बच्चे हर परिवार की खुशहाली और प्रसन्नता का प्रतीक तथा परिवार को बांधे रखने में सबसे ज्यादा सफल होते हैं। यह किसी से छिपा नहीं है कि अगर आपकी कोई बात नहीं मान रहा है या समाजहित में किसी से कुछ कराना है तो आप घर के बच्चों को समझा दीजिए परिवार का मुखिया उनकी बात भी मानेगा और आपका काम भी होगा। आज हम बाल दिवस मना रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिवस पर यह दिन मनाया जाता है और पूरे देश में इस दिन स्कूलों में आयोजन होते है। दिल्ली के प्रगति मैदान का मेला भी आज से शुरू होता है। इस दिन की महत्ता हमें इससे पता चलती है। कोई बाल अपराधियों से मुक्त माहौल बनाने का भविष्य में दावा कर रहा है तो कोई कोई बाल श्रम से मुक्ति दिलाने की बात करते नहीं थक रहे हैं। कुछ लोग इस बात को लेकर चितिंत है कि उनके बच्चों में मोबाइल की लत बढ़ रही है तो कुछ का कहना है कि माता पिता ही बच्चों को हाथों में मोबाइल फोन थमा रहे हैं। हो सकता है कि जो जो यह लोग कह रहे हैं वो करेंगे भी। मोबाइल की लत भी हो सकती है। सवाल उठता है कि बच्चे बालश्रम करने को क्यों मजबूर है अपराधी क्यों बन रहे हैं और मोबाइल की लत इन्हें कैसे लग रही है। आवश्यकता इस बारे में सोचने की है। मेरा मानना है कि बच्चों का अकेलापन या परिवार में होने वाली अवहेलना यही उन्हें निगेटिव कार्यों की ओर धकेलते हैं। जहां तक बाल श्रम की बात है तो यह तो मजबूरी कराती है। लगता है कि हमारे नौनिहाल इन चीजों से मुक्त रहे तो इसके लिए परिवार के सदस्यों को बच्चों का ध्यान विशेष तौर पर रखना होगा और इन्हें श्रम से बचाने के लिए सुविधाएं और माहौल की बड़ी आवश्यकता है। मुझे लगता है कि यह सब तभी हमारी आत्मा के अंश बालकों को मिल सकता है जब हमारी सरकारें भय और अपराध मुक्त समाज रोजगार की उपलब्धता आर्थिक तंगी का समापन करने के साथ ही हर व्यक्ति को स्वालंबन का अहसास कराए। जब परिवार के बड़े खुश होंगे तो बच्चों की प्रसन्नता अपने आप ही बढ़ जाएगी।
ऐसा नहीं है कि बालक कुछ कर नहीं रहे हैं। हम कितना ही सोशल मीडिया को कोसते रहे मगर उसके माध्यम से बच्चों का एक बड़ा प्रतिशत हर परिस्थिति से उभरकर नाम काम दाम तीनों बना रहे हैं। और सामान्य परिवारों के बच्चे भी अपनी रूचि के क्षेत्र में सफलता के परचम फहराने में पीछे नहीं है। गूगल पर जाकर देखें तो लगभग दस साल के हजारों बच्चे ऐसे मिल जाएंगे जो अपने काम से समाज जनपद और देश का नाम भी रोशन कर रहे हैं।
कुल मिलाकर कहने का मतलब इतना है कि हम इस बात में ना पड़कर कि बच्चों को मोबाइल की लत लग रही है या वो बाल श्रम क्यों कर रहे हैं और अपराधी क्यों बन रहे है। हमें अपने बच्चों को हर गलत बात से दूर रखने के लिए अभिभावक के स्थान पर दोस्त बनकर उनके विचार जानने और अपनी बात बताने का प्रयास करना होगा। जिस दिन हम हर मामले में ऐसा करने में सफल हो जाएंगे समाज से इस प्रकार की सभी बातें समाप्त हो जाएंगी। आवश्यकता इस बात की है कि हम बालकों के दोस्त बने हर समय हेडमास्टर नहीं। जितना मैंने देखा अगर बाल सुलभ अंदाज में उनसे बात की जाए तो वो अच्छा ही सोचने में सक्षम होंगे। दोस्तों आओ एक अच्छी सोच और भावनाओं के साथ अपने परिवारों की जान बाल सदस्यों के अच्छे भविष्य के लिए आज के दिन घर का माहौल खुशहाल रखने और अपने आत्मा की अंश की बात समझने समझाने का संकल्प लें। देश के भावी भविष्य को सही मार्ग दिखाने में अपनी भूमिका निभाएं। यही बाल दिवस की सबसे बड़ी उपलब्धि हमारे लिए हो सकती है।
बालकों की बात समझो इनसे संबंध हर समस्या को सुनो, अपने आप हो जाएगा समाधान
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