Wednesday, December 24

स्वतंत्रता संघर्ष में मेरठ का दिल्ली से कन्याकुमारी तक रहा योगदान

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मेरठ 22 नवंबर (प्र)। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में शुक्रवार को मेरठ मंडल स्तरीय प्रदर्शनी का आयोजन किया गया. इस अवसर पर उत्तर प्रदेश अभिलेखाकार संस्कृति विभाग के द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी कार्यक्रम में विशेष रूप से स्वतंत्रता आंदोलन में मेरठ मंडल के योगदान विषय पर चर्चा की गई. चर्चा में अलग अलग शिक्षण संस्थानों के विद्वान शामिल हुए.

मुख्य वक्ता और इतिहासकार डॉ. अमित पाठक ने कहा कि कभी-कभी ऐसा लगता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर अनछुआ सा रहता है. यह अनोखा पहलू है जो बाहर आना चाहिए. 1857 की क्रांति के समय लगभग 2 महीने तक इस क्षेत्र को अंग्रेजों से मुक्त रखा गया. इसी दौरान यहां जेनोसाइड और नरसंहार हुए.

1857 से हमने यह सीखा कि अंग्रेजों से आमने-सामने की लड़ाई नहीं जीती जा सकती थी. उस समय का भारत मध्यकाल में जी रहा था. भारतीय और अंग्रेजों के बीच हुई लड़ाई में हर स्तर पर बहुत अंतर था. हथियार भी अंग्रेजों के विकसित थे, जबकि हिंदुस्तानी परंपरागत और पुराने हथियारों से संघर्ष कर रहे थे. डॉ. अमित पाठक ने बताया कि गांधी जी के यात्रा वृत्तांत, सुभाष चंद्र बोस की मेरठ आगमन की चर्चा की और सुभाष और गांधीवादी व्यक्तियों के बीच मतभेदों पर चर्चा की.

मुख्य अतिथि विधान परिषद सदस्य धर्मेंद्र भारद्वाज ने मेरठ की माटी को प्रणाम करते हुए कहा कि यह वो धरती है, जिसने दिल्ली से कन्याकुमारी तक आजादी की लौ जलाए रखी। रामप्रसाद बिस्मिल की पंक्तियां ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’ आज भी यहां की नस-नस में दौड़ती हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में स्वतंत्रता सेनानियों के विचार और संस्कार जीवंत किए जा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश राजकीय अभिलेखागार संस्कृत विभाग लखनऊ के निदेशक अमित कुमार अग्निहोत्री ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों के विचारों सिद्धांतों और संस्कारों को लेकर के आज भी कार्य चल रहा है. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर हरे कृष्णा ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में मेरठ मंडल का योगदान बेहद महत्वपूर्ण था. रॉलेट एक्ट के विरोध में टॉप 3 शहरों में मेरठ का नाम भी था.

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार अनिल कुमार यादव ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में लंबा संघर्ष रहा. इसमें सभी के योगदान को याद रखना है. इस अवसर पर उत्तर प्रदेश विधान परिषद सदस्य धर्मेंद्र भारद्वाज, विशिष्ट अतिथि विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. अनिल कुमार यादव, मुख्य वक्ता प्रसिद्ध चिकित्सक व इतिहासविद डॉ. अमित पाठक, कार्यक्रम संयोजक इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर केके शर्मा मौजूद रहे.

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