नई दिल्ली, 17 नवंबर। कोई भी बैंक विशेष रूप से भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) देश का अग्रणी बैंक होने के नाते यह सुनिश्चित करे कि जिन लोगों पर मुकदमा चल रहा है वे मृत हैं या जीवित हैं। इस टिप्पणी के साथ दिल्ली की एक अदालत ने ऋण चूककर्ता के खिलाफ वसूली के मुकदमे को खारिज करते हुए यह निर्देश दिया। दरअसल ऋण लेने वाले की मृत्यु हो चुकी है।
जिला जज सुरिंदर एस राठी, सिया नंद नामक व्यक्ति के खिलाफ ब्याज समेत लगभग 13.51 लाख रुपये की वसूली के लिए एसबीआई की ओर से दायर मुकदमे पर सुनवाई कर रहे थे। अदालत ने पहले बैंक को प्रतिवादी के बारे में जांच करने के लिए कहा था, जिसके बाद यह सामने आया कि मुकदमा दायर करने से दो साल पहले नंद की मृत्यु हो गई थी।
अदालत ने इसके बाद गलत हलफनामा देने के लिए संबंधित शाखा प्रबंधक और महाप्रबंधक (कानून, वसूली और मुकदमेबाजी) को नोटिस जारी किया ताकि यह बताया जा सके कि बैंक ने एक मृत व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा करने का फैसला क्यों किया। अदालत ने आदेश में कहा, इसके जवाब में एसबीआई ने अपनी गलती स्वीकार कर ली है और अदालत को आश्वासन दिया है कि वे इस संबंध में मौजूदा आंतरिक परिपत्र का अनुपालन न करने के लिए दोषी अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई कर रहे हैं।
अदालत ने कहा, बैंक की मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) में ऐसा कुछ भी नहीं दिया गया है कि कैसे पता लगाया जाए कि जिस प्रतिवादी पर मुकदमा चलाने की मांग की गई है वह मृत है या जीवित है। अदालत ने नोट किया कि एसबीआई ने अदालत के सुझाव को स्वीकार कर लिया था कि उसके मुकदमेबाजी अधिकारी जन्म और मृत्यु के मुख्य रजिस्ट्रार के डाटाबेस तक पहुंच प्राप्त करेंगे।
अदालत ने यह भी कहा कि एसबीआई ने अदालत के इस सुझाव को स्वीकार कर लिया है कि उसके मुकदमा अधिकारी जन्म एवं मृत्यु के मुख्य रजिस्ट्रार से आंकड़े जुटाएंगे. शाखा प्रबंधक द्वारा मांगी गई बिना शर्त माफी को ध्यान में रखते हुए न्यायाधीश ने उन्हें जारी किए गए नोटिस को खारिज कर दिया और कहा, ‘एसबीआई हमारे देश में अग्रणी राष्ट्रीयकृत बैंक है और दक्षता, पेशेवर रुख, पारदर्शिता एवं नैतिकता के पथप्रदर्शक के रूप में बैंकिंग उद्योग का नेतृत्व करेगा.’