Saturday, July 27

पीएम साहब ! सरकार तो भ्रष्टाचार और बिचौलियों को समाप्त करने का प्रयास कर रही है लेकिन नागरिकों के चेहरे पर मुस्कान क्यों नहीं दिखाई दे रही, यह भी जनप्रतिनिधियों को सोचना होगा

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अब देश गुलामी की मानसिकता से मुक्त होगा। पीएम मोदी का संकल्प है कि गांव की दो करोड़ महिलाओं को लखपति बनाया जाए। यूपी के अधिकारी कह रहे हैं कि किसानों की आय बढ़ाने के वाहक बने। तो सहारनपुर के महापौर अजय कुमार का कहना है कि प्रधानमंत्री ने करोड़ों लोगों का जीवन रोशन किया है। अगर ध्यान से देखें तो इसमें कोई दो राय भी नजर नहीं आती है क्योंकि पीएम बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने देश में स्वच्छता अभियान बिचौलियों की समाप्ति, भ्रष्टाचार रोकने आदि के लिए अनेक कदम उठाए। लेकिन इतना सबकुछ होने के बाद भी आम आदमी संतुष्ट क्यों नहीं है और उसके चेहरे पर खुशी होने की बजाय रोष आक्रामकता क्यों दिखाई दे रही है।
हो सकता है कि इसके और भी कई कारण हो लेकिन मुझे लगता है कि सरकारी कार्यों में बिचौलियों की समाप्ति और भ्रष्टाचार रोकने के लिए पीएम सहित सीएम यूपी और अन्य जनप्रतिनिधियों ने भी भरपूर प्रयास किए हैं जिनके तहत आदेश और निर्देश भी दिए गए। वीडियो कांफ्रेेसिंग के माध्यम से भी अफसरों को चेताया गया। लखनऊ और दिल्ली के सत्ता के गलियारों में कितने बिचौलिये खत्म हुए और भ्रष्टाचार समाप्त हुआ यह तो बहस का मुददा हो सकता है कि सत्ता कुछ और विपक्ष कुछ और कहता है लेकिन शहरों और जनपदों में स्थित कार्यालयों में बिचौलियों की मौजूदगी जहां तक दिखाई दे रहा है उससे लगता है कि यह समाप्त होने की बजाय और बढ़ गई है। और अब भ्रष्टाचार का तरीका तो बदला लेकिन नागरिकों के कहे मौखिक अनुसार अब संबंधित व्यक्ति अपना सुविधा शुल्क तो वसूलता ही है उसे भ्रष्टाचार कह लो या कुछ और लेकिन अब आने वालों की पारदर्शिता कायम करने के नाम पर उत्पीड़न जरूर किया जाने लगा है। इसलिए नागरिकों में हताशा और तनाव बना रहता है। पीएम साहब दिल्ली से प्रकाशित दैनिक पंजाब केसरी में 18 दिसंबर के अंक में प्रकाशित महान संत परम आदरणीय मुनि मणिभद्र जी का चित्र लगाकर क्रमश से छपे एक लेख में भ्रष्टाचार के संदर्भ में सवाल उठाए गए हैं। उक्त लेख इस प्रकार है।
हमारे देश को शासित करने वाले अधिकांश राजनेता और अफसर भ्रष्टाचार के दलदल में आकण्ठ डूबे हुए हैं। जहां जिनका दांव चलता है वह वहा अपना दांव चला देता है। अधिकार सम्पन्न अफसर और राजनेता अपने अधिकरों का दुरुपयोग करके दोनों हाथों से अपनी तिजोरियों को भरते हैं। ऐसा करके वे अनेकों के हितों को हजम कर जाते हैं। जिस धन से लाखों लोगों को राहत मिलने वाली होती है, उस धन को कुछ ही अधिकार-सम्पन्न लोग या तो अपने सुख-साधनों पर खर्च कर लेते हैं या फिर अपनी तिजोरियां भर लेते हैं। शासक वर्ग मिनरल वाटर पीता है और जनसाधारण को वाटर सप्लाई का स्वच्छ जल भी उपलब्ध नहीं होता है। भ्रष्टाचार का दूसरा रूप है मिलावट खोरी और कालाबाजारी। सामान्य वर्ग का उपभोक्ता ही इस सच को जानता है कि पेट भरने के लिए जो खाद्य पदार्थ उस तक पहुंचते हैं वे कितने निम्न स्तरीय हैं। बाजार में ऐसे भोगोपभोग के साधन तलाशने कठिन हैं जो गुणवत्ता और प्रमाण में पूरे हों। मुनाफाखोर धनाढ्य वर्ग कालाबाजारी और मिलावटखोरी के जरिए उन लोगों को दोनों हाथों से लूट रहा है जो अपना और अपने परिवार का पेट चलाने के लिए कठिन श्रम करते हैं। श्रमिक और श्रम का अपमान हो रहा है। चालबाज शिखर पर पहुंच रहे हैं। असंतुलन के दुश्चक्र के पाटों के बीच पिस रहा है भारत। दुर्भाग्य यह है कि पीसने वाले और पिसने वाले दोनों भारतीय हैं। मैं समझता हूं हमारा देश आज जिस मुकाम पर पहुंच चुका है इस मुकाम पर पहुंचने में हमारे राजनेताओं और अफसरशाहों का बहुत बड़ा हाथ ज् है। मात्र दस हजार रुपये वेतन पाने वाले नौकरशाह करोड़पति कैसे बन जाता है? पांच वर्ष तक विधायक रहने वाला राजनेता कहां से करोड़ों रुपये एकत्रित कर लेता हैं? क्या ये प्रश्न गरीबी की चक्की में पिस रहे सामान्यजन के मस्तिष्क में नहीं कौंधते है ? जिस दिन गरीब का मस्तिष्क लावा बन गया उस दिन इस देश पर कहर बरपेगा और जिस देश में आज हमारी पूरी व्यवस्था अग्रसर है उसके वर्तमानिक परिणाम इस बात के प्रमाण हैं कि वह दिन दूर नहीं है जब विनाश की आंधियां इस देश को लील जाएंगे। ऐसे में इस देश के प्रबुद्ध वर्ग का यह नैतिक दायित्व बनता है कि वह आगे आए और वार्तमानिक व्यवस्था पर चिंतन करे। और न केवल चिंतन करे अपितु वर्तमानिक कुव्यवस्था को सुव्यवस्थित बनाने में अपने बुद्धि बल का देशहित में अर्घ्य अर्पित करे। आज एक ओर पांच सितारा जीवनशैली है तथा दूसरी ओर लोगों के पास सिर छिपाने को छत और तन ढांपने को वस्त्र नहीं हैं। एक ओर मेवे मिष्ठान्न नालियों में बहा दिये जाते हैं और दूसरी ओर लोगों को भूखों सोना पड़ रहा है। यह चेतावनी है इस कुव्यवस्था के लिए कि यह असंतुलन लम्बी दूरी तय नहीं कर सकता है।
जो राय इसमें व्यक्त की गई उसको लेकर जितने लोगों से भी चर्चा हुई। सभी इससे सहमत नजर आए। लेकिन मेरा मानना है कि सरकार उपर दिए गए विभिन्न बिंदुओं को रोकने के लिए प्रयासरत है और ईमानदार कोशिश भी कर रही है। उसके बावजूद बिचौलियों की दखलअंदाजी और भ्रष्टाचार व मिलावटखोरी क्यों खत्म नहीं हो रहा है। इस पर उसे विचार करना होगा। मेरी निगाह में अगर आम आदमी को खुशहाली का अहसास कराना है और उसका चेहरा तनावमुक्त हो और वो अपने आपकी अवहेलना महसूस ना करे इसके लिए तहसीलों शिक्षा विभाग आबकारी चिटफंड सोसायटी कार्यालय बिजली विभाग विकास प्राधिकरण नगर निगम आदि ऐसे कार्यालय है जिन पर नजर दौड़ाई जाए तो बिचौलियों के माध्यम से भ्रष्टाचार का कितना नंगा नाच कुछ सरकारी नौकर खेल रहे हैं। इसका खुलासा आसानी से हो सकता है। मैं यह तो नहीं कहता है कि इसमें जनप्रतिनिधि भी शामिल है लेकिन मीडिया में खबरें चलने के बाद भी जिम्मेदार जनप्रतिनिधि द्वारा भ्रष्टाचार और लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई किए जाने की मांग ना करना और खुद भी उनसे जवाब तलब ना किया जाना भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकता है।

 

 

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