Friday, November 22

भाजपा की हार के लिए क्षेत्रीय संगठन भी जिम्मेदार

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मेरठ 07 जून (प्र)। शहर में भाजपा प्रत्याशी अरुण गोविल की जीत भाजपा संगठन के लिए थोड़ा सुकून देने वाली है, लेकिन पश्चिमी यूपी के जो रिजल्ट आए हैं, उसमें भाजपा की क्षेत्रीय कमेटी भी कटघरे में आ गई है। भाजपा संगठन की बात की जाए तो ये कहा जाता है कि ग्राउंड स्तर पर भाजपा संगठन काम करता है। पश्चिमी यूपी से भाजपा का एक तरह से सफाया हो गया, इतना बुरा हाल कभी नहीं हुआ है। फिर रालोद का भी भाजपा को साथ था। भाजपा की नाकामियां कहां हुई? इस पर भाजपा के पश्चिमी यूपी संगठन ने फोकस क्यों नहीं किया? इसमें इतनी बड़ी लापरवाही कैसे होने दी? इसके लिए भाजपा पश्चिमी यूपी संगठन को भी सवालों के घेरे में लाया जा रहा है।

भाजपा का बूथ सबसे मजबूत, ये दावा संगठन के पदाधिकारी करते रहे हैं, लेकिन मजबूत बूथ था तो फिर भाजपा की पश्चिमी यूपी में इतनी बुरी दुर्गति क्यों हुई? जो चुनाव परिणाम आये है, उससे तो यही साबित हो रहा है कि जिला स्तर का संगठन और पश्चिमी क्षेत्र का संगठन चुनाव के लिए ठीक से काम नहीं कर पाया। यदि संगठन सक्रियता निभाता तो वोट प्रतिशत भी बढ़ सकता था। यही नहीं, जो खामियां दिख रही थी, उन्हें दूर किया जा सकता था। कैराना में प्रदीप चौधरी भाजपा के प्रत्याशी थे। उन्हें दूसरी बार चुनाव मैदान में उतारा गया था। पार्टी हाईकमान और संगठन भी जानता था कि उनका विरोध हो रहा हैं, फिर भी चुनाव मैदान में उतार दिया गया, जिसका खामियाजा चुनाव में भुगताना पड़ा।

हैरत की बात है कि भाजपा शीर्ष नेतृत्व भी यह नहीं समझ सका कि कैराना में भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ हवा चल रही है। संगठन स्तर पर भी इसकी समीक्षा नहीं की गई। यही वजह है कि कैराना में मुंह की खानी पड़ी। साथ ही मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर भी गुटबाजी और तमाम खेल भाजपा प्रत्याशी और नेताओं के बीच चलता रहा। इसे भी संगठन अनदेखा कर गया। महत्वपूर्ण बात यह है कि मुजफ्फरनगर की सीट भी भाजपा के लिए कभी अभेद्य थी, लेकिन वहां क्या चूक हुई? इसमें दो राय नहीं है कि लड़ाई भाजपा प्रत्याशी ड. संजीव बालियान को अपनी ही पार्टी के नेताओं से जूझना पड़ रहा था। संगठन भी ये जानता हैं, फिर भी दोनों ग्रुप को एक टेबल पर बैठाकर सुलह नहीं कर सका।

इस लड़ाई को शांत करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी आए, मगर इसका भी कोई फायदा नहीं मिल सका। दरअसल, मुजफ्फरनगर लोकसभा के लिए सरधना विधानसभा वैसी ही है जैसी मेरठ के लिए कैंट विधानसभा। क्योंकि सरधना विधानसभा से ही हमेशा भाजपा ने बड़ी लीड ली है। 2019 का लोकसभा चुनाव चौधरी अजीत सिंह चार विधानसभा से जीतकर जब सरधना पहुंचे तो यहां हार का सामना करना पड़ा था। सहारनपुर में भी भाजपा के राघव लखनपाल प्रत्याशी थे, वो भी कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद से हार गए। भाजपा के संगठन की रणनीति में यहां क्या चूक रही? इसके लिए भाजपा का कहीं न कहीं संगठन भी जिम्मेदार हैं। पार्टी हाईकमान ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी को भी दिल्ली तलब कर रखा हैं। जो हुआ, उससे पार्टी हाईकमान खुश कतई नहीं हैं।

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