Friday, November 22

वरिष्ठ पत्रकार सुनील डांग पर कुत्तों का आतंकित हमला, खतरनाक विदेशी कुत्तों को रखने पर कोर्ट ने प्रतिबंध लगाने के केन्द्र को दिये निर्देश

Pinterest LinkedIn Tumblr +

कारण कुछ भी हो लेकिन वर्तमान समय में मीडिया में जो खबरें पढ़ने सुनने और देखने को मिल रही है उससे लगता है कि देश में कुछ स्थान शहर है या जंगल उसका ही अंदाज लगाना मुश्किल हो रहा है। क्योंकि रोज ही कहीं न कहीं कोई न कोई इंसान बच्चा बूढ़ा जवान महिला पुरूष इन जानवरों का शिकार हो रहा है। और जिम्मेदार विभागों के हुकुमरान आंखे बंद और कानों में तेल डाले बैठे है। आश्चर्य इस बात का है कि जानवरों बंदर कुत्ते शेर आदि के आतंक की सुर्खियां कहीं न कहीं पढ़ने को मिल ही जाती है कहीं ये बच्चों को फाड़ रहे तो कहीं ये महिला पुरूषों पर हमला कर रहे है। लेकिन इनके पालने वालों के विरूद्ध समय से कार्यवाई न हो पाने के चलते हर व्यक्ति भयभीत है और उसे डर लगा रहता है कि वो शाम को सही सलामत अपने घर पहुंच पाएंगा या नहीं। क्योंकि इनके काटने या हमला करने से पीड़ित उसके अपने अगर लौटकर इन जानवरों पर हमला करते है तो तथाकथित कुछ लोग सामने आकर खड़े हो जाते है और मूक जानवरों का उत्पीड़न कहकर उसका मानसिक आर्थिक व समाजिक उत्पीड़न करते है। क्योंकि न्यायालय के स्पष्ट आदेश होने के बावजूद कि इनको पालने वाले इनके लाईसेंस प्राप्त करे इन्हें घूमाने ले जाए तो सफाई के लिए थैली साथ ले जाए। और कुछ विदेशी नस्ल के कुत्तों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए के बाद भी जिम्मेदारों द्वारा दोषियों के विरूद्ध कोई कार्यवाई न करने के चलते इनको पालने वालों की निरंकुशता और इनका आतंक बढ़ता ही जा रहा है।
अब तो कितने ही लोग यह कहने लगे है कि हम शहरों में रह रहे है या जंगल में अगर महानगरों में रह रहे है तो सरकार जानवरों के आतंक से बचाने के लिए इंतजाम करे। क्योंकि कहीं सांप तो कहीं तेदुआ तो कहीं बंदर तो कहीं कुत्ते सियार गांव और देहांतों में भी अपना असर अब दिखाने लगे है।
एक अनाधिकृत खबर के अनुसार राष्ट्रीय अपराध ब्यूरों की रिपोर्ट काइम इन इंड़िया 2022 से पता चलता है कि 2021 में 1264 लोग घायल हुए या मारे गये थे 2022 में इसमें 19 फीसदी की वृद्धि हुई। कुल मिलाकर कहने का मतलब यह है कि जानवरों के हमले में मरने वाले 19 फीसदी बढ़े। संसद में उठे एक सवाल के लिखित जबाव में केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री अश्वनी कुमार चौबे ने कहा कि सबसे ज्यादा 133 जाने झारखंड में हाथियों के हमले में गई और इसके बाद 112 मौते उड़ीसा में हुई। एक सरकारी आंकड़े के अनुसार तेदुओं की आधी आबादी संरक्षित क्षेत्र से बाहर है। तो बताते है कि कीटों के काटने की संख्या में 16.7 फीसदी वृद्धि हुई है। जो ग्रामीण कहावत ज्यों ज्यों दवा की मर्ज बढ़ता ही गया के समान है। क्योंकि माननीय न्यायालय तथा केन्द्र प्रदेशों की सरकारें जानवरों के हमले रोकने के लिए खबरों के अनुसार काफी प्रयास कर रही है। मगर संबंधित विभागों के अफसरों की उदासीनता और नागरिकों के अनुसार हर काम में बढ़ते भ्रष्टाचार के परिणाम स्वरूप हिंसक कुत्ते बंदरों व अन्य जानवरों के खिलाफ उस स्तर पर कार्यवाही नहीं हो पा रही है जिस स्तर पर होनी चाहिए।
एक खबर के अनुसार खतरनाक कुत्तों को रखने पर प्रतिबंध लगाये केन्द्रः हाईकोर्ट के अनुसार खतरनाक और जानलेवा नस्ल के कुत्तों पर प्रतिबंध लगाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को तीन महीने का अल्टीमेटम दिया है. बता दें कि दिल्ली उच्च न्यायलय में एक याचिका दायर हुई थी, जिसमें अमेरिकन बुलडॉग, रॉटविलर, पिटबुल, और टेरियर्स जैसे घातक कुत्तों को पालने पर लाइसेंस जारी करने पर बैन लगाने की मांग की गई थी. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को तीन महीने का समय दिया है.
विदेशी की जगह देशी कुत्ते पाले
जानलेवा कुत्तों को लेकर अदालत में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अमेरिकन बुलडॉग, रॉटविलर, पिटबुल, और टेरियर्स, बैंडॉग, वुल्फ डॉग जैसी जानलेवा नस्ल के कुत्तों को पालने के लाइसेंस पर प्रतिबंध लगाने की ज़रूरत है. बता दें कि इस याचिका में ज़िक्र किया गया है कि इन कुत्तों ने अपने मालिक समेत तमाम लोगों पर जानलेवा हमला किया है, जिसमें कई लोगों की जान भी जा चुकी है. कोर्ट ने आगे कहा कि भारतीय नस्ल के कुत्तों का ध्यान रखने की जरूरत है. यहां के कुत्ते विदेशी नस्ल के कुतों से अधिक ताकतवर और सक्षम है. भारतीय नस्ल के कुत्ते जल्द बीमार नहीं पड़ते. अपनी याचिका में कानूनी वकील और बैरिस्टर लॉ फर्म ने आरोप लगाया था कि विदेशी नस्ल के कुत्ते जानलेवा और खतरनाक है यह भारत समेत अन्य 12 देशों में बैन हैं. यह कुत्ते अपने मालिक को भी नहीं छोड़ते हैं. बावजूद इसके दिल्ली नगर निगम अभी भी इन कुत्तों को पंजीकरण कर रहा है.
एक व्यक्ति का इस संदर्भ में यह कथन बड़ा सही प्रतीत होता है कि हमारे राजनीतिक दल सरकारें भले ही समाजवाद को पूरी तौर पर विभिन्न कारणों से लागू न कर पा रही हो मगर जानवर इस मामले में अग्रणी है क्योंकि इनके द्वारा हमला करते और काटते समय गरीब अमीर बच्चे बड़े महिला पुरूष नहीं देखा जाता और न ही इनके आतंकी क्षेत्र कोई विशेष है ये गांव के गली मौहल्लों और शहरों की भीड़ भाड़ वाली सड़कों और आधुनिक सुविधाओं से युक्त कालोनियों आदि में सब जगह अपनी कारगुजारी दिखा रहे है।
वरिष्ठ पत्रकार सुनील डांग पर कुत्तों का हमला
गत दिवस देश के जानेमाने पत्रकार संपादक देश की राजधानी के पॉश इलाके में निवास करने वाले डे ऑफटर नामक पत्रिका के संपादक प्रसार भारती बोर्ड के सदस्य रहे देश के बड़े समाचार पत्रों के संगठनों में से एक इलना के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और मीडिया की जानी मानी शख्सियत संपादक पत्रकार सुनील डांग पर एक कुत्ते ने हमला किया और 10 जगह काटा। इसके इलाके की सभी पद्धतियों से उनकी चिकित्सा तो चल ही रही है ऑल इंड़िया न्यूज पेपर एसोसिएशन आइना सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए व इलना आदि मीडिया से संबंधित संगठनों के सदस्यों व पदाधिकारियों सहित इलना के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रकाश पोहरे आईना के राष्ट्रीय अध्यक्ष रवि कुमार बिश्नोई सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए के राष्ट्रीय महामंत्री अंकित बिश्नोई सहित देश के तमाम पत्रकार व संपादकों द्वारा श्री सुनील डांग के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हुए सरकार से मांग की गई है कि वो सभी प्रकार के जंगली जानवरों के आतंक से आम आदमी को बचाने के सभी उपाये करने के साथ ही इस काम में असफल सभी हुकुमरानों के खिलाफ कार्यवाही करे तथा श्री डांग पर हमला करने वाले कुत्ते के मालिक पर भी कार्यवाही करें।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक)

Share.

About Author

Leave A Reply