Tuesday, October 28

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सुरक्षा में पत्रकार के नाम पर सेंध लगाने की कोशिश, सूचना विभाग की लापरवाही व निष्क्रियता का है नतीजा

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मुख्यमंत्री का प्रोटोकॉल और उनकी सुरक्षा में किसी भी रूप में चूक होना एक बहुत बड़ी लापरवाही ही कही जा सकती है। प्रदेश के नागरिकों की भावनाओं से जुड़े यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ जी बीते दिनों गढ़ गंगा मेले का शुभारंभ करने पहुंचे खबर के अनुसार तीर्थ नगरी गढ़मुक्तेश्वर के ब्रजघाट में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दौरे के दौरान सुरक्षा व्यवस्था में एक गंभीर चूक सामने आई है। बीते रविवार को कार्तिक पूर्णिमा गंगा मेले की तैयारियों का निरीक्षण करने पहुंचे सीएम के पास पूजा स्थल तक कुछ संदिग्ध व्यक्ति पहुंच गए।
इनमें से कई लोग खुद को पत्रकार बताकर लाइव कवरेज का हवाला देकर सुरक्षा घेरे को तोड़ने में सफल हो गए। इस घटना ने न केवल स्थानीय प्रशासन और पुलिस की नाकामी को उजागर किया है, बल्कि पूरे राज्य में सुरक्षा प्रोटोकाल पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
सूत्रों के अनुसार रविवार दोपहर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी हेलीकाप्टर से गढ़मुक्तेश्वर पहुंचे थे। उन्हें ब्रजघाट पर कार्तिक मेले की तैयारियों का जायजा लेना था, जिसमें पूजा-अर्चना और सुरक्षा व्यवस्थाओं का विशेष ध्यान रखा गया।
मेला परिसर पर बनाए गए थाना सदर बाजार के पास विशेष रूप से मुख्यमंत्री के लिए एक अस्थायी पूजा घाट भी तैयार किया गया था, जहां सीएम ने गंगा स्नान और पूजन किया।
बताते है कि इसी दौरान सुरक्षा घेरे में सेंध कर कुछ व्यक्ति घाट तक पहुंच गए। इनमें से कुछ खुद को पत्रकार बता रहे थे इनका कहना था कि लाइव कवरेज कर रहे हैं और खबर के लिए फुटेज लेनी है।
जैसे बहाने बनाकर इन्होंने सुरक्षाकर्मियों को चकमा दिया। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक यह व्यक्ति न केवल घाट के करीब पहुंचे, बल्कि कुछ ने तो सीएम के नजदीक आने की कोशिश भी की।
सतर्क सुरक्षाकर्मियों ने आखिरकार इन्हें रोका, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। मेले की भारी भीड़ के बीच ऐसी चूक होना खतरनाक साबित हो सकता था। ऐसे में सवाल उठता है कि सुरक्षा इतनी ढीली क्यों थी कि कोई भी व्यक्ति आसानी से अंदर घुस गया। अगर कोई गंभीर खतरा हो जाता तो क्या होता?
लखनऊ से उच्चस्तरीय जांच के आदेश, मांगी रिपोर्ट
इस घटना की जानकारी मिलते ही लखनऊ से उच्चस्तरीय जांच के आदेश जारी हो गए। मुख्यमंत्री कार्यालय और डीजीपी मुख्यालय ने तत्काल कार्रवाई करते हुए लोकल इंटेलिजेंस यूनिट (एलआईयू) से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।
जांच का फोकस इस बात पर है कि कथित पत्रकारों की पहचान कैसे सत्यापित नहीं हुई और सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन क्यों नहीं किया गया? पुलिस की चूक ने पूरे सिस्टम को हिला दिया है। विपक्षी दलों ने भी इसकी आलोचना शुरू कर दी है। इसे प्रशासन की लापरवाही बताते हुए। ऐसे आयोजनों में मीडिया की सख्त जांच की मांग की है।
वैसे तो इस मामले में सभी जिम्मेदारों की खामियां नजर आती है क्योंकि मामला पत्रकार बताकर सीएम के निकट जाने की कोशिश का है मगर प्रथम दृष्टिया सबसे ज्यादा चूक सूचना विभाग के अफसरों की कही जा सकती है क्योंकि प्रशासन और पुलिस के पास ऐसे मौकों पर कई और महत्वपूर्ण बिन्दु निगाह रखने के लिए होते है लेकिन सूचना विभाग का सिर्फ एक ही काम है कि वो मीडिया को मैनेज करे और शासन प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों के बीच तालमेल बनाने का काम करे और यह देखे कि पत्रकार के नाम पर कोई गलत व संदिग्ध छवि का व्यक्ति तो वीआईपी तक ना पहुंच पाए फिर यहां तो मामला उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री की सुरक्षा का था जिसमें यह कहने में कोई हर्ज महसूस नहीं हो रहा है कि इसके लिए पूर्ण रूप से सूचना से संबंध अधिकारियों की जबावदेही तय की जाए। और सुनिश्चित किया जाए कि भविष्य में पत्रकार की आड़ में या जिन्हें ऐसी सुविधा प्राप्त नहीं है वो किसी भी वीआईपी के निकट ना पहुंच पाए क्योंकि पूर्व में देश में घटी कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं में ऐसे ही पत्रकारों के शामिल होने की चर्चाएं पढ़ने और सुनने को मिलती रही है। आखिर सूचना विभाग ऐसे मौकों पर यह देखकर कि कौन पत्रकार है कौन नहीं सही मायनों में मीडिया से जुड़े लोगों को पास जारी कर और विभागीय लोग मौके पर मौजूद रह यह तय क्यों नहीं करते कि सीएम की कवरेज के लिए कौन अतिकृत है और कौन नहीं। क्योंकि ऐसी घटनाओं से सही मायनोें में पत्रकार है और ईमानदारी के साथ इस गौरवमयी व्यवस्था का पालन कर रहे है ऐसी घटनाओं और उनसे संबंध खबरों से मीडिया से जुड़े लोग बदनाम होते है। और आगे चलकर उन्हें ऐसे मौकों पर उन्हें परेशानी का सामना भी करना पड़ता है।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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