बिहार में चुनाव होने वाले हैं। महाराष्ट्र में भी कई चुनावों को लेकर सरगर्मियां जारी है और २०२७ में यूपी समेत कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव संभावित है। ऐसे में जनता को आकर्षित करना सभी दलों की जिम्मेदारी और अपने उम्मीदवारों के वोटों में बढ़ोत्तरी हेतु आवश्यक कहा जा सकता है लेकिन राजनीतिक दल जो मुफ्त की रेवड़िया बांटने जैसे लोकलुभावने वादे कर रहे हैं वो सही नहीं है क्योंकि कोई भी दल जीतकर आ जाए वो ना पहले इस प्रकार के वादे पूर्ण हुए हैं ना भविष्य में होंगें यह विश्वास से कहा जा सकता है। पटना में महागठबंधन से सीएम पद के दावेदार तेजस्वी यादव का कहना है कि चुनाव जीते तो ३० हजार रूपये एकमुश्त महिलाओं के खाते में भेजे जाएंगे तो दूसरी तरफ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे यह मानते हुए कि बिहार विधानसभा चुनाव दो गठबंधन के बीच में है घोषणा कर रहे हैं कि हम हर घर को एक नौकरी देने का वादा निभाएंगे। सत्ताधारी दल के नेता भी इस मामले में पीछे नहीं लगते।
लेकिन एक सवाल बड़ा विकट हैं कि केंद्र हो या प्रदेश सरकारें जितना आर्थिक रूप से ऐसे वादों को पूरा करने के लिए उन्हें धन संपदा से परिपूर्ण होना चाहिए था वो शायद नागरिकों के अनुसार नहीं है। अगर किसी वजह से अपने वादों को पूरा करने की कोशिश की जाएगी तो आम आदमी पर टैक्स की मार भरपूर तरीके से डाली जाएगी जिसे झेलने में नागरिक समर्थ नहीं है। अगर फिर भी कोई यह कहे कि हम बिना टैक्स बढ़ाए सभी वादे पूरा कर देंगे तो सबसे बड़ी बात है कि कांग्रेस हो या भाजपा आप हो या कोई और जहां जहां उनकी सरकारें हैं वर्तमान में पहले वहां के नागरिकों को के लिए इस प्रकार के काम क्यों नहीं कर रहे। जहां तक तेजस्वी का मामला है तो उनकी इस समय कहीं सरकार नहीं है लेकिन कांग्रेस तो कई प्रदेशों में सरकार चला रही है। भाजपा तो केंद्र सहित ज्यादातर प्रदेशों में सत्ता संभाले हुए है तो जो घोषणाएं चुनावी राज्यों में की जा रही है वह अपने सरकार वाले राज्यों में क्यों लागू नहीं करते। नागरिक कह रहे है कि यह वादे झूठ का पुलंदा ही हो सकते हैं अगर नहीं हे तो वह अपनी सरकार वाले राज्य में लागू करे फिर आगे बात की जाए।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
चुनाव वाले राज्यों से पहले जिन प्रदेशों में सरकार चला रहे हैं राजनीतिक दल वहां के नागरिकों को उपलब्ध कराएं ऐसी सुविधाएं
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