Wednesday, March 12

वक्ता ही तुम हमें नहीं तो हम भी तुम्हें नहीं समझते

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पहली बार एक सार्वजनिक समारोह में नया अनुभव हुआ और लगा कि व्यक्ति छोटा हो या बड़ा वो किसी से अपने को कम नहीं समझता और अपने सम्मान प्राप्त करने के अधिकार पर पूरी तौर पर अडिग नजर आता है। बताते चलें कि बीते दिनों एक समारोह में बहुत लोग थे। मुख्य अतिथि से लेकर विद्वान भी शामिल रहे। वक्ताओं ने आयोजकों की तारीफ में कसीदे पढ़े। लेकिन मसला तब खड़ा हुआ जब एक सज्जन ने अपने संबोधन में उपस्थितों के नाम नहीं लिए और ना चर्चा की। जबकि कई लोगों की प्रशंसा करते हुए उनके द्वारा वो पहलु उजागर किए जिनसे उपस्थित अनभिज्ञ थे। जब वह अपनी बात समाप्त करके मंच से नीचे आए तो एक प्रमुख अतिथि के चेहरे पर नागवारी के भाव थे तो एक सज्जन ने पूछा कि तुमने अपने संबोधन में कई लोगों के नाम लिए मगर कुछ मुख्य लोगों के बारे में कोई चर्चा नहीं की।
तो उन्होंने कहा कि इन्होंने हमें कुछ नहीं समझा तो हमने इन्हें नजरअंदाज कर दिया। यहां पर यह मुख्य अतिथि विशिष्ट अतिथि हो सकते हैं लेकिन हमारे क्षेत्र में हमारा भी महत्वपूर्ण स्थान हैं। अपने जीवन में पहली बार ऐसी घटना का सामना करना पड़ा लेकिन अच्छा लगा कि अब समाज में मेहनत करने वाले लोग यह समझने लगे हैं कि हम किसी को सम्मान दे रहे हैं तो वह भी हमें उतना ही दे जितना हम दे रहे हैं। यह प्रकरण उन महानुभावओं को भी सीखने का मौका देता है जो जनप्रतिनिधि हो या अधिकारी हर जगह यह सोचते हैं कि लोग उनका महिमा मंडन करें उन्हें सम्मान दें और जब वह मंच पर माइक संभाले तो अपना महिमामंडन करने के साथ चलते बनें। ऐसा अब ज्यादा चल नहीं पाएगा। अगर अपने आप को प्रमुख समझने की कोशिश करता है तो उसे अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि आप किसी की तारीफ करेंगे तो बदले में आपकी भी तारीफ होगी वरना आपको जानने के बाद भी अब नजरअंदाज करने वालों की कमी नहीं है। एक ग्रामीण कहावत तुम मुझे पंत कहो मैं तुम्हे निराला के समान एक दूसरे की उपलब्धि का महिमामंडन तो अब करना ही पड़ेगा और जो प्रमुख लोग है उनके नाम या अन्य विवरण का संबोधन भी आपको करना पड़ेगा। वरना तुम हमें नहीं हम तुम्हें नहीं पहचानते के समान परिस्थिति का सामना करने तथा नजरअंदाज किए का जाने का जो भय है उसे झेलने के लिए सबको तैयार रहना चाहिए।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ

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