एक जमाने में लोटा भर घी के लिए जिन परिवारों में यह उपलब्ध होता था उनमें सभी सदस्यों को प्रेरित किया जाता था और कहा भी जाता है कि देश में एक समय में दूध की नदिया बहती थी। बुजुर्ग बताते हैं कि गांव में किसी के घर जाने पर गिलास भर दूध, मट्ठा या चाय अतिथियों को परोसी जाती थी। उस समय ऐसा होता होगा वो तो पुरानी बात हो गई। लेकिन अब डॉक्टरों द्वारा सलाह दी जाती है कि कई बीमारियों से बचे रहने के लिए दूध का कम से कम उपयोग नागरिक करें। इस मामले में प्योर की बात दूर चाय में भी 25 प्रतिशत दूध और 75 प्रतिशत पानी की बात स्वस्थ रहने के लिए चिकित्सक बताते हैंं और भोजन का जो चार्ट दिए जाने की प्रथा शुरू हुई है उसमें भी दूध घी मक्खन के कम से कम उपयोग के बारे में बड़े स्तर पर चर्चाएं होती है। एक खबर पढ़कर यह जानकारी हुई कि यूपी में 500 ग्राम दूध भी हर व्यक्ति के हिस्से में रोज नहीं आता। बताते चलें कि दूध उत्पादन में 16.21 फीसदी की हिस्सेदारी से देश में पहले पायदान पर रहने के बाद भी यूपी में यह स्थिति है। जो राष्ट्रीय औसत से कम बताई जाती है। खबर के अनुसार दूध उपलब्धता के मामले में पंजाब सबसे ऊपर 2023-24 में प्रति व्यक्ति को दूध की उपलब्धता 1245 गा्रम रही जबकि राष्ट्रीय औसत 471 ग्राम है। लेकिन यूपी में एक व्यक्ति के हिस्से में 450 ग्राम दूध ही आ रहा है।
यह स्थिति क्यों है और इसके लिए कौन जिम्मेदार है। यह तो वृहद स्तर पर सोचने और निर्णय लेने का विषय है। मगर हर बिंदु पर बात की जाए तो यह कोई बहुत बड़ी सोचने या घबराने की बात नहीं है। पुराने समय में हो सकता है यह सोचनीय विषय रहा हो लेकिन अब तो शायद कोई घर ऐसा हो जहां एक दो व्यक्ति पूरे दूध में पत्ती मिलाकर चाय पीते हों। इसलिए अगर 450 ग्राम दूध भी हर व्यक्ति के हिस्से में आ रहा है तो कोई परेशानी की बात नहीं है। क्योंकि अब तो डॉक्टर इससे भी कम का उपयोग बताते हैं और कई तो यह भी कहते हैं कि वर्तमान स्थिति को देखते हुए पीने से बचना चाहिए। लेकिन असली मुददा यह है कि जो यह आंकड़ा है 450 ग्राम का इसमें मुझे लगता है कि ना भले ही प्रत्येक व्यक्ति का हो लेकिन देश की बड़ी आबादी लगभग 150 करोड़ की जनसंखया में काफी प्रतिशत को इतना भी दूध उपलबध नहीं होता है। अपनी तो बात छोड़ दें पांच दशक पूर्व भी मैंने जो देखा तब भी कितने ही लोग 250 ग्राम दूध लेकर तीन चार लोगों की चाय का जुगाड़ किया करते थे। उसमें कितना दूध हिस्से में आता होगा इसका अंदाजा पाठक आसानी से लगा सकते हैं। मेरा मानना है कि वर्तमान में 450 ग्राम दूध नहीं इसका आधा भी मिले तो अच्छा है लेकिन वो मिलावटविहीन हो तो यह कह सकते हैं कि आधा किलो दूध के समान होता है। कहने का मतलब है कि दूध उत्पादन में सक्रिय लोगों को सरकार के सहयोग से बढ़ोत्तरी का प्रयास करना चाहिए और डॉक्टर की राय मानते हुए इसका उपयोग करना हो तो और मिलावटखोरी रोकने वाले अधिकारी अपनी जिम्मेदारी निभाए तो हमें आवश्यकतानुसार शुद्ध दूध मिल सकता है। क्योंकि सरकारें आम आदमी को मिलावटी सामान से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए काफी प्रयास कर रही है। एक कहावत खूब सुनने को मिलती चली आ रही है कि दो कंजूस आपस में बात कर रहे थे कि हमारे यहां आधा किलो देशी घी आता है और हम खूब घी खाते हैं। दूसरे ने जवाब दिया कि हम तो 100 ग्राम घी मंगवाते हैं और पूरे माह छककर खाते हैं। पहला बोला ऐसा तो नहीं हो सकता। क्या करते हो तो दूसरा बोला कि शीशी में घी भरकर रोटी से चिपड़ते हैं और जब किसी चीज में घी डालना होता है तो ढक्कर लगी शीशी उलट देते हैं। वर्तमान में इस उपयोग इसलिए जरूरी है कि खुद को स्वस्थ रखने और डॉक्टरों की राय मानने के लिए अगर हम एक कप चाय में दो चम्मच दूध डालकर पीएं तो भी काम चल सकता है कयोंकि चायपत्ती डलने के बाद दूध और पानी एक ही रंग का हो जाता है। अब तो ज्यादातर लोग काली या नींबू वाली चाय पीना पसंद करते हैं इसलिए एक व्यक्ति के हिस्से में आधा किलो दूध ना होना कोई बड़ी बात नहीं है। हमारा प्रयास होना चाहिए के भले ही 200 ग्राम मिले लेकिन सबको उपलब्ध हो इसलिए दूध का उत्पादन बढ़ाने, कीमत कम करने और शुद्धता बनाने की बड़ी आवश्यकता है और उसी पर काम भी होना चाहिए नागरिकों के हित में।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
डॉक्टर तो वैसे भी दूध का उपयोग ? हर व्यक्ति को 450 ग्राम दूध की उपलब्धता सोचने का विषय नहीं है, शुद्धता बनी रहे कीमत कम हो आवश्यकता इस बात की है
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