
आखिर आवास विकास के अधिकारी सरकार की जनहित में जारी योजनाओं को पलीता लगाने और उसे विवादों में फंसाने के लिए कहे अनकहे प्रयासरत क्यों रहते हैं। पाठक अवगत हैं कि वर्तमान में रिहायशी भूमि पर बने कॉमर्शियल कॉम्पलैक्सों को तोड़ने के लिए अदालत के आदेश पर अभियान चल रहा है और लोग चर्चा भी करते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि शास्त्रीनगर में सैंट्रल मार्केट में जो अवैध शोरूम बने उसके लिए तत्कालीन अधिकारी जिम्मेदार हैं लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई ना होने से मौखिक सूत्रों के अनुसार छोटे अधिकारी निरंकुंश होकर माल कमाने के लिए सरकार की निर्माण नीति का खुला उल्लंघन करा रहे हैं अनेकों पुरानी धाराओं का हवाला देकर और समन प्रतिबंधित होने के बाद भी अवैध निर्माणकर्ता को बचाने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगा रहे हैं। ऐसे अनेकों उदाहरण शास्त्रीनगर समेत अनेक योजनाओं में देखने को मिल सकते हैं।
इसके प्रमाण स्वरूप गढ़ रोड स्थित तक्षशिला कॉलोनी के केएल इंटर नेशनल स्कूल को जाने वाले मार्ग पर रिहायशी भू उपयोग पर जागृति विहार सेक्टर नौ के मुख्य मार्ग पर बने मेरठ चौरिटेबिल ब्लड सेंटर व इसके नीचे बिलिंकिट कंपनी की दुकान किराए पर दे रखी है जानकारों का कहना है कि यह निर्माण तो अवैध है ही इसका भूउपयोग भी गलत किया जा रहा है। इतना ही नहीं सूत्रों की यह बात भी सही प्रतीत है कि सड़क से लगाकर जो यह जीना बनाया गया है और सड़क पर इतना बड़ा जनरेटर रखा गया और पहली मंजिल पर जाने के लिए जीना भी सड़क से ही ले लिया गया है यह सब आवास विकास के इस क्षेत्र के इंजीनियरों की मेहरबानी से रखा गया है। कुछ लोगों का यह कहना भी सही है कि हडडी के चक्कर में कटड़ा कटवा दिया वाली कहावत आवास विकास के संबंधित अधिकारियों पर सही उतरती है। क्योंकि इसे रोकने के लिए जिम्मेदार तो सांठगांठ कर चुप बैठे हैं और उनकी कार्यप्रणाली पर अंकुश लगाने वाले चीफ इंजीनियर और अपर आयुक्त आवास एसी कमरो से निकलकर क्षेत्र का भ्रमण करने और सरकारी नियमों का पालन हो रहा है या नहीं अथवा किसी ने सरकारी जमीन घेर रखी है या नहीं यह देखना गंवारा नहीं करते। लोग कहते हें कि सरकार आवास विकास जैसे विभागों को खत्म कर इसके अधिकारियों को सेवानिवृति दे दे और जब किसी नीति का पालन ही नहीं होना है तो इनकी आवश्यकता भी कहां है।