यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा देश भर में चलाये गये स्वच्छता और शौचालय की उपलब्धता हेतु अभियान को कई वर्ष हो जाने और इस पर बड़ा खर्च होने के बाद भी जहां तक नजर आता है सरकारी आंकड़ों में कुछ भी दर्शाया गया हो अभी तक हमें पूरी मात्रा में आवश्यकता अनुसार माता बहनों के साथ ही आम नागरिकों के लिए भी शहर हो या देहात आदिवासी इलाके हो या प्रदेश और देश की राजधानी सब जगह आसानी से आवश्यकता पड़ने पर निवृत्त होने हेतु इनकी पूरी व्यवस्था नहीं है।
कांग्रेस नेता और सामाजिक कार्यकर्ता जया ठाकुर की जनहित याचिका पर माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्पष्ट निर्देश दिये गये कि स्कूलों में छात्राओं के लिए प्राप्त मात्रा में शौचालयों की व्यवस्था करे सरकार। इससे संबंध एक खबर के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने बीते सोमवार 6 नवंबर को केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह देश के सभी सरकारी सहायता प्राप्त और आवासीय स्कूलों में छात्राओं के लिए उनकी संख्या के आधार पर शौचालयों के निर्माण को लेकर राष्ट्रीय आदर्श नियमावली बनाए। प्रधान न्यायाधीश ड़ीवाई चंद्रचूड़़ ने इसके साथ ही केंद्र सरकार से उस नीति के बारे में सवाल किया जिसे उसने पूरे देश में छात्राओं को सेनेटरी नैपकिन वितरित करने के लिए बनाया है। इस पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं। न्यायालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश दिया कि वे चार सप्ताह के भीतर मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन की अपनी अपनी रणनीति और योजना राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मिशन संचालन समूह को दें जिनका क्रियान्वयन केंद्र सरकार या उनके अपने संसाधन से किया जा रहा है। बताते चले कि इस विषय पर अदालत कांग्रेस नेता और सामाजिक कार्यकर्ता जया ठाकुर की याचिका पर सुनवाई कर रही है। ठाकुर ने अपनी याचिका में कहा है कि गरीब पृष्ठभूमि की 11 से 1८ साल की लड़़कियां शिक्षा प्राप्त करने मुश्किल का सामना कर रही हैं जबकि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत यह उनका मूल अधिकार है। उन्होंने कहा कि मासिक धर्म को लेकर जागरूकता और जानकारी का अभाव तथा आवश्यक संसाधनों के न होने से इन लड़़कियों की पढ़ाई बाधित होती है। पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार को सेनेटरी नैपकिन वितरण में एकरूपता लानी चाहिए। सुनवाई के दौरान केंद्र ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि स्कूल जाने वाली लड़़कियों को मुफ्त में सेनेटरी नैपकिन बांटने के लिए राष्ट्रीय नीति का मसौदा तैयार किया गया है और उसे हितधारकों को उनकी राय जानने के लिए भेजा गया है। न्यायालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश दिया कि वे चार सप्ताह के भीतर मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन की अपनी अपनी रणनीति और योजना राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मिशन संचालन समूह को दें जिनका क्रियान्वयन केंद्र सरकार या उनके अपने संसाधन से किया जा रहा है। शीर्ष अदालत ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से यह भी कहा कि वे राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मिशन संचालन समूह को उनके क्षेत्र में चल रहे आवासीय स्कूलों और गैर आवासीय स्कूलों में छात्राओं के उचित अनुपात में शौचालयों की भी जानकारी दें। पीठ ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से यह भी बताने को कहा कि स्कूलों में सस्ते सेनेटरी पैड़ और वेंडिंग मशीन मुहैया कराने और इस्तेमाल किए गए पैड़ के उचित निस्तारण के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।
माननीय न्यायधीशो का ये निर्णय सराहनीय तो है ही देश की पूरी आबादी के हित का है चाहे वो महिला हो या पुरूष। क्योंकि इससे साफ सफाई और स्वच्छता को बढ़ावा मिलेगा। इस संदर्भ में मेरा कहना है कि स्कूलों के साथ साथ गांव हो या देहात कस्बे हो या मुख्यालय जिला अथवा प्रदेश मुख्यालय सभी जगह कम से कम 1-1 किलोमीटर पर बाजार मौहल्लों मुख्य सड़कों और नेशनल हाईवें सहित सभी जगह महिला और पुरूष दोनों के लिए सुलभ शौचालय प्राप्त मात्रा में बनवाये जाए और ये हमेशा खुले रहे तथा इनकी स्वच्छता बनाये रखने की जिम्मेदारी आसपास के क्षेत्र के लोगों की सेवा समितियां बनाकर उन्हें दी जाए जो इस बात का भी ध्यान रखे कि आने वाले मजबूर नागरिकों को चाहे वो महिला हो या पुरूष उनसे वसूली कोई न कर पाए और इनके ताले जरूरतमंदों के लिए हमेशा खुले रहे। मुझे लगता है कि अगर ऐसा होता है तो हमारे देश की आधी आबादी मातृ शक्ति को तो कई परेशानियों से छुटकारा मिलेगा ही पुरूष भी जो खुले में जगह जगह शौच करते नजर आते है वो भी ऐसा नहीं करेंगे। साथ ही देश के स्कूलों में गोष्ठियां आयोजित कर जगह जगह थूंकने वालों को भी ये समझाने की व्यवस्था की जाए कि वो नाली या किसी कोने में ऐसा करे जगह जगह गंदगी न फेलाये। अगर ऐसा होता है तो मेरा स्पष्ट मानना है कि माननीय प्रधानमंत्री जी का देश में स्वच्छता और सुलभ शौचालयों का सपना हर हाल में होगा साकार। और सेवा भाव से काम करने वाले नागरिकों को जिम्मेदारी दिये जाने से सरकार पर कोई अतिरिक्त आर्थिक भार भी नहीं पड़ेगा।
प्रस्तुति लेखः अंकित बिश्नोई संपादक पत्रकार एवं पूर्व सदस्य मजीठिया बोर्ड यूपी राष्ट्रीय महासचिव सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए