मेरठ 02 सितंबर (प्र)। रजिस्टर्ड डाक एक रिवाज कभी भरोसे की सबसे मजबूत डोर मानी जाने वाली रजिस्टर्ड डाक सेवा अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई है। सोमवार से 171 वर्षों का यह लंबा सफर आधिकारिक रूप से थम गया है। बता दे कि डाक विभाग ने इसे आधुनिकता की ओर एक बड़ा कदम बताते हुए रजिस्टर्ड डाक को स्पीड पोस्ट में समाहित कर दिया है। रजिस्टर्ड डाक सेवा की शुरुआत अंग्रेजी शासन में वर्ष 1854 में हुई थी। इसे विशेष रूप से सरकारी फाइलों, कोर्ट नोटिस, वित्तीय दस्तावेजों और आमजन के निजी पत्रों को सुरक्षित ढंग से पहुंचाने के लिए उपयोग किया जाता था। रेल, सड़क, और जलमार्ग से होते हुए पत्र गंतव्य तक पहुंचते थे। ताकि सुरक्षा और लेखा-जोखा सुनिश्चित रहे। देश में वर्ष 1986 में स्पीड पोस्ट सेवा शुरू की गई। जिसने डाक जगत में नई क्रांति आई। स्पीड पोस्ट के माध्यम से 72 घंटे में देश के किसी भी कोने में डाक पहुंचना संभव हो गया। जबकि रजिस्टर्ड डाक में यह समय आठ से 10 दिन या इससे भी अधिक हो जाता था। यही कारण रहा कि बीते कुछ दशकों में रजिस्टर्ड डाक की उपयोगिता लगातार कम होती चली गई।
भारत सरकार ने डिजिटल युग और संचार के नए साधनों ईमेल, व्हाट्सएप और अन्य ऑनलाइन सेवाओं की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए रजिस्टर्ड डाक को बंद करने का निर्णय लिया। उत्तर प्रदेश में लगभग 17,000 और पूरे देश में करीब 1.56 लाख डाकघर इस सेवा से जुड़े रहे हैं जहां रजिस्टर्ड डाक सस्ती सेवा थी। वहीं स्पीड पोस्ट अपेक्षाकृत महंगी है। रजिस्टर्ड डाक के लिए ग्राहक को 17 रुपये रजिस्ट्रेशन शुल्क और प्रति 20 ग्राम पर 5 रुपये यानी कुल 22 रुपये चुकाने पड़ते थे। इसके मुकाबले स्पीड पोस्ट में 200 किलोमीटर तक की दूरी के लिए 20 से 50 ग्राम वजन तक 41.30 रुपये का शुल्क लिया जाएगा जो वजन बढ़ने के साथ और बढ़ेगा।
रजिस्टर्ड डाक ने न केवल सरकारी और कानूनी पत्राचार को सुरक्षित ढंग से आगे बढ़ाया बल्कि लाखों लोगों की भावनाओं को भी एक-दूसरे तक पहुंचाया। कभी किसी के लिए यह खुशियों का संदेश थी तो किसी के लिए गम का सहारा आज भले ही यह सेवा बंद हो गई हो, लेकिन इसके जरिए जुड़ी यादें भरोसा और परंपरा लोगों के दिलों में हमेशा जीवित रहेंगी। यह बदलाव आधुनिकता की मांग है परंतु यह कहना गलत न होगा कि इसके साथ एक पुराना और भावनाओं से भरा युग भी समाप्त हो गया है।
