नई दिल्ली 29 सितंबर । धार्मिक ग्रंथों पर कॉपीराइट का दावा करने के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। अदालत ने माना है कि भगवद गीता या भागवतम जैसे धार्मिक ग्रंथों पर कोई भी कॉपीराइट का दावा नहीं कर सकता है।
साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि मूल धार्मिक ग्रंथ के आधार पर किसी व्यक्ति द्वारा की गई व्याख्या, विश्लेषण, समीक्षा, अनुकूलन या नाटकीय कार्य पर उसका कॉपीराइट होगा। ऐसे में प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता ट्रस्ट के काम का बड़े पैमाने पर चोरी होने के तथ्यों को देखते हुए इस पर रोक लगाई जाती है। इस तरह की चोरी की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
अदालत ने उक्त टिप्पणी व आदेश भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट द्वारा कॉपीराइट उल्लंघन से जुड़े मुकदमे पर दिया। मुकदमे का निपटारा करते हुए न्यायमूर्ति प्रतिबा एम सिंह की पीठ ने कहा कि चार वेबसाइटों, पांच मोबाइल एप्लिकेशन और चार इंस्टाग्राम हैंडल पर उपलब्ध कराई गई पुस्तकें भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट के कार्य की प्रतिलिपि है और इसे स्वामी प्रभुपाद ने लिखी है।
वेबसाइट पर दी गई सामाग्री में श्रील प्रभुपाद के श्लोक, उनके अनुवाद और तात्पर्य, सारांश, परिचय, प्रस्तावना, कवर आदि सभी को पुन: प्रस्तुत किया गया है। अदालत ने इसके साथ ही प्रतिवादियों के विरुद्ध एक पक्षीय अंतरिम निषेधाज्ञा आदेश पारित करते हुए उन्हें वादी के कॉपीराइट कार्य का उल्लंघन करने पर रोक लगा दी।
साथ ही गूगल और मेटा जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म को इस तरह के एप और पेज को हटाने का आदेश दिया। याचिका में श्रील प्रभुपाद की लिखी सामग्री को चार वेबसाइटों, पांच मोबाइल एप्लिकेशन और चार इंस्टाग्राम हैंडल से हटाने का निर्देश देने की मांग गई थी।