आज हम विश्व साक्षरता दिवस मनाया। कई दिनों बाद खुले स्कूलों के चलते जो बच्चों की किलकारियां और आपस में पढ़ाई के बारे में की जा रही चर्चा सुनी वो यह दर्शाती थी कि गरीब हो या अमीर बच्चा हो या बड़ा सबमें शिक्षा को लेकर उत्साह ओैर उमंग है। अगर साधन नहीं है तो भी संकल्प मौजूद है तो कोई आगे बढ़ने और पढ़ाई करने से नहीं रोक सकता। एक जमाना था जब ज्यादातर पढ़ाई के मौके बड़े लोगेां के बच्चों को ही मिला करते थे। तब भी और आज भी सरकारी ग्रामीण स्कूलों में पढ़कर ही गरीबों के बच्चे विभिन्न क्षेत्रों में देश की कमान संभालते रहे हैंं और आज भी यह व्यवस्था कम नहीं हुई है। मैं यह नहीं कहता कि सारे शिक्षक एक समान है लेकिन शिक्षकों की पात्रता जिसे लेकर तय होती है उस पर ध्यान कम और अन्य पर ज्यादा नजर आता है। समय बदल रहा है। देश की आजादी को सात दशक से ज्यादा हो चुके हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी बदलाव आया है लेकिन जैसा हर क्षेत्र में स्वदेशी को बढ़ावा देने की मुहिम चल रही है मुझे लगता है कि शिक्षा में भी स्वदेशी का भाव बढ़ना चाहिए। भले ही कुछ लोगेां को यह गलतफहमी हो कि वह बच्चों को विदेश में पढ़ाकर कामयाब बना सकते हैं तो ऐेसे लोगों से आग्रह है कि वह इतिहास उठाकर देखें। देश के युवाओं ने हमेशा शिक्षा में भी अपना सिक्का जमाया है। जीरों पर बोलने वाले स्वामी विवेकानंद प्रेरणा का काम कर रहे हैं।
शिक्षकों और साक्षरता की महत्ता इसलिए महत्वपूर्ण होती है क्योंकि देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी समेत तमाम बड़े नेता और सीएम योगी सहित तमाम प्रदेशों के मुखिया शिक्षक बन अफसरों नेताओं और कार्यकर्ताओं को शिक्षा देने का काम करने में गुरेज नहीं करते हैं। यह बात विश्वास से कही जा सकती है कि नई शिक्षा नीति के चलते अब हर बच्चे को साक्षर बनने और बागे बढ़ने का भरपूर मौका मिल रहा है। लेकिन अभी जो साक्षरता में जीवन मूल्य का अभाव है उसे दूर करने की बड़ी आवश्यकता महसूस की जाती है इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता। मेरा मानना है कि पढ़ने वाले बच्चे हो या नौजवान गूगल के साथ साथ किताबों को पढ़कर साक्षरता प्राप्त कर सकते हेैं और स्कूलों और र्शिक्षकों को चाहिए कि बस्तों का बोझ कम करने के लिए रटने की जगह सीखने पर विशेष ध्यान दिया जाए और ज्यादा होमवर्क ना देकर स्कूलों में ही इतनी पढुाई की जाए कि वह तनाव में ना रहेँ। जिस प्रकार खेलने में ध्यान देते हैं उसी प्रकार पढ़ाई के भी खेल भावना से अपनाएं
मैं सिर्फ पुरस्कार प्राप्त करने वाली संस्था की प्रेरणास्त्रोत सफीना हुसैन पर गर्व भी कर सकते हैं और उससे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ सकते हैं क्योंकि जिन परिस्थितियों में शफीना 59 की जिंदगी गुजरी ऐेसे माहौल में उच्च शिक्षा प्राप्त कर ऑैरों के लिए मार्ग प्रशस्त करना औरों के लिए बड़ी उपलब्धि कह सकते हैं। आज से 54 साल पहले पैदा हुई और जनता क्वाटर में रही अंतरजातीय विवाह करने वाले माता पिता की बेटी को कितनी परेशानी झेलनी पडुी होंगी इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज भी जब हिंदू मुस्लिम युवक युवती आपस में शादी करते हैं तो कितना बवाल होता है। 12वीं के बाद उन्हें पढ़ाई छोडनी पड़ृी और तीन साल बाद उनकी बुआ सफीना को लंदन ले गई जहां उन्हें लंदन स्कूल आफ इकॉनोमिक्स में दाखिला मिला। स्नातक के बाद वह आत्मविश्वास से परिपूर्ण थी और सिलिकॉन वैली के स्टार्टअप में नौकरी मिलने से उनकी इच्छा पूरी नहीं हो पा रही थी। इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़कर कुछ संस्थाओं के लिए काम किया और 1998 से 2004 तक चाइल्ड फैमिली हेल्थ इंटरनेशनल संस्था में सीईओ का कार्य करने के बाद वो 2005 में मुंबई चली आई। तब तक उनके पिता युसुफ हुसैन भी मुंबई में रहने लगे थे। तब सफीना ने केंद्र सरकार के सहयोग से लड़कियों की शिक्षा के बारे में काम करना शुरू किया। उनसे मिली 26जिलों की सूची में नौ राजस्थान के थे। उन्होंने 2007 में एजुकेट गर्ल्स संस्था की नींव रखी और पाली जिले के 50 गांवों में काम करना शुरू किया। बताते चलें कि आज उनकी संस्था बिहार यूपी मध्य प्रदेश के 29000 गांवों में राज्य सरकार के साथ मिलकर काम कर रही है और उनका प्रयास है कि कोई बच्ची अशिक्षित ना रहे। उनकी संस्था में 3000 लोग नियमित रूप से कार्यरत है। बीते 18 साल में शफीना ने लगभग 20 लाख बच्चियों को स्कूलों से जोड़कर रोशन करने का काम किया । उनकी संस्था को रैमन मैगसायसाय पुरस्कार मिला। साक्षरता लडुकियों को उपलबध कराने में शफीना की मेहनत की तारीफ होनी चाहिए। मेरा मानना है कि इस उपलब्धि के लिए केंद्र सरकार और जिन राज्यों में सफीना काम कर रही है वहां का श्रेष्ठ सम्मान ेदने के अतिरिक्त धनराशि दी जानी चाहिए और सफीना जैसी दूरगामी सोच रखने वालों को प्रोत्साहित करने में कोई कोताही ना हो तो इस साक्षरता दिवस पर यह कहा जा सकता है कि देश पूर्सा रूप से साक्षर होगा क्योंकि यहां की मिटटी में पलकर बढ़े हुए अनपढृ बच्चे भी अपना लोहा दुनिया में मनवा रहे हैं। ऐसे ही बादशाह अकबर निरक्षर होते हुए भी सफल शासक सिद्ध हुआ। इसी तरह मेरे जैसे अनपढ़ भी वो काम करते मिलेंगे वो पढ़े लिखे भी नहीं कर पाते। मैने कोई स्कूली शिक्षा नहीं ली लेकिन विद्वानों द्वारा किया जाने वाला काम समाचार पत्र संचालन कर रहा हूं। मैंने देश की पहली सोशल मीडिया एसोसिएशन बनाई। हर आदमी को साक्षर होना चाहिए लेकिन यह नहीं मिली तो हताश ना होकर समाज में काम करो तो आपको मुकाम जरुर मिलेगा।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
साक्षरता दिवस पर विशेष! 20 लाख बेटियों को साक्षर बनाने में लगी सफीना हो सरकार दे सम्मान और धन, अपने देश में साक्षर ही नहीं निरक्षर भी बड़े मुकाम पा चुके हैं
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