया के सबसे बड़े और पहले समाजवादी महाराजा अग्रसैन के दिखाये मार्ग एक ईट एक रूपया देकर सबको अपने बराबर खड़ा करने की दी गई प्रेरणा पर चलने पर जोर दे रहे हैं। लेकिन हर वर्ष रामलीलाएं होती हैं। रावण कुंभकरण और मेघनाद के पुतले फूंके जाते हैं और अगले वर्ष फिर यही होता है तो आखिर बुराईयों पर अच्छाई की विजय कब होगी। समाज में विभिन्न रूपों में मौजूद रावण रूपी घटनाएं और समस्याओं का कब होगा समाधान। इस बारे में मनन करने की है बड़ी आवश्यकता। अगर ध्यान से देखें तो महान विद्धान रावण एक श्राप के चलते भगवान राम के हाथों मुक्ति पाने के लिए बुराईयों का प्रतीक बने लेकिन वर्तमान में समाज में मिलावट खोरी भ्रष्टाचार, नशे की बढ़ती प्रवृति, चारों ओर गंदगी का साम्राज्य, बढ़ती बीमारी, साइबर क्राइम, प्रदूषण, चारो तरफ लगने वाले जाम, अतिक्रमण, पॉलिथिन का प्रचलन, टूटी सड़कें, सड़कों पर अंधेरा, बढ़ते अपराध, गरीबों के लिए उपलब्ध राशन की कालाबाजारी, खुले पड़े मौत के नाले, खूंखार जानवरों कुत्तों का आतंक आदि यह कुछ बिंदु भी समाज में किसी राक्षस से कम हानिकारक नागरिकों के लिए नहीं है। आवश्यकता इस बात की है कि हर वर्ष महंगी होती जा रही रामलीलाओं और बढ़ते जा रहे खर्च को कम कर भगवान राम के दिखाए मार्ग पर चलते हुए लीलाओं का प्रचलन हो। जो पैसा हम अपनी शान शौकत दिखाने अथवा कहे अनकहे रूप में व्यक्तिगत स्वार्थों को पूरा करने के लिए रामलीला मंचन के नाम पर उगाहे गए चंदे का उपयोग कर रहे हैं। उस बुराई का समापन और उक्त पैसा गरीब बेटियों की शादियों, जरूरतमंदों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए निस्वार्थ भाव से करें तो मुझे लगता है कि भगवान दिखावे के नाम पर जो पैसा खर्च किया जा रहा है उसके मुकाबले ऐसे लोगों को अपना आशीर्वाद ज्यादा देंगे दिखावे करने वालों के मुकाबले।
दोस्तों, वर्तमान समय में हर कोई जागरूक और समझदार है। अब तो बच्चे भी छोटी उम्र में बड़े बड़े क्षेत्रों में नाम कमा रहे हैं। इसलिए किसी को किसी संदेश अथवा भाषण की आवश्यकता नहीं है। और ना ही किसी को प्रेरणा देने के प्रयास करने चाहिए। लेकिन अपनी भावी पीढ़ी और उनकी समस्याओं के समाधान के लिए जो महंगाई और कुरीतियां तथा हिंसा एवं अप्राकृतिक यौन शोषण की घटनाओं को बढ़ावा देने वाले वेब सीरीज और टीवी कार्यक्रमों रूपी रावण के विरूद्ध भी हमें जागरूक होकर आगे बढ़ते हुए काम करना होगा। तभी हम विजयादशमी का मकसद सही प्रकार से पूरा कर सकते हैं। और महान विद्वान रावण को भगवान राम ने जिस प्रकार मुक्ति दी थी हमें भी उन बुराईयों से हर पात्र व्यक्ति को राहत दिलाने के लिए काम करना होगा। वैसे तो मुझ जैसे निरक्षर और अनपढ़ को इस बारे में कोई ज्ञान नहीं है लेकिन जो समाज में देख रहा हूं उसके हिसाब से हमें उन कुछ बगुला भगत सफेदपोश बहरूपियों जो कभी धर्म के नाम पर तो कभी जाति के नाम पर मुंह में राम बगल में छुरी वाली कहावत को आत्मसात कर हमें लड़ाने व भाईचारा सदभाव समाप्त करने के अलावा हमारे धन का दुरूपयोग करने वालों की कुल्तिसत भावना को भी रावण की तरह स्वाहा करनी होगी तभी हम सही मायनों में भले ही रामराज की स्थापना ना कर पाए लेकिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के रामराज्य के सपने को साकार करने की ओर कुछ कदम तो आगे बढ़़ा ही सकते हैं।
रामराज्य का सपना साकार करने हेतु सफेदपोश बगुला भगत रावणों की कुल्तिसत भावना को भी भस्म करना होगा
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