केंद्र सरकार ने दीपावली और अन्य त्योहारों के मौकों पर केंद्रीय कर्मचारियों व अधिकारियों को दिए जाने वाले उपहारों और अन्य संबंधित वस्तुओं पर कोई खर्च ना करने के निर्देश देने के साथ ही उपहार पर रोक लगाई है। वित्त मंत्रालय के एक विभाग से संबंध सभी मंत्रालयों व विभागों व संगठनों को निर्देश भेजे गए हैं कि राजकोषीय अनुशासन को बढ़ावा देने और गैर आवश्यक व्यय पर अंकुश लगाने के मकसद से सरकार द्वारा यह निर्णय लिया गया है। इसके पीछे मंशा जताई गई है कि सार्वजनिक संसाधनों का विवेकपूर्ण व न्यायसंगत उपयोग करना भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक व वित्तीय संस्थानों पर भी यह नियम लागू होंगे।
अगर ध्यान से सोचे तो बात तो छोटी नजर आती है कि एक उपहार पर खर्चा ही कितना होता है लेकिन सामूहिक रूप से देखा जाए तो पूरे देश के हिसाब से यह खर्च करोड़ों अरबों तक पहुंच सकता है। कुछ संगठनों ने इसे गलत बताते हुए कहा कि यह रोक नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे कर्मचारियों को प्रोत्साहन मिलता है और वह साल भर तक पूरी मेहनत से काम करते हैं। सरकारी कार्यालयों में कर्मचारी ९० प्रतिशत कैसे काम करते हैं और उपहार मिलने पर वह कितना काम करेंगे यह तो जिनका वास्ता इनसे पड़ता है वो अच्छी तरह जानते हैं। मेरा मानना है कि सरकार का यह निर्णय बिल्कुल सही है क्योंकि दस से पांच या नौ से छह काम करने वाले मोटी तनख्वाह लेते हैं और हर मौसम में उनकी तनख्वाह चढ़ती रहती है लेकिन देश के आर्थिक और सामाजिक व्यवस्थाओं व खानपान की व्यवस्था मजबूत करने वाले रीढ़ की हडडी के समान किसान व्यापारी और मजदूर जो १६ घंटे कड़ी मेहनत करते हैं कोई आपदा आ जाए तो भी कहीं से सहारा नहीं मिलता उन्हें तो कोई उपहार नहीं दिया जाता तो फिर आठ घंटे की डयूटी मोटी तनख्वाह लेने वालों को इनके द्वारा दिए जाने वाले टैक्सों से पुरस्कार क्यों। कर्मचारी संगठन चाहते हैं कि उन्हें भी पुरस्कार मिले तो सरकार ऐसी नीति बनाएं कि हर मेहनतकश को चाहे वह मजदूर हो या किसान या व्यापारी सबको त्योहारों पर पुरस्कार दिए जाएं क्योंकि जितनी मेहनत किसान और व्यापारी करते हैं उतनी एसी कमरों में बैठकर काम करने वाले नहीं कर सकते। समय आ गया है कि समाज में सबके साथ एक समान व्यवहार होना चाहिए मेहनतकश कोई भी हो। उसके काम का सम्मान उसे मिलेगा तभी देश आगे बढ़ेगा।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
सरकारी कर्मचारियों को ही क्यों उपहार मिले! व्यापारी किसान और मजदूरों को भी दिए जाएं
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