Friday, November 22

कार बुकिंग में कर्मचारी ने किया फ्राड, विवाद से बचने हेतु उपभोक्ता सीधे संचालक को करें भुगतान

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मेरठ, 16 अप्रैल (विशेष संवाददाता)। एक गाड़ी के शोरूम के कर्मचारियों द्वारा साढ़े चार लाख रूपये लेने और कार बुक ना करने का मामला तो एक खबर के अनुसार अब सुलझ गया लेकिन इस बारे में समाचार को पढ़़कर जागरूक नागरिकों में एक चर्चा विशेष रूप से सुनाई दे रही है कि आखिर साढ़े चार लाख रूपये कैश में कैसे दे दी गई जबकि 50 हजार रूपये के लेनदेन की व्यवस्था कैश में बताई जाती है। जानकारी अनुसार मेरठ के परतापुर बाईपास स्थित कार शोरूम में शोरूम अधिकारियों ने मिलीभगत कर कार लेने आए ग्राहक से साढ़े चार लाख रुपये ले लिए और नकली रसीद मुहर लगाकर दे दिया। ग्राहक सोमवार को गाड़ी लेने पहुंचा तो उसे कह दिया कि आपकी कोई गाड़ी बुक नहीं हैं। ग्राहक ने शोरूम और थाने पर हंगामा कर दिया और तहरीर दी। काफी जद्दोजहद के बाद आरोपी शोरूम अधिकारियों ने फ्राड कबूल किया।

बताते चलें कि लोकेंद्र सिंह चौहान निवासी बाफर ने दी तहरीर में कहा कि 2 फरवरी को उसने कार की बुकिंग की थी। इसके लिए साढ़े चार लाख रुपये जमा किए थे। शोरूम से मुहर लगी रसीद दी और 10 अप्रैल को गाड़ी की डिलीवरी देने के लिए कहा। लोकेंद्र का कहना है कि 10 के बाद 15 अप्रैल का समय दिया गया लेकिन शोरूम के जीएम ने उनसे कह दिया कि आपकी कोई गाड़ी बुक नहीं है। रसीद दिखाई तो जीएम ने इसे फर्जी बता दिया। इस पर लोंकेंद्र पक्ष के काफी लोग शोरूम पहुंचे और हंगामा किया। सूचना पर पुलिस पहुंची और जीएम व सेल्स आफिसर को हिरासत में ले लिया। बाद में दोनों ने धोखाधड़ी कबूल की और अपने परिजनों को बुलाकर दो दिन में रकम वापसी का वायदा कर समझौता कर लिया। इंस्पेक्टर परतापुर ने कहा समझौता का अनुसरण नहीं होता है तो कार्रवाई होगी।

स्मरण रहे कि पिछले कुछ वर्षों से विभिन्न संस्थानों के कर्मचारियों द्वारा इस प्रकार के फ्राड किए जाने की खबरें खूब मिलने लगी है। इसलिए कई पाठकों का कहना है कि हमें वाहन लेना हो या कोई और सामान या तो बैंक अकांउट से भुगतान करना चाहिए या पैसा व्यापारिक प्रतिष्ठान के संचालक के हाथ में देने चाहिए और कर्मचारी को दे तो इसकी जानकारी मालिक को दें जिससे इस तरह के प्रकरण से उपभोक्ता और मालिक दोनों बदनामी व विवाद से बच सके। साथ ही कर्मचारियों की नियत में आई खोट से जो बदनामी प्रतिष्ठान की होती है वो भी उससे बच सके। स्मरण रहे कि कुछ साल पहले दिल्ली रोड स्थित एक कार शोरूम में ऐसा ही घोटाला हुआ था। और शोरूम मालिक को उसका खामियाजा भुगतना पड़ा था। क्योंकि कर्मचारी सारे पैसे उड़ा चुका था और उसकी हैसितय इतनी नहीं थी कि वो भुगतान कर सके। इसलिए इज्जत बचाने को शोरूम मालिक को नुकसान उठाना पड़ा था। कई उपभोक्ताओं की यह बात सही लगी कि व्यापारिक प्रतिष्ठान के अंदर या बाहर स्लोगन लगाने चाहिए कि किसी कर्मचारी को मोटी रकम का भुगतान ना करें।

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