फिल्म ‘सौदागर’ की कहानी पूर्वी बंगाल की उस बस्ती की कहानी है जहां ताड़ के रस से गुड़ बनाया जाता है। गुड़ बनाने की कला के आसपास घूमती ये कहानी राजश्री प्रोडक्शंस ने नरेंद्र नाथ मित्र की बांग्ला लघुकथा ‘रस’ से ली और इसके निर्देशन की जिम्मेदारी सौंपी उन सुतेंदु रॉय को, जिनका नाम आज भी हिंदी सिनेमा के दिग्गज कला निर्देशक के रूप में लिया जाता है। इस फिल्म से दो साल पहले सुतेंदु बतौर निर्देशक अपनी पहली फिल्म ‘उपहार’ में जया भादुड़ी को निर्देशित कर चुके थे और यही वह समय था जब एक दिन अमिताभ बच्चन अपने परिचित राज ग्रोवर के साथ राजश्री प्रोडक्शंस के मालिक ताराचंद बड़जात्या से मिलने जा पहुंचे। अमिताभ ने उस दिन चूड़ीदार पहना हुआ था। मिलने का समय था सुबह का 11 बजकर 10 मिनट और अमिताभ ने ताराचंद के केविन पर दस्तक दे दी ठीक 11 बजे ताराचंद पहले तो उनकी इसी बात पर भड़के और फिर अमिताभ को देख उन्होंने छूटते ही कहा, ‘इतने लंबे हीरो को हीरोइन कहां से मिलेगी? जाओ, अपने पिता की तरह कविताएं लिखो और मुशायरा करो।’ अमिताभ ने इस बेइज्जती का का बुरा नहीं माना अपना कीमती समय देने के लिए ताराचंद का धन्यवाद किया और जीवन भर के लिए ये सबक गांठ में बांधा कि समयबद्धता का मतलब समय से पहले पहुंचना भी नहीं है। फिर अमिताभ की फिल्म ‘आनंद’ रिलीज हुई ताराचंद बड़जात्या ने वह फिल्म देखी। अपनी गलती का एहसास उन्हें हुआ और अमिताभ बच्चन को बुलाकर उन्होंने फिल्म दी ‘सौदागर’। इस फिल्म के दो गाने आशा भोसले का गाया ‘सजना है मुझे सजना के लिए और लता मंगेशकर का गाया तेरा मेरा साथ रहे अब भी भी खूब बजते हैं।
जब 10 मिनट पहले पहुंचने पर अमिताभ को पड़ी डांट
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