Saturday, July 27

कनोहर लाल पीजी कॉलेज पर प्रशासक हो नियुक्त फैसला आने तक

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मेरठ, 13 दिसंबर (प्र)। प्रबंधतंत्र पुरुष अहंकार एवं मनमानेपन में महिला प्राचार्या को प्रताड़ित कर रहे हैं। प्रदेश में सौ प्राचार्य त्यागपत्र देकर चले आए, लेकिन मैं किसी भी कीमत पर ऐसा नहीं करुंगी। भ्रष्टाचार के विरुद्ध इस लड़ाई में यदि मुझे कुछ होता है तो जिम्मेदारी कॉलेज प्रबंध तंत्र सचिव-अध्यक्ष और शासन के अधिकारियों की होगी, जिन्हें एक साल से पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग कर रही हूं। दीक्षांत समारोह में आपने भी अपनी शक्ति पहचाने और सशक्तिकरण की बात कही लेकिन मिलने का समय आज तक नहीं दिया।
यह शब्द किसी फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं बल्कि शहर के चर्चित कनोहरलाल महिला पीजी कॉलेज की प्राचार्या प्रो. अलका चौधरी के उस पत्र के हैं, जो राज्यपाल को भेजा गया है।

प्राचार्या ने कॉलेज में वित्तीय अनियमितताओं के खिलाफ पांच सौ पेज में साक्ष्य दिए हैं, लेकिन कार्रवाई जीरो है। वित्तीय अनियमितता की जांच के लिए विभागीय ऑडिट के आदेश हो चुके हैं, जबकि प्राचार्या विशेष ऑडिट की मांग कर रही हैं। मैनेजमेंट ने आज तक प्राचार्या के साथ बैठक नहीं की।
प्रबंध तंत्र प्राचार्या के खिलाफ फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है। विवि और हाईकोर्ट में प्रबंध तंत्र को कोई राहत नहीं मिल पाई। प्राचार्या का आरोप है कि कुछ लोगों को घर बैठाकर बिना ज्वाइन कराए ही सेलरी दी जा रही है। फंड का दुरुपयोग किया जा रहा है।

प्रो.अलका चौधरी, प्राचार्या, कनोहरलाल कॉलेज का कहना है कि चाहे जो हो जाए, भ्रष्टाचार के खिलाफ मेरी आवाज जारी रहेगी। मैं एक साल से राजभवन और शासन के अधिकारियों को साक्ष्य दे रही हूं। कार्रवाई आज तक नहीं हुई। मेरे साथ कुछ हुआ तो जिम्मेदार प्रबंध तंत्र सचिव, अध्यक्ष होंगे। मेरा मानसिक उत्पीड़न हो रहा है। एक महिला को परेशान किया जा रहा है और कुछ कार्रवाई नहीं हो रही।
दिनेश सिंघल, अध्यक्ष, कनोहरलाल ट्रस्ट का कहना है कि पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। जनवरी में सुनवाई प्रस्तावित है। मैनेजमेंट ने प्राचार्या का प्रोबेशन पीरियड नहीं बढ़ाया है। जो भी आरोप हैं, वे निराधार हैं। उनका कोई औचित्य नहीं है।

इस संबंध में कॉलेज प्रबंधन और प्राचार्या के कथन अलग अलग है। कौन सही है कौन गलत यह तो वही जान सकते हैं लेकिन समाचार पढ़कर कई नागरिकों का कहना था कि मामला अदालत में विचाराधीन है इसलिए इस पर कोई टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए लेकिन इतने कोई निर्णय हो उतने जिला प्रशासन को कॉलेज पर प्रकाशक बैठाना चाहिए जिससे आरोप प्रत्यारोप खत्म हो और छात्राओं की शिक्षा प्रभावित ना हो पाए।

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