नवजात शिशुओं के लिए मां का दूध उनके विकास और बीमारियों से रोकथाम के लिए रामबाण का काम करता है। विशेषज्ञों के अनुसार मां का शुरूआती दूध कोलेस्ट्रम जो गाढ़ा पीला होता है बच्चे का प्रथम टीकाकरण है। बच्चों को स्तनपान कराने में कैसे बढ़ोत्तरी हो इस पर चर्चाएं चल रही हैं। डॉक्टर अनुपमा के अनुसार मेरठ जैसे शहर में मात्र 12 प्रतिशत महिलाएं ही शिशुओं को स्तनपान कराती हैं। डॉक्टर ने विशेष बीमारी से ग्रस्त महिलाओं को स्तनपान की समस्याओं के निवारण के बारे में भी बताया और कहा कि एचआईवी से ग्रसित मां या सिर्फ अपना दूध पिलाए या पाउडर वाला। दोनों को एकसाथ नहीं पिलाना चाहिए। स्तनपान दिवस के मौके पर छह माह तक अपना दूध पिलाने की शपथ भी महिलाओं को दिलाई गई। कुछ डॉक्टरों ने इसके लिए प्रेरित करने के लिए संकल्प लिया।
यह किसी के बताने और सिखाने की बात तो है नहीं। जब से मानव जीवन शुरू हुआ जानकारों का कहना है कि समय कैसा भी रहा हो मां अपने बच्चों को दूध हमेशा अपना पिलाती रही हैं। इसलिए देश में महाबली और बलवान निरोगी बच्चे भी बड़े होकर समाज में नाम कमा चुके हैं। इस क्षेत्र में सबसे बड़ा काम एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्डस में शामिल तमिलनाडु के तिरूचिन्नापली जिले के वृंदा का योगदान बढ़ा है। उन्होंने 300 लीटर से अधिक ब्रेस्ट मिल्क दान कर हजारों बच्चों और नवजातों की जान बचाई। समय से पहले जन्मे और गंभीर रूप से पीड़ित नवजात शिशुओं को भी जीवनदान देने में भूमिका निभाई। एक खबर के अनुसार दो बच्चों की मां सेल्वा वृंदा ने कुल 300.17 लीटर दूध हयूमन मिल्क बैंक में दान किया
यह किसी से छिपा नहीं है कि वर्तमान खानपान से हर उम्र के लोगों में बीमारियों का बढ़ना और उसके इलाज पर भारी खर्च आगे बढ़ने में बड़ी कठिनाई उत्पन्न करता है। ऐसे में अगर स्तनपान दिवस की भावना को साकार करने और अपने बच्चों को स्वस्थ जीवन देने और बलशाली बनाने के लिए माताएं उन्हें तो अपना दूध पिलाए ही और जो स्वस्थ और कार्यशील महिलाएं हैं वो सेल्वा वृंदा की भांति अगर ब्रेस्ट मिल्क बैंक या पास पड़ोस में जन्में बच्चों के माता पिता को उपहार स्वरूप भेंट करें तो उनका मानव जीवन को स्वस्थ बनाने और बच्चों के विकास के मामले में बहुत योगदान होगा। जहां तक मुझे लगता है इस मामले में परिवारों को भी कोई ऐतराज नहीं होगा क्योंकि बच्चे के जन्म उपरांत स्वस्थ माताओं को जितना दूध चाहिए उससे ज्यादा उपलब्ध होता है। इसलिए मानव जीवन को साकार रूप लेने और आगे बढ़ने के लिए हमें एक दूसरे की मदद डॉक्टर या मां अथवा दादी नानी से सलाह कर किसी को देने में पीछे नहीं रहना चाहिए। सरकार भी अगर ऐसी योजनाओं को बढ़ावा और ब्रेस्ट मिल्क दान करने वाली महिलाओं को प्रोत्साहन दे तो वृंदा ने जो शुरूआत की वो वृहद रूप ले सकती है और बच्चों को जीवित रखने के लिए सरकार को दवाईयों पर होने वाला खर्च बचेगा। इससे ऐसी माताओं को बढ़ावा दिया जा सकता है।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
नवजात शिशुओं का जीवन बचाने के लिए देश के हर जिले में खुले ब्रेस्ट मिल्क बैंक, तमिलनाडु की सेल्वा बृंदा जैसी सोच वाली महिलाओं को दिया जाए बढ़ावा
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