नई दिल्ली 25 नवंबर। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों ने शुक्रवार को कहा कि चार दुर्लभ बीमारियों की दवाएं काफी सस्ती दरों पर उपलब्ध हो गई हैं, क्योंकि भारतीय दवा कंपनियां अब महंगे आयातित ‘फॉर्मूलेशन’ पर निर्भरता कम करके उनका उत्पादन कर रही हैं।.
कीमतों में कटौती तब हुई है, जब मंत्रालय ने ‘सिकल सेल एनीमिया’ के साथ-साथ 13 दुर्लभ बीमारियों से संबंधित कार्रवाई को प्राथमिकता दी है। इनमें से चार बीमारियों- टायरोसिनेमिया टाइप 1, गौचर रोग, विल्सन रोग और ड्रेवेट-लेनोक्स गैस्टॉट सिंड्रोम के साथ-साथ सिकल सेल एनीमिया के लिए दवाओं को मंजूरी दे दी गई है और इन्हें स्वदेशी रूप से निर्मित किया जा रहा है।.
उदाहरण के लिए टायरोसिनेमिया टाइप वन बीमारी के इलाज में काम आने वाली दवा Nitisinone कैप्सूल की सालाना कीमत 2.2 करोड़ रुपये है। इसे विदेशों से आयात किया जाता है। लेकिन अब देश में बनी दवा की कीमत 2.5 लाख रुपये होगी। यह एक दुर्लभ बीमारी है। एक लाख की आबादी में इसका एक मरीज पाया जाता है।
इसी तरह Eliglustat कैप्सूल की सालाना खुराक की कीमत 1.8 से 3.6 करोड़ रुपये है। लेकिन देश में बनी इस दवा की कीमत 3 से 6 लाख रुपये हो जाएगी। यह दवा Gaucher’s बीमारी के इलाज में काम आती है।
वहीं अधिकारियों की जानकारी के मुताबिक Wilson’s नाम की बीमारी के इलाज में काम आने वाली Trientine कैप्सूल के आयात पर सालाना 2.2 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। लेकिन देश में बनी इसकी दवा पर सालाना मात्र 2.2 लाख रुपये खर्च होंगे।