Wednesday, December 24

भगवान भोलेनाथ पर बेलपत्र चढ़ाने से मिट जाते हैं सभी जन्मों के पाप

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दैनिक केसर खुशबू टाइम्स
मेरठ, 16 जुलाई (विशेष संवाददाता)
शिव महापुराण कथा के तीसरे दिन बाबा मानस नाथ महादेव मंदिर मानसरोवर कॉलोनी के प्रांगण में कथा वाचक डॉ राम प्रकाश शास्त्री द्वारा नारद मुनि जी की तपस्या और नारदमोह का वर्णन करते हुए बताया कि नारद मुनि की तपस्या हिमालय पर्वत में एक सुंदर गुफा में हुई थी। वहां, उन्होंने भगवान विष्णु की भक्ति में लीन होकर लंबी अवधि तक कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर, भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें वरदान दिया। पूज्य शास्त्री जी ने बताया नारद मुनि, जो भगवान विष्णु के भक्त और देवर्षि माने जाते हैं, एक बार अपनी तपस्या और ज्ञान पर बहुत घमंड करने लगे थे। भगवान विष्णु ने नारद मुनि के अहंकार को दूर करने के लिए एक लीला रची। उन्होंने एक सुंदर राजकुमारी के स्वयंवर का आयोजन किया, जिसमें नारद मुनि भी पहुंचे। नारद मुनि उस राजकुमारी से मोहित हो गए और भगवान विष्णु से उनका रूप (सुंदर) मांगा ताकि राजकुमारी उन्हें पसंद करे। भगवान विष्णु ने नारद मुनि को वानर (बंदर) का रूप दे दिया। नारद मुनि, वानर रूप में, राजकुमारी के पास पहुंचे, लेकिन राजकुमारी ने उन्हें ठुकरा दिया, जिससे नारद मुनि का बहुत अपमान हुआ। जब नारद मुनि को अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उन्हें अपनी माया का पता चला और उनका अहंकार चूर-चूर हो गया। यह प्रसंग हमें सिखाता है कि ज्ञान और तपस्या होने के बावजूद, मनुष्य माया के प्रभाव में आ सकता है और अहंकार से बचना चाहिए। यह यह भी दर्शाता है कि भगवान की लीला से ही मनुष्य अपने अज्ञान से मुक्त हो सकता है।
उन्होंने बताया कि ब्रह्मा विष्णु शिवकी महिमा अपार है बस हमें उसे ग्रहण करना आना चाहिए। ग्रहण करने के लिए हमें अपने मन व मस्तिष्क को स्वच्छ और भक्ति में रखना होगा।
उन्होंने बेलपत्र चढ़ाने की महिमा पर बताते हुए कहा कि बेलपत्र, जिसे बिल्व पत्र भी कहा जाता है, भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है और इसे शिवलिंग पर चढ़ाने का विशेष महत्व है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती के पसीने की बूंद से बेल के पेड़ की उत्पत्ति हुई, जिसके कारण बेलपत्र में माता पार्वती का वास माना जाता है. भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
शिव नाम की महिमा का कोई पार न पा सका है। शिव सर्वव्यापी और अनंत है। शिव सब में है ओर सब शिव के है।जिसमें शिव नहीं व शव हो जाता है। इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि भी शिव के कुछ भी संभव नहीं है।
दक्ष प्रजापति का वर्णन करते हुए कहा कि शिव पुराण में दक्ष प्रजापति का महत्वपूर्ण वर्णन है। दक्ष, ब्रह्मा के पुत्र और माता सती के पिता थे, जो बाद में भगवान शिव की पत्नी बनीं। दक्ष, शिव को अपना दामाद स्वीकार करने में असहमत थे, जिसके कारण उनका शिव के साथ संघर्ष हुआ। दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने शिव का अपमान किया, जिसके परिणामस्वरूप सती ने क्रोध में यज्ञ की अग्नि में आत्मदाह कर लिया।
देवी सती के बारे के बारे में बताते हुए शास्त्री जी कहा कि देवी सती, जिन्हें दक्षायणी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवी हैं। वह भगवान शिव की पहली पत्नी और दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। सती को शक्ति का रूप माना जाता है और उन्हें सुखी वैवाहिक जीवन और दीर्घायु की देवी के रूप में पूजा जाता है।
शिव पुराण में, शिव-पार्वती विवाह को प्रेम, समर्पण और तपस्या का प्रतीक माना गया है। यह विवाह, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण घटना है, जो महाशिवरात्रि के रूप में मनाई जाती है। शिव को पाने के लिए माता पार्वती ने लगभग तीन हजार वर्ष तपस्या की थी।
आज कथा में मुख्य यजमान में श्री सच्चितानंद मित्तल, भामा मित्तल व मितलेश रही।
कथा श्रवण करने वालों में मुख्य रूप से जया तायल, अर्चना यादव, रेखा दीक्षित, अनिता राठी, उर्मिला वर्मा, कमला गुप्ता, आराधना शर्मा, राकेश शर्मा, सुरेन्द्र गुप्ता, अशोक त्यागी, अनुज गोयल, नरेंद्र वर्मा, रविन्द्र सोलंकी आदि मौजूद रहे।

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