वकीलों को नेताओं और जनता को साथ लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन से आरपार की लड़ाई लड़नी होगी
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच की मांग नई नहीं है लेकिन ताज्जुब है कि प्रदेशों का तो विभाजन हो सकता है लेकिन पता नहीं क्या कारण है कि केंद्र सरकार कोल्हापुर में मात्र छह जिलों पर हाईकोर्ट बेंच स्थापित कर सकती है लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 22 जिलों के लगभग 7 करोड़ निवासियों को सस्ता और सुलभ न्याय दिलाने के लिए इनमें से किसी जिले में हाईकोर्ट बेंच की स्थापना करने का निर्णय क्यों नहीं ले पा रही है।
बताते चलें कि वर्ष 1866 से लेकर 1868 तक संपूर्ण हाईकोर्ट आगरा में होता था। जानकारों का कहना है कि यहां क्रांतिकारियों का गढ़ होने के चलते 1869 में अंग्रेजों ने इसे प्रयागराज (तब के इलाहाबाद) में स्थानांतरित कर दिया था। 1956 में आगरा में नेशनल कांफ्रेंस लॉ में खंडपीठ की मांग उठी। खबरों से पता चलता है कि आजादी के बाद 1955 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच की मांग उठी थी। जिसे डॉक्टर संपूर्णानांद यूपी के पहले सीएम द्वारा केंद्र सरकार में उठाई थी। इस मांग ने जनांदोलन का रूप कब लिया यह तो नहीं पता लेकिन करीब 50 साल से भी ज्यादा समय से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच की मांग उठती रही है और इसके लिए यूपी के मेरठ और आगरा के नाम भी सुझाये जाते रहे हैं। पूरी तौर पर तो मुझे याद नहीं कि यह मांग सबसे पहले मेरठ में किसने उठाई। कई बड़े आंदोलन किए। छोटा होने के बावजूद तमाशाई कह लो या युवा जोश मैं भी शामिल रहा। बेगमपुल पर जाम लगाना हो या रोडवेज पर उसमें से ज्यादातर में शामिल होना और नारे लगाने का काम मैं भी किया करता था। कई दशक से जो देखा वरिष्ठ अधिवक्ता नरेंद्र पाल सिंह, रविप्रकाश त्यागी, गजेंद्र सिंह धामा, और संजय शर्मा राजीव त्यागी के साथ तमाम अधिवक्ता और उनके संगठन पुरजोर तरीके से इस मुददे को उठाने और बेंच स्थापना के लिए जी जान लगा रहे हैं। पिछले कुछ दशक में जो सरकार आई उससे 22 जिलों के वकीलों ने नेताओं सांसदों विधायकों और मंत्रियों को साथ लेकर मांग की जाती रही। 1983 से बेंच की स्थापना को लेकर शुरू हुई मांग के बाद इसी साल 19 नवंबर को पश्चिमी उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय खंडपीठ स्थापना समिति ने संघर्ष की योजना बनाई जिसमें तय हुआ कि इन जिलों में वकील तय दिनों में काम नहीं करेंगे। लेकिन इसके लिए किन शब्दों का उपयोग करूं इन जिलों के नेता प्रधानमंत्री गृहमंत्री कानून मंत्री से मांग करते रहे। आश्वासन भी खूब मिले। अभी हाल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दौरे पर आए सीएम योगी ने मेरठ में इस मांग के समर्थन में केंद्र में बात करने की चर्चा की। अब केंद्रीय मंत्री जयंत चौधरी जी ने हाईकोर्ट बेंच के लिए पीएम से मिलने की बात कर रहे हैं तो राज्यसभा सदस्य डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने कानून मंत्री को पत्र भेजकर बेंच की मांग उठाई है। पूर्व में एक अधिवक्ता के रूप में अपनी शुरूआत करने वाले प्रधानमंत्री बने चौधरी चरण सिंह ने बताते हैं कि इस पर सहमति व्यक्त की थी और जितने नेता व मंत्री पिछले करीब 50 साल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों में आए और यह मुददा उठने पर उन्होंने इसका समर्थन किया गया। केंद्र सरकार के सामने इसे रखने की बात की। पूर्व केंद्रीय मंत्री के रूप में चौधरी अजित सिंह ने गजेंद्र सिंह धामा के नेतृत्व में मेरठ से मिलने वाले वकीलों को तत्कालीन कानून मंत्री से मिलवाया था। कहने का आश्य है कि 50 सालों में आश्वासन और वादे तो बहुत हुए लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश को हाईकोर्ट बेंच की घोषणाा कभी नहीं हुई। कभी इलाहाबाद के वकीलों के विरोध के नाम पर तो कभी किसी और मजबूरी का हवाला देकर इस मांग को टाला जाता रहा। पूर्व में राज्यसभा सदस्य डॉ. लक्ष्मीकांत वाजयेपी ने मेरठ में ई फाइलिंग की सुविधा दिलाई गई थी जो कुछ समय बाद बंद कर दी। उन्होंने कानून मंत्री के सामने महाराष्ट्र मंे हाईकोर्ट की चार बेंच स्थापित करने का मुददा उठाया लेकिन इसे क्या कहे कि मेरठ में ही 12000 वकील होने के साथ वेस्ट यूपी में लगभग 2 लाख वकील हो सकते हैं इसके बाद भी यह मांग वादे और घोषणाओं में उलझकर रह गई है। मैं किसी भी हिंसा का पक्षधर नहीं रहा हूं लेकिन महात्मा गांधी के अहिंसा के मार्ग पर चलने को गलत नहीं समझता हूं। मुझे लगता कि 22 जिलों के वकीलों को अब किसी से मिलने मांग पत्र देने या हाईकोर्ट बेंच की स्थापना करने की गुहार लगाने की बजाय अपने क्षेत्र के नेताओं को साथ लेकर जुझारू वकीलों की समिति बनाए और फिर हाईकोर्ट बेंच लेने का अडिग निर्णय कर शांतिपूर्ण आंदोलन जनसमर्थन से किया जाए तो मुझे लगता है कि जब यूपी का विभाजन कर उत्तराखंड बनाया जा सकता है तो इन 22 जिलों से आगरा या मेरठ में बेंच की स्थापना क्यों नहीं की जा सकती। इसलिए सबको एक होकर आंदोलन चलाना होगा। मैं समझता हूं कि वकीलों के प्रयास में नेता और जनता साथ देगी।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
सस्ता और सुलभ न्याय का सपने का साकार करने हेतु! पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 50 साल पुरानी हाईकोर्ट बेंच की बात अब ज्ञापन देने या मांग करने से पूरी होती नहीं लगती
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