हार्ट अटैक और आकस्मिक रूप से होने वाली मौतों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। आए दिन कभी किसी के नाचते समय इससे मरने की सूचना मिलती है तो कभी खेलते हुए तो कुछ मामलों मे जिम में कसरत करते हुए मौतों की सूचना मिलती है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। पहले हार्ट अटैक आदि से मरने की सूचना बुजुर्गो आदि को लेकर सुनाई देती थी लेकिन अब तो बच्चे भी इससे मरने लगे हैं। गत दिवस कंपनी बाग में खेलते हुए खिलाड़ी दुष्यंत वर्मा की मौत के साथ ही जीएसटी के एडिशनल कमिश्नर को हार्ट अटैक आने की सूचना मिली। अमरोहा में कलश यात्रा के दौरान भाजपा नेता की हार्ट अटैक से मौत तो मथुरा वृदांबन के बांके बिहारी के दर्शन के दौरान दो महिलाओं की मौत राजस्थान में नौंवी कक्षा के छात्र की हार्ट अटैक से मौत आखिर ऐसा हो क्यों रहा है। इसके सही कारण जानने की आवश्यकता को नजर अंदाज कर हमारे चिकित्सक बता रहे हैं कि कम उम्र के बच्चों को भी हार्ट की जांच करानी चाहिए। तो कई चिकित्सक कह रहे है कि गुणवत्ता परक स्वास्थ्य सेवा की बड़ी जरूरत है। कई डॉक्टरों का मत है कि धूल धुंआ खराब कर रहा है स्वास्थ्य को। इन बातों से तो इनकार नहीं किया जा सकता और यह भी सही है कि हर मौसम में होने वाली सीजनल बीमारियों और साल भर चलने वाले रोगों की रोकथाम और उनसे बचकर रहने की बड़ी आवश्यकता है।
लेकिन सवाल यह उठता है कि कोरोना के बाद से बड़ी तादात में नागरिकों की आमदनी में कमी हुई है। महंगाई और बीमारी सुरसा के मुंह की भांति बढ़ रही है। अब ऐसे में जब दो समय की रोटी का जुगाड़ और दुनियादारी निभाने में ही कठिनाई हो रही है तो भला बिना किसी कष्ट के डॉक्टर के पास जाने और हजार रूपये के लगभग फीस देने और दवाईयों को खरीदने का साहस हर आदमी कैसे जुटाएं।
वर्तमान में खेलते कूदते नाचते गाते आदमी भगवान को प्यारा हो रहा है। मुझे लगता है कि बीमारियों के पीछे की जानने की असलियत जानने की जरूरत अब आ गई है। क्येांकि उपर वाले ने जिसको जिस प्रकार अपने पास बुलाने का लेखा जोखा तैयार किया है उसमें तो कोई फेरबदल नहीं कर सकते है चाहे कितने ही डॉक्टरों को दिखा ले या ताबीज बनवा ले या तंत्र करा ले लेकिन यह भी सही है कि अगर अच्छा और साफ माहौल हो और पर्यावरण साफ मिले तो कई बीमारियों को हमेशा के लिए टाला जा सकता है लेकिन यह कहने में कोई हर्ज महसूस नहीं करता हूं कि हमारे ज्यादातर चिकित्सक यह तो बताते हैं कि कम उम्र में ही ह्रदय की जांच कराओ। हर महीने मंजन करने वाला ब्रुश बदलो। जरा सी कहीं कोई बीमारी हुई नहीं की डॉक्टर साहब मास्क लगाने की सलाह देने लगते हैं। अब कोई पूछे कि डॉ. साहब धुंआ आ कहां से रहा है। चारों तरफ जो गंदगी के अंबार शहरों के साथ अब तो गांवों में भी पड़े नजर आने लगे हैं। नालियों की स्थिति यह है कि कुछ वीआईपी क्षेत्रों को छोड़ दें तो वह सड़ी मिलती है और मुंह पर रूमाल रखकर निकलना पड़ता है। जगह जगह कूड़ा जलाया जाता है। प्रधानमंत्री द्वारा स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है करोड़ों रूपये उस पर खर्च हो रहे हैं लेकिन कितने ही मोहल्ले ऐसे मिल जाएंगे जहां साल भर झाडू नहीं लगती।
मेरा मानना है कि डॉक्टर साहब आप सलाह देते हैं। मीडिया में बयान व फोटो छपवाकर किस बीमारी में क्या करना चाहिए सलाह देते हैं। अच्छा तो यह है कि आप सभी मिलकर बीमारियेां की असली वजह नाले नालियों में बहती गंदगी, तमाम जगह लगे कूड़े के ढेर और उड़ती धूल क्लीनिक व नर्सिंग होमों का निकलने वाला कूड़ा जो कई नई बीमारी फैलाने में सक्षम है उस पर रोक लगाने और सफाई कराने का सुझाव सरकार को देते हुए जिम्मेदार अफसरों की ओर शासन प्रशासन का ध्यान क्यों नहीं दिलाते। डॉक्टर साहब हर महीने दांत साफ करने वाला ब्रंुश बदलने और मास्क लगाने से इनके निर्माताओं की आमदनी तो बढ़ सकती है लेकिन बीमारियों से छुटकारा मिल जाएगा वो संभव नहीं है। क्योंकि मास्क लगाने से कई लोगों के बीमार होने की खबरे जरूर पढ़ने को मिल चुकी है।
एक ग्रामीण कहावत जिसके पैर ना पड़े बिवाई वो क्या जाने पीर पराई मतलब जिसके घर का बीमार होता है या बिछड़ता है उसका दुख तो पीड़ित परिवार ही कर सकता है दूसरा कोई नहीं लेकिन सृष्टि के रचचिता हमारे भगवान ने हमें अच्छा ओर मानव जीवन दिया। डॉक्टर साहब आप भी सही मायनों में अपनी जिम्मेदारियों को समझे तो धरती के भगवान कहलाते हैं क्योंकि जिस प्रकार परमात्मा परेशानियों से छुटकारा दिलाता है आपकी दवाई भी कई बीमारियों को हर लेती है इसलिए फीस बढ़ाने की बजाय शासन प्रशासन के अधिकारियों और जनप्रतिििनधियों को यह सुझाव दीजिए कि किस प्रकार नई नई बीमारियों को होने से रोका जा सकता है। क्योंकि यह वक्त की सबसे बड़ी मांग है और मानव जीवन के सुरक्षा के लिए आत्यंत आवश्यक है। सिर्फ महंगी दवाईयों को देने से आपकी जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती है और ना ही सब अच्छे हो जाते हैं।
खेलते कूदते नाचते गाते हार्ट अटैक से क्यों मर रहे हैं लोग! डॉक्टर साहब मास्क लगाने या ब्रुश बदलने अथवा महंगी दवाई खाना ही इसका समाधान नहीं, शासन प्रशासन को?
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