दैनिक केसर खुशबू टाइम्स
मेरठ, 23 फरवरी। पश्चिम बंगाल के चिड़ियाघर में शेर का नाम अकबर और शेरनी का नाम सीता रखे जाने को लेकर जो बवाल मच रहा है कि उसमें कुछ जिम्मेदारों का कहना है कि इनका नाम त्रिपुरा में रखा गया था। हमें लगता है कि त्रिपुरा मे ंरखा गया हो या पश्चिम बंगाल में इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता है। कानून और मानवीय भावनाएं सब जगह एक जैसी होती है। चिड़ियाघर के जो लोग इसमें दोषी हो उनके खिलाफ कार्रवाई हर हाल में होनी चाहिए क्योंकि इससे एक समुदाय की भावनाओं को तो ठेस पहुंचती ही है। कल को और महापुरूषों के नाम पर कुछ लोग ऐसा करने लगेंगे तो जबरदस्ती की कानून व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। उप्र हो या त्रिपुरा माता सीता धार्मिक भावनाओं से जुड़ा नाम है यह चिड़ियाघर के अफसर भी जानते होंगे। और अगर वह अनभिज्ञ थे तो उन्हें तो समय से पूर्व ही सेवानिवृति दे देनी चाहिए। एक खबर के अनुसार गत 12 फरवरी को त्रिपुरा के सिपाहीजला जूलॉजिकल पार्क से शेर और शेरनी को पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी के बंगाल सफारी पार्क में लाया गया था। विश्व हिंदू परिषद ने सर्किट बेंच के सामने एक याचिका दायर कर शेर और शेरनी के नाम बदलने की मांग की है, जिसमें कहा गया कि नागरिकों के एक वर्ग की धार्मिक भावनाएं आहत हुई है। इस मामले पर गुरुवार को कलकत्ता हाईकोर्ट की जलपाईगुड़ी सर्किट पीठ में सुनवाई हुई। इस दौरान पीठ ने गत गुरुवार को कहा कि विवाद से बचने के लिए शेरनी का नाम सीता और शेर का नाम अकबर रखने से बचना चाहिए था।
प्राधिकरण को लेना चाहिए नाम बदलने का फैसला : कोर्ट
शेर का नाम स्वामी विवेकानंद या रामकृष्ण परमहंस के नाम को लेकर पीठ ने सुझाव दिया कि पश्चिम बंगाल चिड़ियाघर प्राधिकरण दोनों जानवरों का नाम बदलने का फैसला करें।
न्यायमूर्ति सौगत भट्टाचार्य ने पूछा कि क्या किसी जानवर का नाम देवताओं, पौराणिक नायकों, स्वतंत्रता सेनानियों या नोबेल पुरस्कार विजेताओं के नाम पर रखा जा सकता है। न्यायाधीश ने मौखिक रूप से कहा कि पश्चिम बंगाल पहले से ही स्कूल में नौकरियों की नियुक्तियों से लेकर कई अन्य मुद्दों पर विवादों से घिरा हुआ है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि इस विवाद से बचें, जल्द एक फैसला लें। न्यायाधीश ने मौखिक रूप से कहा कि किसी जानवर का नाम किसी देवता या किसी भी धर्म से संबंधित व्यक्ति के नाम पर नहीं रखा जाना चाहिए।
मां सीता की देश के हिस्सों में पूजा होती है- कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। हर समुदाय के लोगों को अपना धर्म मानने का अधिकार है। सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने पूछा कि आपको सीता और अकबर के नाम पर एक शेरनी और एक शेर का नाम रखकर विवाद क्यों खड़ा करना चाहते हैं। कोर्ट ने कहा कि नागरिकों का एक बड़ा वर्ग सीता की पूजा करता है, जबकि अकबर एक बहुत ही सफल और धर्मनिरपेक्ष मुगल सम्राट था। न्यायमूर्ति भट्टाचार्य ने कहा कि वह दोनों जानवरों के नामों का समर्थन नहीं करते हैं। सरकारी वकील ने दावा किया कि जानवरों का नाम त्रिपुरा में रखा गया था, न कि पश्चिम बंगाल में, हमारे पास यह साबित करने के लिए पर्याप्त दस्तावेज हैं। कोर्ट ने कहा कि अगर नामकरण वहां किया गया है तो त्रिपुरा में चिड़ियाघर प्राधिकरण को मामले में एक पक्ष बनाया जाना जरूरी है। न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा कि चूंकि एक सामाजिक संगठन और दो व्यक्ति याचिकाएं लेकर आए हैं, जिसमें दावा किया गया है कि नामकरण से देश के नागरिकों के एक वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचती है, इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ताओं के व्यक्तिगत अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने भारत के लोगों के एक बड़े वर्ग के हित का समर्थन किया है, जो एक विशेष धर्म से संबंधित हैं।
मुझे लगता है कि धार्मिक और इससे संबंध भावनाओं से जुड़ा कोई भी ऐसा काम वैसे तो किसी को भी नहीं करना चाहिए मगर सरकारी कर्मचारी को तो इसमें विशेष ध्यान देना चाहिए। सरकार कानून और शांति व्यवस्था की दृष्टि से अपने अधिकारियों व कर्मचारियों को स्पष्ट निर्देश दे कि वो बोलना हो या नाम रखना है या कोई आयोजन ऐसे हर काम से बचें जिससे धार्मिक भावना आहत व शांति भंग होती हो।
प्रस्तुति : अंकित बिश्नोई
मजीठियां बोर्ड यूपी के पूर्व सदस्य सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए के राष्ट्रीय महामंत्री
कलकत्ता हो या त्रिपुरा, शेर का नाम अकबर और शेरनी का सीता रखा ही क्यों गया, चिड़ियाघर के अधिकारियों पर हो कार्रवाई
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